रानी, गुवाहाटी, असम में स्थित राष्ट्रीयशूकर अनुसंधान केन्द्र, ने विस्तारित अवधि (150 डिग्री सेल्सियस में 7 दिन) तक शूकर के वीर्य संरक्षण के लिए प्रौद्योगिकी विकसित की है। संस्थान से दूर के गांवों में वीर्य के परिवहन को सुलभ बनाने और कृत्रिम गर्भादान की तकनीक को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया गया। घुंघरू बुआई का पहला सफल वितरण 16 मई 2012 को दर्ज किया गया। इस सफल प्रयास के फलस्वरुप असम के कोकराझार जिले में स्थित गोसकटा गांव की श्री बिमला प्रसाद बासूमतरी के घर में 13 घेंटों (पिगलेट्स) का जन्म हुआ। इनका घर संस्थान से 220 कि. मी. की दूरी पर स्थित है। यह उपलब्धि केवीके, गोसाईगांव के अंतर्गत असम कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से हासिल हुई। इससे पहले संस्थान ने कृत्रिम गर्भाधान की सेवा अपने आसपास के क्षेत्र के भीतर यानि 65 कि. मी. की परिधि तक उपलब्ध कराई जिससे किसानों के क्षेत्र में 1448 घेंटों का उत्पादन हुआ। यह उम्मीद है कि नई प्रौद्योगिकी से जन्मे बेहतर घेंटों की संख्या में वृद्धि से सूअर पालकों की आय में वृद्धि होगी। वर्तमान में, कृत्रिम गर्भाधान से जन्मे संकरित 2 महीने की उम्र के घेंटें, प्राकृतिक रूप से जन्मे घेंटों की तुलना में 500 रुपए तक अधिक मुनाफा कमा रहे हैं। कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से उत्पादित संकरित नस्ल के घेंटे उनके बेहतर विकास दर के कारण मांग में हैं। हाल ही में, असम राज्य के ग्रामीण विकास संस्थान ने राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र द्वारा अपनाए गांवों से संकरित घेंटों की खरीद की है। कृत्रिम गर्भाधान किसानों के बीच लोकप्रिय होता जा रहा है। राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र द्वारा विकसित नई प्रौद्योगिकी, राज्य पशु चिकित्सा विभाग, कृषि विज्ञान केन्द्र और गैर - सरकारी संगठनों के सहयोग से किसानों के क्षेत्र में स्थानांतरित की जा सकती है।
(स्रोत: राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र, गुवाहाटी)
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