22 जुलाई, 2022
भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद और कृषि विभाग, महाराष्ट्र सरकार द्वारा संयुक्त रूप से "महाराष्ट्र के लिए खरीफ - 2022 के दौरान कृषि में आकस्मिक घटनाओं की तैयारी में
वृद्धि" पर एक आभासी राज्य स्तरीय इंटरफेस बैठक आयोजित की गई थी।

बैठक की अध्यक्षता, श्री एकनाथ दावाले, प्रधान सचिव (कृषि), महाराष्ट्र सरकार ने की।
डॉ. के.वी. राव, भाकृअनुप-केन्द्रीय बरानी कृषि अनुसंधान संस्थान (क्रिडा), हैदराबाद ने राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की मदद से महाराष्ट्र के सभी ग्रामीण जिलों के लिए कृषि में आकस्मिक घटनाओं की तैयारी में विकास और बढ़ावा को रेखांकित किया, साथ ही संवेदीकरण और आकस्मिक घटनाओं से निपटने के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन एवं कृषि विभाग की मदद से 2015-2021 के दौरान आयोजित इंटरफेस बैठक को रेखांकित किया।
बैठक के दौरान, दक्षिण एशियाई मौसमी जलवायु प्रदर्शन संगठन (SASCOF) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के पूर्वानुमान और आईएमडी (जुलाई, अगस्त और सितंबर) के मासिक पूर्वानुमान अप्रैल में जारी किए गए और उसके बाद अगले 4 सप्ताह के लिए साप्ताहिक पूर्वानुमान, विभाग के अधिकारियों के साथ साझा किए गए। इस बैठक के दौरान राज्य और जिला स्तर पर फसल की बुवाई की प्रगति, अब तक की वर्षा की स्थिति और शुष्कता की समस्या आदि पर चर्चा की गई।
बैठक के दौरान की गई प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं:
- खरीफ मौसम के शेष महीनों में सामान्य से अधिक वर्षा होने की उम्मीद है, दैनिक आधार पर तीव्र और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की निगरानी तथा 2 से 3 दिनों के संग्रहित डाटा के आधार पर व्यक्त करने का सुझाव दिया गया, जिसकी अनदेखी अस्थायी जलभराव का कारण बन सकता है।
- सोयाबीन की खेती 25 जुलाई तक करने का सुझाव दिया। साथ ही, विलंबित बुवाई के साथ बुवाई क्षमताओं को विस्तारित करने के लिए प्रयोग करने और प्रत्येक सप्ताह में देरी से बुआई होने के कारण पैदावार में गिरावट का पता लगाने के लिए दृढ़ता से सुझाव दिया ताकि किसानों को अपेक्षित पैदावार के बारे में निर्णय लेने के लिए जागरूक किया जा सके।
- इस वर्ष के दौरान संभावित फसल प्रणाली परिदृश्य को आजमाने के लिए देर से बोई गई खरीफ फसलों और सामान्य रोपण के साथ शुरू किये गये रबी फसलों के लिए होने वाला है।
- मिट्टी की जानकारी के आधार पर, प्रत्येक जिले में अस्थायी जलभराव की संभावना वाले क्षेत्रों और फसल वृद्धि की निगरानी के लिए संवेदनशील फसलों और आवश्यकता-आधारित तकनीकी सहयोग शुरू करने के लिए चिह्नित किया जाना है।
- निरंतर वर्षा से होने वाले क्षति को रोकने के लिए एक प्रारंभिक तंत्र के रूप में, भूमि प्रबंधन विकल्प, जैसे, बीबीएफ, जोड़ी बना कर पंक्ति रोपण, मेड़ बनाकर और हल की लकीरों से रोपण को बढ़ावा दिया जाना है।
- उन क्षेत्रों में चारा वाले मक्का के विकल्प का पता लगाया जाएगा जहां चारे की मांग अभी भी है।
- शुष्क भूमि के लिए अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) के मुख्य वैज्ञानिकों को रोगों की संभावना वाले प्रत्येक जिलों के लिए पोषक तत्वों (सूक्ष्म और बड़े पोषक तत्वों) पर एक सलाह तैयार करनी है।
- जल संचयन प्रणालियों को झरनों के साथ श्रेणीबद्ध सतही नालियों के द्वारा जोड़कर भूमि प्रबंधन विकल्पों को बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने के लिए - मनरेगा, आईडब्ल्यूएमपी कार्यक्रमों द्वारा लंबे समय तक पानी के जमाव को दूर करने के एक उपाय के रूप में लिया जाना है।
- धान उगाने वाले क्षेत्रों में, कंपित नर्सरी को एक तंत्र के रूप में बढ़ावा दिया जाना है ताकि नर्सरी सामग्री को नुकसान होने की स्थिति में पर्याप्त रोपण सामग्री उपलब्ध कराई जा सके।
इस अवसर पर राज्य के कृषि विभाग, भाकृअनुप संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।
(स्रोत: भाकृअनुप-केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद)
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