नई दिल्ली, 01 जून 2011

डॉ. एस. अय्यप्पन, सचिव, डेयर एवं महानिदेशक, भा.कृ.अनु.प. ने , भा.कृ.अनु.प. के अनुसंधान शिक्षा और प्रसार कार्यक्रम के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी व्यावसायिकरण के लिए उद्यमशीलता और निपुणता विकास को उच्च प्राथमिकता दी गई है और इसमें निजी क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। यह बात उन्होंने राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र, भा.कृ.अनु.प., नई दिल्ली में कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए सुनियोजित कीटनाशकों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन करते हुए कही।
डॉ अय्यप्पन ने सार्वजनिक-निजी क्षेत्र की भागीदारी पर जोर दिया ताकि एक-दूसरे की खूबियों और दृढ़ताओं को आत्मसात कर सकें और कृषि प्रौद्योगिकी को किसानों की दहलीज तक पहुंचाया जा सके। बीज, उर्वरक और कीटनाशियों आदि गुणवत्तायुक्त आदानों की समयानुसार उपलब्धता सुनिश्चित करने तथा कृषकों और कृषि संबंधित सामग्री के वितरकों को कीटनाशियों के सही प्रयोग की शिक्षा देना अत्यंत आवश्यक है और इसमें भा.कृ.अनु.प. और निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भमिका होगी।
कृषि विज्ञान केंद्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और भा.कृ.अनु.प. संस्थानों में सही प्रशिक्षण द्वारा विभिन्न विभागीय प्रायोजनाओं में सहायता के लिए पैराप्रोफेशनल और मध्य स्तरीय कर्मियों के सृजन पर जोर दिया। इस राष्ट्रीय सेमिनार में वैज्ञानिक, वरिष्ठ अधिकारी, किसान और डीलरों सहित लगभग 300 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
प्रो. आर. बी. सिंह, पूर्व सहायक महानिदेशक, एफएओ ने अपने उद्बोधन में कहा कि कृषि उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने और मानव एवं पशु खाद्य, आहार और स्वास्थ्य संरक्षण में कृषि रसायनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बिना सोचे समझे और अवैज्ञानिक प्रयोग के कारण कृषि रसायनों का प्रयोग सार्वजनिक विवाद का विषय बन चुका है इसलिए इसके लिए एक सही नीति बनाने की आवश्यकता है।
डॉ. के. डी. कोकाटे, उपमहानिदेशक (कृषि विस्तार), भा.कृ.अनु.प. ने सार्वजनिक निजी भागीदारी पर प्रकाश डाला और कहा कि इस तरह की भागीदारी से ही हम लघु और सीमांत किसानों तथा दूर-दराज के क्षेत्रों तक उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी पहुंचा सकते हैं। उन्होंने एकल खिड़की समर्थन पद्धति के तहत गुणवत्तापूर्ण आदानों और सेवाओं को प्रदान करने की अपील की क्योंकि फसल उत्पादकता बढ़ाने में इनकी अनुपलब्धता बहुत बड़ी बाधा है।
श्री आर. जी. अग्रवाल, अध्यक्ष, धानुका समूह ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी के अनुभवों को बांटते हुए कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में 20-30 प्रतिशत हानि कीटनाशी रोगों और खरपतवारों के द्वारा होती है और इसकी कीमत लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए वार्षिक होती है। देश में जब उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है तो कीटनाशियों के उचित प्रयोग द्वारा नुकसान को कम करने के लिए उचित कदम उठाने होंगे।
(स्रोतः एनएआईपी सब-प्रोजेक्ट मास-मीडिया मोबिलाइजेशन, डीकेएमए)
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