एक अभिनव अवशेष प्रबंधन प्रौद्योगिकी-रोटरी डिस्क ड्रिल (आरआरडी) का प्रदर्शन

एक अभिनव अवशेष प्रबंधन प्रौद्योगिकी-रोटरी डिस्क ड्रिल (आरआरडी) का प्रदर्शन

चावल-गेहूं तथा गन्ना-गेहूं फसल प्रणालियों के तहत उत्तर भारतीय मैदानों में अवशेष जलाना एक प्रमुख मुद्दा एवं समस्या भी है। फसल अवशेषों को जलाने से कीमती पोषक तत्वों, मिट्टी की सेहत में गिरावट, पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव और ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने से भारी नुकसान होता है। भाकृअनुप-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर), करनाल में रोटरी डिस्क ड्रिल (आरडीडी) विकसित किया गया है, विभिन्न फसलों में लंगर और खुली फसल अवशेषों के तहत फसलों की सीधी बुवाई के लिए उपयुक्त है, साथ ही इसकी पहचान को सुरक्षित रखने के लिए पेटेंट (202111009839) दायर किया गया है।

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यह मशीन काफी प्रभावी एवं सक्रिय गुवत्ता वाले उपकरण श्रेणी के अंतर्गत आती है यानी पीटीओ संचालित कार्यान्वयन और इसमें रोटरी कटिंग यूनिट शामिल है जिसमें सॉइल रेजर डिस्क ब्लेड सामने की तरफ लगे होते हैं और इसके बाद मशीन के पिछले हिस्से में डबल डिस्क फरो ओपनर्स के साथ सीडिंग अटैचमेंट होता है और ट्रिपल डिस्क मैकेनिज्म पर काम करता है। रोटरी कटिंग यूनिट में मृदा रेजर डिस्क मानक पीटीओ गति (540±10 आरपीएम) पर 380-400 आरपीएम की गति से घूमती है। मशीन को कम से कम 45 एचपी के दोहरे क्लच सक्षम ट्रैक्टर के साथ संचालित किया जा सकता है। यह मशीन चावल के अवशेषों (लंगर + ढीले अवशेषों का भार 8 टन प्रति हेक्टर तक) और गन्ना कचरा (10 टन प्रति हेक्टर तक का अवशेष भार) से ढके खेतों में फसलों की सीधी बुवाई के लिए प्रभावी ढंग से काम करती है। मशीन की अपेक्षाकृत नम अवशेषों में काम करने की क्षमता मौजूदा प्रत्यक्ष बुआई मशीनों की तुलना में इसे प्रभावी बनाती है, जो सुबह और देर शाम को इसके उपयोग की अनुमति देती है। आरडीडी मशीन में गेहूं, चावल, सोयाबीन, मटर, जौ, चना, सोयाबीन और अरहर सहित विभिन्न फसलों की सीधी बुवाई के लिए एक तंत्र है। इसमें मिट्टी की स्थिति और अवशेषों के भार के आधार पर 0.4-0.5 प्रति हेक्टर की क्षेत्र क्षमता और 12-15 ली प्रति हेक्टर की विशिष्ट ईंधन खपत होती है। आरडीडी सहित धान के अवशेष के अंतर्गत गेहूँ की सीधी बुआई करने पर लगभग पारंपरिक जुताई पद्धति की तुलना में 120-130 किलोग्राम प्रति हेक्टर कम कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के अलावा 4200 रु. प्रति हेक्टर की बचत की जा सकती है।

वर्ष 2020-21 से 2022-23 के दौरान करनाल जिले (हरियाणा) और शामली जिले (उत्तर प्रदेश) में चावल-गेहूं और गन्ना-गेहूं फसल चक्र में गेहूं बोने के लिए सहभागी मोड के तहत किसानों के खेत में आरडीडी मशीन का प्रदर्शन किया गया। इस आरडीडी यंत्र से फसल अवशेषों के निपटारा करने के तहत गेहूं के पारंपरिक अभ्यास की तुलना में 60-65% ईंधन लागत में कमी के साथ समान या उच्च उपज प्रदान करता है। इस प्रकार चावल-गेहूं और गन्ना-गेहूं फसल चक्र में लगे किसानों के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी है। इससे किसानों को गेहूं या अन्य दलहनी फसल जैसे मूंग की अतिरिक्त फसल लेने और गन्ना आधारित प्रणालियों में बढ़ी हुई कटाई की तीव्रता के माध्यम से अधिक लाभ अर्जित करने में सहायता प्रदान करता है। गन्ने के कचरे में गेहूँ की सीधी बुआई से गेहूँ की फसल की बुवाई में तेजी आती है और इससे गेहूँ के क्षेत्र में वृद्धि करने में मदद मिलती है, विशेषकर गन्ना आधारित फसल प्रणाली में जहाँ गेहूँ की बुवाई में देरी होने की संभावना रहती ही है।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल)

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