ओडिशा के केओन्झार जिले का भटूनिया गांव एनएआईपी की परियोजना 'ओडिशा के केओन्झार, मयूरभंज और सम्भलपुर जिलों में जलीय कृषि, बागवानी और पशुपालन द्वारा टिकाऊ आजीविका सुधार' के अंतर्गत गोद लिया गया है। यहां की 80 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति एवं जनजातियों से सम्बन्धित है। इसी गांव के श्री सुनकारा देहुरी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले किसान हैं। इनके पास एक कच्चे मिट्टी के मकान के अतिरिक्त 1.2 एकड़ कृषि भूमि और 0.3 एकड़ का एक मौसमी तालाब है। देहुरी का परिवार केवल सालाना धान की फसल और रोजाना की मामूली मजदूरी पर गुजारा करता है और परिवार की सालाना आय 25,000 रुपये से भी कम है।
केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के भुबनेश्वर स्थित क्षेत्रीय केन्द्र ने सहयोगी के रूप में श्री देहुरी को उनके तालाब में बतख पालने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके लिए देहुरी को अन्य किसानों के साथ बतख के चूजों को पालने, भोजन देने और अन्य प्रबंधन से सम्बन्धित आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया गया। जून 2011 में देहुरी को देशी प्रजाति के 35 बतख के चूजे दिए गए। साथ ही, 10 किग्रा. प्रारंभिक आहार और पालन में सहायक उपकरण भी दिए गए। परिवार के लोगों ने बतखों के लिए बांस और मिट्टी से एक छोटे आवास का भी निर्माण किया। प्रारंभ के 10 दिनों तक बतख के चूजों को दिन में दो बार भिगोया हुआ भोजन और साफ पीने का पानी दिया गया। इस दौरान बतखों को भिगोया हुआ या उबला हुआ चावल भी दिया गया। 25 दिनों बाद बतखों को दिन में तालाब में रखा गया जबकि रात में वापस आवास में रखा गया। एक माह बतख के 31 बच्चे जीवित बचे और तीन माह बाद वे पूर्ण वयस्क 14 नर और 17 मादा बतखें थे।
छठे महीने से परिवार को कम से कम 9 अंडे रोजाना मिलने लगे। सलाह के अनुसार श्री देहुरी बतखों के लिए मछली का सिर भी लाते थे। प्रजनन काल में बतखों को रोजाना रसोई के कचरे के अतिरिक्त 20 मिली. द्रव कैल्शियम पदार्थ (कैलमोर) भी दिया गया। सर्दियों में पक्षियों के सुस्त होने पर उन पर लगातार तीन दिनों तक टेट्रासाइक्लिन (3 ग्राम) मिश्रित पानी डाला गया जिससे वे दोबारा सक्रिय हो गईं।
प्रजनन के पूरे आठ महीनों बाद कुल 2642 अण्डे प्राप्त किए गए जिसमें से 2100 से अधिक अण्डे 5 रुपये प्रति अण्डे की दर से स्थानीय बाजार में बेच दिए गए। इस पूरे समय में बतख पालन से नर बतखों की बिक्री समेत कुल 14,400 रुपये की आमदनी हुई।
पिछले डेढ़ वर्ष में श्री देहुरी के अतिरिक्त ओडिशा के तीन जिलों के आदिवासी इलाकों के 450 किसान अपने निजी या सामुदायिक तालाबों में बतखों का पालन कर रहे हैं जिससे इन किसान परिवारों को टिकाऊ कृषि के लिए बेहतर आजीविका में सहायता मिल रही है।
(स्रोत:डॉ. एस.सी गिरि, वरिष्ठ वैज्ञानिक और सीसीपीआई, एनएआईपी, क्षेत्रीय केन्द्र, सीएआरआई, भुबनेश्वर
प्रस्तुति- एनएआईपी मास मीडिया प्रोजेक्ट, डीकेएमए)
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