05 मार्च, 2023, बीकानेर
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा घुमन्तू पशुपालकों एवं संबद्ध समुदाय के साथ परिचर्चा कार्यक्रम, उरमूल सीमांत समिति (राज.) तथा सहजीवन (गुजरात) के संयुक्त तत्वावधान में आज आयोजित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता, श्री परशोत्तम रूपाला, केन्द्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री ने की व इस परिचर्चा में श्री अर्जुन राम मेघवाल, केन्द्रीय संसदीय कार्य एवं संस्कृति राज्यमंत्री भी में सम्मिलिए हुए।
श्री रूपाला ने कहा कि घुमन्तू पशुपालक भाई, अन्य दुधारू पशुओं की तरह, मादा उष्ट्र एवं बकरी आदि के दूध के औषधीय महत्व एवं पशुओं की बहुआयामी उपयोगिता को समझते हुए विपणन (मार्केटिंग) के क्षेत्र में पदार्पण कर इन्हें अंतर्राष्ट्रीय पटल पर विकसित करें। वर्तमान में, विशेषकर युवा पीढ़ी इस हेतु आगे आएं, भारत सरकार योजनाओं के माध्यम से उन्हें उद्यम लगाने संबंधी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए सहयोग प्रदान करेंगी। उन्होंने घुमन्तु पशुपालकों को जमीनी स्तर पर आ रही समस्याओं एवं चुनौतियों के उन्मूलन के प्रति सरकार की गंभीरता का हवाला देते हुए पशुपालन मंत्रालय में विशेष अनुभाग को योजनाबद्ध किए जाने की जानकारी दीं। उन्होंने ‘वेस्ट टू वेल्थ‘, पशुओं हेतु स्वास्थ्य सुविधाओं, उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास को बढ़ावा देने, पशुपालकों से जुड़े मुद्दों को राज्य सरकार के साथ गंभीरता से रखने तथा पशु चरागाह विकास, पशु कल्याणार्थ भारत सरकार की योजनाओं की भलीभांति जानकारीयों को पशुपालकों तक पहुंचाने हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों की भूमिका जैसे विभिन्न पहलुओं के संबंध में खुलकर बातचीत कीं। श्री रूपाला ने बताया कि भारत सरकार, यथासंभव प्रयास कर पशुपालन के क्षेत्र में सबसे निचले पायदान पर खड़े घुमंतू पशुपालक भाई-बहनों के जीवन स्तर को केन्द्रित कर उनके आर्थिक उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है।
परिचर्चा के दौरान केन्द्रीय राज्य मंत्री, श्री अर्जुन राम ने घुमन्तु पशुपालकों से उनकी व्यावहारिक स्तर पर आ रही समस्याओं को जाना। उन्होंने कहा कि पश्चिमी राजस्थान में पशुपालक अपनी आय के लिए गाय, भैंस, भेड़, बकरी व उष्ट्र आदि पशुओं के निर्वाह के लिए प्राकृतिक संसाधनों से चराई पर निर्भर करता है, अत: उनके संरक्षण एवं समाजिक-आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए योजनाओं का निर्माण एवं नीति बनाई जाने की सिघ्र आवश्यकता है। मंत्री ने घुमंतू पशुओं के लिए पर्याप्त चरागाह क्षेत्र, पानी, दवाई आदि सुविधाएं उपलब्ध करवाए जाने की बात कही।
एनआरसीसी के निदेशक, डॉ आर्तबन्धु साहू ने कहा कि केन्द्र द्वारा उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु गहन अनुसंधान के साथ-साथ इस पशु से जुड़े समुदायों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हेतु मादा उष्ट्र के दूध, उष्ट्र सम्बन्धी पर्यावरणीय पर्यटन आदि की दिशा में नवाचारी प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने आयोजित परिचर्चा के माध्यम से पशुपालन संबद्ध घुमंतू समुदायों की समस्याओं के निराकरण में सहायता प्रदान करने की मंशा व्यक्त कीं ताकि उन्हें पशु उत्पाद से व्यापक व्यावसायिक लाभ मिल सके।
इस अवसर पर, श्री पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़, डीआईजी, बीएसएफ, बीकानेर, श्री सुनील लहरी, सचिव, उरमूल सीमांत समिति, श्री जोराराम ज्यानी, अध्यक्ष, पश्चिमी राजस्थान उष्ट्र पालक फैडरेशन, श्रीमती पाना देवी, अध्यक्ष, नया उजाला, एफ.पी.ओ., जायल ने भी उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़े व्यावसायिक पहलुओं की चर्चा की।
श्री रुपाला से खुली चर्चा में लगभग 200 पशु पालकों ने भाग लिया एवं घुमंतू पशुओं के लिए अपेक्षित सुविधाओं के बारे में अवगत करवाया। उन्होंने केन्द्र के उष्ट्र संबंधी प्रकाशनों का विमोचन तथा मादा उष्ट्र के दूध से बनी चॉकलेट लांच की। केन्द्रीय मंत्री ने केन्द्र की ‘ऊँट उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग तथा प्रशिक्षण इकाई’ का भी उद्घाटन किया। श्री रुपाला एवं श्री अर्जुन राम ने इस दौरान अभिनव प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी कार्यक्रम का अवलोकन किया तथा प्रगतिशील किसानों/ पशुपालकों को सम्मानित किया।
सहजीवन के श्री अनुराग कुशवाहा ने घुमन्तू पशुपालकों हेतु भारत सरकार के प्रयासों संबंधी अद्यतन जानकारी दीं। इस कार्यक्रम का संचालन, डॉ सुमंत व्यास, केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
(स्रोतः भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर)
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