हरियाणा में यमुनानगर के धामला गांव का निवासी 46 वर्षीय धर्मवीर कंबोज वर्ष 1987 तक दिल्ली की सड़कों पर रिक्शा चलाने का काम करता था। धर्मवीर की कुछ नया करने की प्रवृत्ति और उसकी इच्छाशक्ति ने उसे आज रिक्शाचालक से उद्यमी बना दिया। इसमें केंद्रीय कटाई उपरांत अभियांत्रिकी और प्रौद्योगिकी संस्थान(सीफेट), लुधियाना का भी सहयोग रहा।
धर्मवीर के गांव की महिलाओं को औषधीय उत्पादों की छाल को हाथ से छीलने में काफी कठिनाई होती थी। इस कार्य में महिलाओं को हाथ में चोट भी लग जाती थी और उनकी उत्पादकता भी काफी कम होती थी। उनकी परेशानी देख कुछ नया करने की चाह रखने वाले धर्मवीर ने एक ऐसा उपकरण बनाने का निर्णय लिया जिससे यह कठिनाई हमेशा के लिए दूर हो जाए। उसने ग्राइंडर, प्रोसेसर और जूसर की मदद से एक प्रसंस्करण मशीन तैयार की। इस मशीन के उपयोग से 200 किलोग्राम औषधीय उत्पादों का प्रति घंटा प्रसंस्करण संभव हो सका।
धर्मवीर ने अब तक ऐसी 55 मशीनें तैयार करके उन्हें न सिर्फ भारत में बेचा है बल्कि इसकी मांग केन्या से भी आई है। अब वह अपनी दो एकड़ जमीन पर एलोवेरा और आंवला की खेती करके अपनी बनाई मशीन के प्रयोग से जूस, जेल, मिठाई, शैंपू और फेसक्रीम जैसे उत्पाद बनाकर देशभर में बेच रहा है। फिलहाल उसने 35 महिलाओं को सीधे रोजगार प्रदान किया है जबकि उसकी प्रेरणा से आसपास के गांवों की कई महिलाओं ने आंवला और एलोवेरा की खेती करनी शुरू कर दी है।
उसकी इस नवीन खोज के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से उसे कृषि और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री शरद पवार ने 2010 में सम्मानित किया। राज्य का बागवानी विभाग उसकी बनाई मशीन पर सब्सिडी दे रहा है और इसकी कीमत 1.35 लाख रुपये रह गई है। इस नवीन अविष्कार ने उसके जीवन की दशा और दिशा पूरी तरह से बदल कर रख दी है। अब वह प्रतिमाह दो लाख रुपये तक कमा रहा है।
(प्रस्तुति-एनएआईपी मास मीडिया प्रोजेक्ट, डीकेएमए और सीफेट लुधियाना )
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