मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला आदिवासी प्रमुखता वाला वह वंचित क्षेत्र है जहां लहराती ऊबड़-खाबड़ भूमि, खंडित जोत, वर्षा आधारित खेती, सतही और क्षरित मिट्टी, कम और स्थिर फसल उत्पादकता और पैतृक खेती द्वारा कम आय होती है। क्षेत्र के किसानों की आय में वृद्धि के उद्द्श्य से सब्जियों की बेहतर खेती पर राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना के तहत "मध्यप्रदेश के झाबुआ और धार जिले के वर्षा आधारित क्षेत्रों में एकीकृत कृषि प्रणाली के माध्यम से सतत् ग्रामीण आजीविका” नामक प्रयास शुरू किया गया था। श्री रमेश बारिया, इस परियोजना के तहत जिला झाबुआ के रोटला गांव से लाभार्थी किसान हैं। वर्ष 2009-10 के दौरान एनएआईपी-कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के साथ बातचीत के बाद श्री रमेश ने छोटे से क्षेत्र पर बरसात और जाड़े के मौसम के दौरान सब्जियों की खेती शुरू कर दी जिसका उन्हें भरपूर लाभ मिला। इस प्रोत्साहन के साथ, उन्होंने 2012-13 की गर्मियों के मौसम में 0.1 हैक्टर क्षेत्र में कद्दू वर्गीय सब्जियों और करेले की खेती करने का निश्चय लिया। उन्होंने मई 2012 में नर्सरी तैयार की और इन फसलों को (12 लाइन करेला और तीन लाइन स्पंज गोर्ड) जून 2012 के पहले सप्ताह में बोया। इन फसलों के प्राथमिक चरण के दौरान, उन्हें मानसून की देरी की वजह से सिंचाई के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ा। श्री रमेश अपनी फसलों की विफलता को लेकर चिंतित थे। इसके पश्चात् उन्होंने एनएआईपी वैज्ञानिकों के साथ विचार - विमर्श किया और उनकी सहायता से एक अभिनव सिंचाई तकनीक ग्लूकोज की बेकार बोतल के उपयोग को अपनाने की सलाह ली। इस तकनीक में ग्लूकोज की बेकार बोतल के शीर्ष में पानी भरने के लिए एक छेद बनाया जाता है और ग्लूकोज नियामक प्रणाली द्वारा पानी को विनियमित किया जा सकता है।
श्री रमेश अपनी सब्जी की फसलों को बचाने के लिए दृढ़ थे इसलिए उन्होंने 6 किलो ग्लूकोज की बेकार बोतलें (350 की संख्या में) 20 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदीं और पानी भरने के लिए बोतल के ऊपरी तल में छेद किए। रमेश ने अपने बच्चों को स्कूल जाने से पहले पानी की बोतलें भरने का निर्देश दिया। उन्होंने पानी की बूंद-बूंद आपूर्ति के लिए नियामक का इस्तेमाल किया। इस प्रकार, रमेश ने मानसून की देरी के कारण सूखे से अपनी फसल को बचाया और 0.1 हैक्टर भूमि से 15,200 रुपए का शुद्ध लाभ अर्जित किया। यह बताता है कि एक आदिवासी किसान दूरस्थ आदिवासी पहाड़ी मिट्टी वाले क्षेत्र में भी सिंचाई के इस नए नवीन तकनीक को अपनाने से 1.50 से 1.70 लाख रुपए प्रति हैक्टर का लाभ एक मौसम में सब्जी की खेती द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
उनकी इस उपलब्धि के सम्मान में, श्री रमेश बारिया को जिला प्रशासन और कृषि मंत्री, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रशंसा प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया।

(स्रोत: निदेशक अनुसंधान, राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर
हिन्दी प्रस्तुति: एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय)
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