जोधपुर से 25 किलोमीटर उत्तर में स्थित मनकलओ गांव के निवासी श्री नन्द किशोर जैसलमेरिया 365 मिमी औसत वर्षा आधारित क्षेत्र में 3.1 हैक्टर कृषि भूमि के मालिक हैं। यह भूमि पूर्व में कृषि योग्य नहीं थी। सूखा पड़ने के दौरान उनकी फसलों से आय बहुत कम थी। 1980 के दशक के पूर्वार्ध में वे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी), जोधपुर के वैज्ञानिकों के संपर्क में आये और उन्होंने संस्थान द्वारा दी गई सलाह एवं कार्यप्रणाली के साथ बेर की उन्नत किस्मों (गोला, सेब, उमरन) के 750 पौधे लगाए। भूमि के उस टुकड़े को एकीकृत कृषि प्रणाली के रूप में विकसित किया गया। बेर के बगीचे के साथ-साथ, उन्होंने वार्षिक फसलों, अंतर-फसलों, मधुमक्खी पालन और 11 बकरियों के पालन का काम भी जारी रखा।
खेत की बाड़ कई तरह के वातरोधी पेड़ों जैसे बबूल, प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा, नीम और आर्थिक महत्व के अन्य मजबूत शुष्क क्षेत्रों के पेड़ों से विकसित की गई। खेत की बाड़ के रूप में वातरोधी पेड़ों के विकास न केवल ईंधन के लिए लकड़ी व चारे का स्थायी उत्पादन प्राप्त होने लगा बल्कि इनसे मिट्टी का संरक्षण, सुरक्षा एवं ऊर्वरता में भी वृद्धि हुई। पहले 20 साल के लिए भूमि पूरी तरह से वर्षा पर आधारित थी परन्तु बाद में एक बोरवेल स्थापित किया गया जिसका पानी खारा था। बेर काफी हद तक खारे पानी की सिंचाई के प्रति सहनशील है। विशेष रूप से फल लगने के दौरान, खारे पानी के साथ पूरक सिंचाई अच्छी उपज के उत्पादन में सहायक रही। 35 वर्षों के बाद भी वर्तमान में खेत एवं बाग अच्छी स्थिति में हैं और ये सतत आय का एक बेहतर स्रोत हैं।
खेत से आमदनी मुख्य रूप से बेर फल की बिक्री, मधुमक्खियों को रखने वाले बक्सों को किराये पर देने से प्राप्त शुल्क, बेर और अन्य पेड़ों के पत्तों, ईंधन के लिए लकड़ियों की छंटाई और बकरियों से आती है। बेर का प्रत्येक पेड़ प्रतिवर्ष 30 कि.ग्रा. की पैदावार देता है। श्री जैसलमेरिया प्रतिवर्ष 41,000 रुपये प्रति हैक्टर की लागत से 3 हैक्टर शुष्क भूमि से लगभग 1,25,000 रुपये वार्षिक की शुद्ध आय प्राप्त करते हैं जो इस क्षेत्र में पारंपरिक वार्षिक फसलों की तुलना में बहुत अधिक है। इस बारहमासी आधारित खेती की प्रणाली से न केवल उच्च आय की प्राप्ति हुई बल्कि इसने सूखे वर्ष के दौरान उत्पादन और आय की स्थिरता भी प्रदान की।
श्री जैसलमेरिया ने अपने खेतों के अलावा, अंकुरित बेर की एक नर्सरी भी शुरू की और किसानों, गैर सरकारी संगठनों और विभिन्न राज्यों के सरकारी विभागों को लाखों पौधें बेचे तथा बेर की उन्नत खेती के तरीकों के प्रसार में योगदान दिया है।
(स्रोतः काजरी, जोधपुर)
(हिन्दी प्रस्तुतिः एनएआईपी मास मीडिया परियोजना, कृषि ज्ञान प्रबंध निदेशालय, आईसीएआर)
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