"सोयाबीन पर एआईसीआरपी की 52वीं वार्षिक बैठक" आयोजित
17 – 18 मई, 2022, इंदौर
भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर, मध्य प्रदेश ने 17 से 18 मई, 2022 तक "सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना की 52वीं वार्षिक समूह बैठक" का आयोजन किया।
डॉ. तिलक राज शर्मा, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), भाकृअनुप ने उद्घाटन संबोधन में सोयाबीन उगाने वाले विभिन्न राज्यों के किसानों के बीच सोयाबीन किस्मों की विविधता और जलवायु-लचीला, उच्च उपज देने वाली सोयाबीन किस्मों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। डॉ. शर्मा ने कम से कम समय में प्रजाति विकास की प्रक्रिया को तेज करने के लिए प्री-ब्रीडिंग, मार्कर असिस्टेड सेलेक्शन, जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज जैसे आणविक उपकरणों के उपयोग पर भी जोर दिया।
डॉ. संजीव गुप्ता, एडीजी (तिलहन और दलहन), भाकृअनुप ने देश की वनस्पति तेल की मांग में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सोयाबीन उत्पादकता बढ़ाने के लिए नीति निर्माताओं की अपेक्षा को रेखांकित किया। डॉ. गुप्ता ने कहा कि वर्तमान स्थिति में, सोयाबीन बीज प्रतिस्थापन की दर अन्य फसलों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है और उन्होंने स्थान-विशिष्ट नई किस्मों को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
डॉ. डी.के. यादव, एडीजी (बीज), भाकृअनुप; डॉ. एस.सी. दुबे, एडीजी (पौधे संरक्षण), भाकृअनुप और डॉ. नचिकेत कोतवालीवाले, निदेशक, भाकृअनुप-सिपेट, लुधियाना, पंजाब ने भी बैठक में भाग लिया।
डॉ. नीता खांडेकर, निदेशक, भाकृअनुप-आईएसएसआर, इंदौर ने पिछले खरीफ सीजन के दौरान विभिन्न केंद्रों पर आयोजित अनुसंधान गतिविधियों और परीक्षणों को रेखांकित किया। डॉ खांडेकर ने वर्ष 2021 के दौरान कोविड-19 महामारी की स्थिति के बावजूद वैज्ञानिकों द्वारा अधिसूचित की गई 25 सोयाबीन किस्मों को अधिसूचित किये जाने की उपलब्धियों की सराहना की। उन्होंने जैविक और अजैविक कारकों जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए किए जा रहे अनुसंधान कार्यक्रमों पर भी प्रकाश डाला, जिससे उपज में कमी आई और गुणवत्ता वाले सोयाबीन के बीज की अनुपलब्धता हुई।
सोयाबीन पर अखिल भारतीय समन्वित सोयाबीन अनुसंधान परियोजना से जुड़े विभिन्न केंद्रों के लगभग 150 सोयाबीन वैज्ञानिकों ने बैठक में भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर, मध्य प्रदेश)