तरबूज की खेती किसानों के जीवन में मिठास ला सकती है। ऐसा तमिलनाडु के तिरूवन्नमलाई जिले में हो रहा है। परिशुद्ध खेती, ड्रिप सिंचाई प्रणाली और उन्नत किस्मों ने इस जिले के किसानों को आर्थिक लाभ पहुंचाने में मदद की है, जिससे किसानों को कुल लागत की सात गुणा आय प्राप्त हुई।
तमिलनाडु के तिरूवन्नमलाई जिले के वेप्पुरचेक्कदी, थान्दरमपाथु (टी.के.) गांव का रहने वाला मुरूगा पेरूमल एक ऐसा ही किसान है, जिसने तरबूज की खेती के माध्यम से अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है। मुरूगा पेरूमल ने अपने 2.2 हैक्टर भूमि पर परिशुद्ध खेती और ड्रिप सिंचाई प्रणाली से तरबूजे की खेती की। उसने एक हैक्टर भूमि पर तरबूज की ‘पाकीजा’ और 1.2 हैक्टर भूमि पर ‘अपूर्व’ किस्म बोयीं।.
चार बार खेतों की जुताई करने के बाद आखिरी जुताई से पहले उसने 25 टन/हैक्टर की दर से सड़ी हुई खाद डाली। इसके बाद उसने 300 कि.ग्रा. डीएपी और 150 कि.ग्रा. पोटाश से खेत का आधार तैयार किया। समतल भूमि बनाने के बाद 60 सें.मी. के अंतराल पर 1.5 मीटर चैड़ी मेड़ बनायी। प्रत्येक मेड़ के केंद्र में एक पांच फुट लम्बी लेटरल पाइल बिछाई। बुआई से पहले उसने मेड़ों में कुछ समय तक सिंचाई की। बुआई की प्रक्रिया के लिए उसने एक हैक्टर भूमि पर 3.5 कि.ग्रा. बीज का प्रयोग किया, जिसमें 2 ग्राम/कि.ग्रा. की दर से कार्बोन्डाजिम मिलाया। उसने डिपर के हर स्थान पर बीज बोया और प्रतिदिन एक घंटे सिंचाई की।
खेतों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगाने के लिए उसने अपने एक एकड़ भूमि के लिए वेप्पुरचेक्कदी सहकारी समिति से 49000 रुपए का ऋण लिया तथा शेष राशि अपने पास से लगायी। जो किसान परिशुद्ध खेती का पहली बार प्रयोग करते हैं, सरकार उनको 50 प्रतिशत की सब्सिडी देती है। चूंकि मुरूगा पेरूमल इस प्रणाली का पहली बार प्रयोग कर रहा था, इसलिए बागवानी विभाग की ओर से उन्हें 258 कि.ग्रा. पोटेशियम नाइट्रेट उर्वरक
सब्सिडी के रूप में दिया गया। उसने फसल के दौरान तीन दिनों के अंतराल में पांच कि.ग्रा. पोटैशियम नाइट्रेट और पांच कि.ग्रा यूरिया का प्रयोग फर्टिगेशन विधि से किया। फसल बोने के 15 दिन बाद 40 महिला मजदूरों द्वारा खेतों की निराई की गई। इसके बाद उसने हर पौधे के पास एक गड्ढा बनाया, जिसें उसने 200 कि.ग्रा. डीएपी, 200 कि.ग्रा. पोटाश और 100 कि.ग्रा. यूरिया के मिश्रण से भरा। तदुपरांत लेटरल पाइप से सिंचाई की। बुआई के 35 दिन बाद उसने 150 कि.ग्रा. कैल्शियम अमोनियम नाइटेªट डालकर ड्रिपर द्वारा समान रूप से सिंचाई की।
बुआई के 70 दिन बाद पहली पैदावार तैयार हुई, जिसकी कटाई उसने 20 महिला मजदूरों द्वारा करवायी। इससे उसे 55 टन पाकीजा और 61 टन अपूर्व किस्म के तरबूज प्राप्त हुए।दूसरी पैदावार की कटाई उसने पहली कटाई के एक सप्ताह बाद 20 महिला मजदूरों द्वारा करवायी, जिससे उसने 6 टन पाकीजा और 4 टन अपूर्व किस्म के तरबूज मिलें।
मुरूगा पेरूमल ने पहली पैदावार का फल 3100 रु./टन और दूसरी पैदावार का फल 1000 रु./ टन की दर से बेचा। उसने तरबूज की दो किस्मों की फसलों की बुआई के लिए केवल 45,575 रुपए खर्च करके कुल 3,24025 रुपए का लाभ प्राप्त किया। पेरूमल को एक हैक्टर भूमि की पाकीजा किस्म से 1,70500 रुपए तथा 1.2 हैक्टर भूमि की अपूर्व किस्म से 1,89100 रुपए की आय प्राप्त हुई। यह सब कुछ परिशुद्ध खेती और ड्रिप सिंचाई प्रणाली से संभव हो सका है। अपनी इस अभूतपूर्व लाभ से मुरूगा पेरूमल बहुत खुश है। अब वह और किसानों को भी इसके लिए प्रोत्साहित कर रहा है।
(स्रोत: एनएआईपी सब-प्रोजेक्ट मास मीडिया मोबलाइजेशन, डीकेएमए और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय)
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