"राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में फसलों, सब्जियों, पशुधन तथा भविष्य की संभावनाओं के वर्तमान परिदृश्य" पर मंथन सत्र आयोजित

"राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में फसलों, सब्जियों, पशुधन तथा भविष्य की संभावनाओं के वर्तमान परिदृश्य" पर मंथन सत्र आयोजित

7 सितम्बर, 2022, जोधपुर

भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर द्वारा आज राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में फसलों, सब्जियों, पशुधन तथा भविष्य की संभावनाओं के वर्तमान परिदृश्य पर विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया।

                        

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डॉ. एस.के. सिंह, निदेशक, भाकृअनुप-अटारी, जोधपुर ने उद्घाटन सत्र में राजस्थान के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में बाढ़, असामान्य एवं अत्यधिक वर्षा के परिदृश्य से निपटने के लिए रणनीतियों की उत्पत्ति और महत्व पर ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने विस्तार से बताया कि राजस्थान देश के अत्यधिक संवेदनशील कृषि-जलवायु क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जिसे उत्पादकता के वांछित स्तर को प्राप्त करने के लिए बाढ़, असामान्य एवं अत्यधिक वर्षा तथा यहां तक कि सूखे की स्थिति से निपटने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। डॉ. सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि राजस्थान में कृषि चुनौतीपूर्ण है और इस बरसात के मौसम (2022) की बारिश को देखते हुए, प्रत्येक केवीके द्वारा आकस्मिक योजनाओं के साथ उचित और प्रभावी विस्तार दृष्टिकोण को लागू करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला तथा ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एक नीति दस्तावेज तैयार किये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आपदा पुनरावृति की घटना, खराब बुनियादी ढांचा, अनुचित बाजार, वित्तीय सहायता तथा बीमा आदि राजस्थान के किसानों के लिए प्रमुख जोखिम हैं, जिन्हें उचित योजना, कार्यान्वयन, निगरानी, मूल्यांकन, प्रौद्योगिकी प्रदान करने, एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल को बढ़ावा देने आदि से कम किया जा सकता है।

डॉ. डी. कुमार, सचिव, इंडियन एरिड लेगुम्स सोसाइटी एंड एक्स-प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेशन, एरिड-लेगुम्स, काजरी, जोधपुर ने उल्लेख किया कि जलवायु परिवर्तन बहुत तेज और विनाशकारी है और हमारे पास असामान्य स्थितियों से निपटने के लिए उचित योजना और तैयारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थायी आय प्रवाह प्राप्त करने के लिए कृषि-बागवानी-चारा-वानिकी प्रणाली के साथ-साथ पशु आधारित कृषि प्रणाली और विविध कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि विभिन्न फसल प्रणालियों में विभिन्न दाल को शामिल करने से फसल चक्र निश्चित रूप से मिट्टी की उर्वरता में सुधार लाएगा।

राजस्थान के पांच राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के विस्तार तथा शिक्षा निदेशक ने भी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न वर्तमान परिस्थितियों से उबरने के लिए अपने विचार व्यक्त किए। सभी ने गाय में "लम्पी त्वचा रोग" के बहुत गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला है, इस विनाशकारी बीमारी को अभिसरण मोड में त्वरित कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस कार्यक्रम में, राजस्थान के 47 केवीके ने अपने-अपने जिलों का वस्तु स्थिति को प्रस्तुत किया, जिन पर गहन चर्चा की गई और मौसम की ऐसी खतरनाक स्थितियों से निपटने के लिए एक दस्तावेज तैयार करने तथा इसमें सुधार के साथ अंतिम रूप दिया गया।

(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर)

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