ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले के डेराबीस ब्लॉक के डराबल गांव में श्री केशब जेना 0.70 हैक्टर के खेत से अपने छह सदस्यीय परिवार की आजीविका चलाते हैं। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा 1500 मिमी. होती है तथा यहां मुख्यतः धान की खेती की जाती है। यद्यपि अपने परिवार के लिए पर्याप्त आय प्राप्त करने के लिए श्री जेना धान के बाद अपने खेतों में मूंग, उड़द, जूट तथा बैंगन, लौकी व टमाटर जैसी सब्जियों की खेती भी करते रहे हैं। इसके अतिरिक्त उनके पास एक आम का पेड़, एक देसी गाय, दो बैल और चार बकरियां भी हैं। उनकी गाय एक दिन में 2 लीटर से भी कम दूध देती थी। उनके खेत में एक 320 वर्ग मीटर का तालाब भी है जिससे वे लगभग 10 किलोग्राम स्थानीय मछली का उत्पादन कर लेते थे। कुल मिलाकर उनकी सभी फसलों, पशुओं और मछली की उत्पादकता सामान्य से कम थी। उत्पादन के बाजार मूल्य से उनकी आमदनी केवल 17600 रुपये प्रतिवर्ष थी जिससे कठिनाई से उनके परिवार का भरण पोषण हो रहा था। उड़ीसा कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय में समेकित कृषि प्रणाली पर एआईसीआरपी के अन्तर्गत कार्यरत केंद्रपाड़ा जिले की प्रक्षेत्र शोध इकाई (ऑन-फार्म रिसर्च यूनिट) ने वर्ष 2011 के दौरान श्री जेना की "छोटे और सीमांत किसानों के लाभ और आजीविका में सुधार के लिए कृषि प्रणाली मॉड्यूल की प्रक्षेत्र गणना" पर शोध के लिए पहचान की। कृषक सहभागी इस शोध में फसल, पशुधन, प्रसंस्करण तथा मूल्यवर्धन जैसे मॉड्यूल की पहचान की गई तथा इनमें कम या बिना लागत पर आधारित प्रयोग किए गए।
फसलों में, कम उपज, असंतुलित खाद के प्रयोग, जूट में खरपतवारों व कीटों का प्रकोप आदि समस्याओं को दूर करने के लिए स्थानीय किस्म के स्थान पर धान की उच्च उपज क्षमता वाली जेकेआरएच-401 तथा हंसेश्वरी किस्म का, लौकी के लिए साथी और टमाटर की दीप्ति किस्म का प्रयोग किया गया। धान में संतुलित खाद का प्रयोग, दालों और सब्जियों के लिए एकीकृत कीटनाशी, सस्ते येलो ट्रैप व राख का प्रयोग तथा जूट में खरपतवार नियंत्रण के लिए क्वीजलफॉप-इथाइल का प्रयोग किया गया।
इसी प्रकार, पशुधन में कम उत्पादकता वाली देसी गाय में बेहतर उत्पादकता के लिए कृत्रिम गर्भाधान, उचित भोजन, परजीवीनाशी अल्बेंडाजॉल का प्रयोग तथा समय से टीकाकरण का प्रयोग किया गया। मात्स्यिकी में देखा गया कि मौसमी तालाब में धीमे विकास वाली प्रजातियां थीं इसके स्थान पर तेजी से बढ़ने वाली पाकू और सिल्वर कार्प प्रजाति का प्रयोग किया गया। प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन मॉड्यूल में घरेलू महिलाओं को आम से उन्नत अचार तथा अतिरिक्त दूध से घी बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।
इन सभी माड्यूलों में अपनाई गई तकनीकों के प्रयोग का खर्च केवल 8700 रुपये प्रति वर्ष आया तथा वार्षिक आमदनी में 25000 हजार रुपये की वृद्धि हुई। इस प्रकार एक वर्ष के भीतर इन प्रयासों पर खर्च किए एक रुपये पर 1.87 रुपये की प्राप्ति हुई। प्रति परिवार वर्ष में 33,900 की आमदनी हुई जो औसत से 92 प्रतिशत अधिक है। आमदनी के अतिरिक्त, परिवार को घर में बने हुए बेहतर उत्पादों जैसे- दालें, दूध, अण्डा, मशरूम और मछली आदि से पोषण मिला।
आसपास के किसान भी अब इन सुधारों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं क्योंकि इनमें कम खर्च आता है। इतना ही नहीं कृषि प्रणाली में किए गए उपरोक्त प्रयासों के फलस्वरूप पूरे परिवार को 43 दिन का अतिरिक्त रोजगार भी मिला।
(स्रोतः समेकित कृषि प्रणाली पर एआईसीआरपी, पीडीएफएसआर, मोदीपुरम)
(हिन्दी प्रस्तुतिः एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, डीकेएमए, आईसीएआर)
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