आईसीएआर-इकार्डा के सहयोगी कार्यक्रम की समीक्षा बैठक का आयोजन

आईसीएआर-इकार्डा के सहयोगी कार्यक्रम की समीक्षा बैठक का आयोजन

29 नवम्बर 2012, नई दिल्ली

आईसीएआर-इकार्डा के सहयोगी कार्यक्रम की एक समीक्षा बैठक एनएएससी कॉम्पलैक्स, नई दिल्ली में आयोजित की गई। खाद्य फलियों, जौ और गेहूं, एवं फसल पशुधन व्यवस्था, जल उत्पादकता में सुधार व सामाजिक-आर्थिक और नीति अनुसंधान पर 6 आईसीएआर संस्थान और 12 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ ये सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रम पिछले चार वर्षों से चलाया जा रहा है।

icarda-2-05-11-2012_0.jpg icarda-1-05-11-2012_0.jpg

डॉ. एस. अय्यप्पन, सचिव, डेयर और महानिदेशक, आईसीएआर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में इकार्डा के सहयोग की सराहना की और कार्यशाला की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने पूर्वी भारत में मसूर, मटर और चना जैसी फसलों के उत्पादन में वृद्धि के लिए गहराई से शोध करने पर जोर दिया। डॉ. अय्प्पन ने कहा कि वर्तमान फसल प्रणाली में इन फसलों के लिए अपार सम्भावनाएं हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में उच्च गुणवत्तायुक्त चारा उत्पादन, पूर्व-प्रजनन, पानी की उत्पादकता और फसल पशुधन एकीकरण, सामाजिक-आर्थिक एवं नीतिगत मुद्दों पर शोध की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। डॉ. अय्यप्पन ने आईसीएआर के कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा बेहतर तकनीकों के प्रदर्शन पर भी जोर डाला।

इस अवसर पर कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि डॉ. के. शिदीद, सहायक महानिदेशक, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संचार, इकार्डा ने अपने भाषण में सहयोग और इकार्डा के साथ सम्बन्धों पर आईसीएआर को धन्यवाद दिया। उन्होंने इकार्डा के अनुसंधान कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से बताया और भारत में इन कार्यक्रमों के महत्व पर चर्चा की। उन्होंने दक्षिण एशिया और मुख्य रूप से भारत में इकार्डा के प्रयासों की सराहना की जो शुष्क क्षेत्र प्रणाली के लिए सीआरपी 1.1 के लागू होने के साथ बढ़ते जा रहे हैं।

डॉ. एस.के. दत्ता, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), आईसीएआर ने अपने भाषण में विभिन्न भारतीय संस्थानों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए इकार्डा के दक्षिण एशिया और चीन के क्षेत्रीय कार्यक्रम (एसएसीआरपी) की सराहना की। भारत में अनुसंधान के विभिन्न विषयों पर चर्चा करते हुए उन्होंने उल्लेखित किया कि जौ के आनुवंशिक आधार को जंगली किस्मों और जीनोमिक अनुक्रमण द्वारा बेहतर बनाया जा सकता है। डॉ. दत्ता ने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए इन किस्मों पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है अन्यथा सुधार के अभाव ये विलुप्त हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि काबुली चने के फीनोटाइप में भी अच्छी उपज क्षमता के साथ और अधिक सुधारों की आवश्यकता है ताकि फसलोपरान्त हानियों को कम किया जा सके।

इससे पूर्व, गणमान्यों का स्वागत करते हुए डॉ. एन. नादराजन, निदेशक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर ने सही दिशा में जा रहे आईसीएआर-इकार्डा सहयोग के महत्व और विस्तार पर प्रकाश डाला।

इस कार्यशाला में आईसीएआर के गणमान्यों, वरिष्ठ प्रबन्धकों, निदेशकों और सहयोगी संस्थानों के वैज्ञानिकों सहित लगभग 50 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

(स्रोत:इकार्डा)(हिन्दी प्रस्तुतिः एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय, आईसीएआर)

×