बैरकपुर, 3 जून 2012
केन्द्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई), बैरकपुर, ने 3 जून 2012 को 15वें सुंदरबन दिवस मनाने के लिए "सुंदरबन: मुद्दे और खतरों" पर एक विचार सत्र आयोजित किया गया। यह दिवस सर विलियम रॉक्सबर्ग, अग्रणी वनस्पति शास्त्री के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। सर राक्सबर्ग ने सुंदरबन के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रोफेसर ए. पी. शर्मा, निदेशक, सीआईएफआरआई ने स्वागत भाषण के साथ सत्र की शुरुआत की और कार्यक्रम के उद्देश्यों को बताया। सचिव प्रो. अमलेश चौधरी, एसडी समुद्री अनुसंधान संस्थान, सागर द्वीप और सत्र के अध्यक्ष ने पिछले 50 वर्षों तक सुंदरबन में काम करने के अपने अनुभवों को साझा किया। इस अवसर पर "सुंदरबन- जांच और संभावनाओं” पर आधारित सीआईएफआरआई का एक संग्रह जारी किया गया।
एक प्रस्तुति के माध्यम से डॉ. उत्पल भौमिक, प्रमुख, नदी और पारिस्थितिकीय मत्स्य प्रभाग, सीआईएफआरआई, ने प्रकाश डाला कि कुल 254 प्रजातियों की मछलियां, झींगे की 25 प्रजातियां, केकड़ों की 28 प्रजातियां, 8 मछली परजीवी आइसोपोड्स की प्रजातियां और घोंघे की 92 प्रजातियों को हाल ही में एक अध्ययन के द्वारा दर्ज किया गया है। उन्होंने कहा कि सुंदरबन की नदियों में बढ़ी लवणता प्रमुख चिंता का विषय है। मीठे पानी के अभाव के कारण, सुंदरबन की मतलाह, सप्तमुखी, ठकुरान आदि नदियों में हिलसा मछली का मिलना दुर्लभ हो गया है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐला के बाद, चार और प्रजातियों को इस क्षेत्र में स्थापित किया जा रहा है।
डॉ. सी. एस. चक्रवर्ती, कुलपति, पश्चिम बंगाल पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, ने प्रकाश डाला कि ऐला अवधि के बाद मछली और बेनथोस प्रजातियों की संरचना पर कुछ प्रजातियों की अनुपलब्धता की एवज में विशेष रुप से अध्ययन किया जा सकता है। उन्होंने पूरे हुगली मतलाह मुहाने में हिलसा की उपलब्धता के पैटर्न पर जोर दिया। डॉ. पी. दास, पूर्व निदेशक, राष्ट्रीय मछली आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो, लखनऊ , ने मुहानों की नर्सरी, जमीन और समुद्री मछली प्रजातियों के नुक्सान की ओर अपनी चिंता व्यक्त की। मछेरों द्वारा बैग जाल, शूटिंग जाल, सेट बाधा जैसे अनुचित मछली पकड़ने वाले गियर के अंधाधुंध प्रयोग से न सिर्फ अपरिपक्व मछलियों का विनाश हो रहा है बल्कि यह जलीय जैव विविधता के लिए भी एक खतरा है। डॉ. दीपांकर साहा, सलाहकार ने सुंदरबन में विविध कृषि की आवश्यकता का उल्लेख किया। डा. ए. के. घोष, पूर्व निदेशक, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण, कोलकाता ने वर्तमान परिदृश्य में सुंदरबन के पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया। विशेषज्ञों के अनुसार प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से डेल्टा बंगाल की खाड़ी में डूब रहा है। इसलिए, डेल्टा और उसके निवासियों का अस्तित्व बड़े खतरे में है।
डा. एस. एन. बिस्वास, उप निदेशक (मत्स्य पालन), पश्चिम बंगाल सरकार ने सुंदरबन के विकास के लिए तकनीकी और प्रशासनिक समस्याओं पर बात करते हुए बैंक ऋण, दूरस्थ स्थान प्रशिक्षण और प्रशिक्षित जनशक्ति में सुधार लाने की बात कही। मत्स्य विभाग (पश्चिम बंगाल सरकार), सुंदरबन विकास बोर्ड और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने सुंदरबन के लिए योजनाओं को लागू करने में उनके द्वारा पेश आ रही वास्तविक समस्याओं को सविस्तार बताया। सत्र में सुंदरबन के विकास के लिए एक संगठन के भीतर सहयोगी दृष्टिकोण की सिफारिश पर प्रकाश डाला गया।
(स्रोत: केन्द्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई), बैरकपुर)
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