"गन्ना परिदृश्य: अनुसंधान और उद्योग परिप्रेक्ष्य" पर मंथन सत्र आयोजित

"गन्ना परिदृश्य: अनुसंधान और उद्योग परिप्रेक्ष्य" पर मंथन सत्र आयोजित

10 मई, 2023, कोयम्बटूर

भाकृअनुप-गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयंबटूर में आज "गन्ना परिदृश्य: अनुसंधान एवं उद्योग परिप्रेक्ष्य" पर विचार-मंथन सत्र आयोजित किया गया।

उद्घाटन संबोधन देते हुए डॉ. टी.आर. शर्मा, उप महानिदेशक (सीएस), भाकृअनुप ने चीनी उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने में भाकृअनुप-एसबीआई के वैज्ञानिकों की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि गन्ना वैज्ञानिकों को जलवायु के अनुकूल किस्मों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही उन्होंने विभिन्न किस्मों जिनमें उच्च जल-उपयोग और पोषक तत्व-उपयोग दक्षता हो, यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त मशीनरी विकसित किये जाने, जीन संपादन को तैनात करने तथा तिलहन एवं दालों के साथ गन्ने की अंतर-फसल के लिए उपलब्ध तकनीकों में सुधार करने के बारे में बात की। डॉ. शर्मा ने आह्वान किया कि इस विचार-मंथन सत्र की सिफारिशों को कार्यान्वयन के लिए संस्थान की अनुसंधान सलाहकार समिति के ध्यान में लाया जाना चाहिए। उन्होंने इस अवसर पर संस्थान के प्रकाशनों का विमोचन भी किया।

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डॉ. आर.के. सिंह, सहायक महानिदेशक (सीसी), भाकृअनुप ने अपने विशेष संबोधन में कृषि अनुसंधान में पीपीपी दृष्टिकोण अपनाने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा कि इस दृष्टिकोण को सफल बनाने के लिए सहयोगियों के बीच विश्वास का होना आवश्यक है।

डॉ. डी.के. यादव, सहायक महानिदेशक (बीज), भाकृअनुप ने अपने विशेष संबोधन में कहा कि बीज उत्पादन और बीज स्वास्थ्य प्रमुख कारक हैं जो किसानों की आय को दोगुना करने में मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि न्यूनतम बीज मानकों को पूरा करने वाली गुणवत्ता वाले बीज सामग्री जो सभी जैविक तनावों से मुक्त हो, इस प्रकार के बीज गन्ना किसानों को आपूर्ति करने की आवश्यकता है।

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विचार-मंथन सत्र के दौरान बोलते हुए शक्ति शुगर्स लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, डॉ. एम. मनिक्कम ने चीनी क्षेत्र में दीर्घकालिक नीतियों की आवश्यकता पर बल दिया। चीन के मामले का हवाला देते हुए जहां किसानों पर केवल खाद्य फसलों को उगाने और संबद्ध कृषि उद्यमों से दूर रहने के लिए दबाव डाला जा रहा है, इसके विपरीत, उन्होंने कहा कि हाल की इथेनॉल नीति भारतीय गन्ना किसानों की मदद कर रही है।

डॉ. आर. विश्वनाथन, निदेशक, भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने गन्ने में रोग प्रबंधन के साथ-साथ पैथोटाइप के विकास पर बात की। यह उल्लेख करते हुए कि एक स्वस्थ गन्ने की फसल के लिए बीज का चयन महत्वपूर्ण है, उन्होंने गन्ने की किस्मों के उत्पादन में ह्रास को लेकर पीली पत्ती रोग के प्रभाव पर प्रकाश डाला।

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भाकृअनुप-एसबीआई के पूर्व निदेशक, डॉ. बख्शी राम ने आत्मनिर्भर भारत के लिए चीनी और ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं पर प्रकाश डाला और देश में गन्ने के पांच प्रमुख किस्में जो बम्पर उत्पादन में सहयोग दे रहा है। साथ ही ये किस्में सीओ (Co) 0118 की शर्मीली टिलरिंग प्रकृति, सीओ (Co) 0238 की रेड रॉट/ टॉप बोरर संवेदनशीलता और सीओ (Co) 86032 की जल-तनाव असहिष्णुता जैसी नकारात्मक लक्षण से प्रभावित होता रहा है, इससे बाहर निकलने के लिए डॉ. राम ने वैज्ञानिकों को तकनीक विकसित करने का आग्रह किया।

साउथ इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन- टीएन (सिस्मा-टीएन) के उपाध्यक्ष और कोठारी शुगर्स के पूर्णकालिक निदेशक, श्री एम. सिलवेस्टर ने चीनी उद्योग के सामने आने वाली चुनौतियों एवं गन्ना के स्थायी कृषि के लिए उपलब्ध मशीनीकरण विकल्पों पर बात की।

डॉ. जी. हेमप्रभा, निदेशक, भाकृअनुप-एसबीआई ने कहा कि देश का औसत गन्ना उत्पादन मुख्य रूप से सीओ (Co) 0238 किस्म के कारण बढ़कर 84 टन/ हैक्टर हो गया है। उन्होंने तमिलनाडु राज्य में गन्ना उत्पादन में सुधार के लिए चीनी कारखाने के कर्मियों की भूमिका पर भी जोर दिया।

बातचीत के बाद, डॉ. जी. हेमप्रभा ने विचार-मंथन सत्र की सिफारिशों को सूचीबद्ध किया, जिस पर विस्तार से चर्चा की गई। डॉ. डी. पुथिरा प्रताप, निजी सचिव और प्रभारी, विस्तार, ने सत्र के प्रतिवेदक के रूप में कार्य किया और विचार-मंथन की कार्यवाही का संचालन किया।

इस वर्ष, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने के अलावा, डॉ. बख्शी राम को इसके पहले एसआईएसएमए-टीएन, सोसाइटी फॉर गन्ना रिसर्च एंड डेवलपमेंट, कोयम्बटूर संस्थान एवं एनएएएस-कोयम्बटूर चैप्टर द्वारा भी सम्मानित किया गया है।

(स्रोत: भाकृअनुप-गन्ना प्रजनन संस्थान, कोयम्बटूर)

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