2 फरवरी, 2024, अल्मोड़ा
भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान (वीपीकेएएस), अल्मोड़ा द्वारा एग्रीकसार ग्रीनटेक सॉल्युशन, ग्राम घनेली, पोस्ट हवालबाग, अल्मोड़ा से वी.एल. पॉली सीमेंट टैंक के उत्पादन के लिए लिखित समझौता किया गया।
पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा ही जल का मुख्य स्रोत है। वर्षा के पर्याप्त मात्रा में होने के बावजूद भी पर्वतीय भागों में सिंचाई व पेयजल की भारी कमी है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में कुल बुवाई क्षेत्रफल का मात्र 10 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित है। पिछले कुछ समय से पर्यावरण में हो रहे प्राकृतिक व मानव जनित परिवर्तनों से प्राकृतिक जल-स्रोत सूख रहे हैं और कुछ पूर्णतया सूख गये हैं। जो शेष हैं, उनका जल बहाव व उपलब्धता अत्यधिक कम हो गया है।
वीपीकेएएस में वर्ष 1982 से चल रहे अखिल भारतीय जल प्रबन्धन परियोजना के अन्तर्गत पॉली टैंकों के निर्माण पर अनुसंधान कार्य कर रहा है। देखा गया है कि पर्वतीय क्षेत्रों में बनाये जाने वाले सीमेंट टैंक भूकम्प या मिट्टी के कटाव से जल्दी क्षतिग्रस्त हो जाते हैं व इनके निर्माण में अधिक लागत (7.10 रु. प्रति लीटर) आती है। एक बार क्षति ग्रस्त होने के बाद इन की मरम्मत करना सम्भव नहीं होता है। जबकि पॉली टैंक सस्ते (1.2 रु. प्रति लीटर) व भूकम्प से कम क्षतिग्रस्त होते हैं। पॉली टैंक में एकत्रित जल का इस्तेमाल घरेलू उपयोग, पशुपालन, मत्स्य-पालन व फसलों की सिंचाई हेतु किया जाता है।
पॉली टेंक के कम से कम 20 घन मीटर व आवश्यक्ता अनुरूप उपलब्ध स्थान व संसाधन के अनुसार 500 घन मीटर या इससे अधिक क्षमता के टैंक भी बनाये जा सकते हैं। 20 घन मीटर क्षमता वाले टैंक को एक बार पानी से भरने पर 400 वर्ग मीटर क्षेत्र (दोनाली क्षेत्र) में 5 सेमी स्तर तक एक सिंचाई की जा सकती है। पॉली टैंक के पानी को सिंचाई में पूर्ण दक्षता से उपयोग करने हेतु उसके नीचे के खेत में टैंक के आउटलैट को पाईप द्वारा सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली से जोड़ा जता है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली में पानी को बहुत कम दाब पर बार-बार व सटीत तरीके से पौधे की जड़ तक पहुंचाया जाता है। इस प्रणाली में पौधे को उनकी आवश्यकता के अनुसार जल उपलब्ध कराया जाता है। इस प्रकार जल की कम क्षति तथा जल दक्षता बढ़ती है।
इस समझौते पर, निदेशक, डॉ. लक्ष्मीकान्त, चेयरमैन, आई.टी.एम.यू., डॉ निर्मल कुमार हेडाउ तथा कंपनी के सचिव श्री बाबूलाल आर्या ने हस्ताक्षर किए।
(स्रोतः भाकृअनुप-विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, अल्मोड़ा)
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