श्री गुरदीत सिंह (68 वर्ष), गांव रसीदपुर, रोपड़, के पास 4.7 एकड़ से कम जमीन है। वह केवल दसवीं कक्षा तक पढ़े हैं लेकिन कुछ नया सीखने और जानने की उत्सुकता के साथ कड़ी मेहनत करके उन्होंने सब्जियों और फलों के उत्पादन में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। 15 वर्षों तक अरब देशों में रहने के बाद वह वर्ष 1999 में भारत लौट आए। गुरदीत अपने देश में ही कुछ करना चाहते थे। गुरदीत सिंह ने जंगल की पांच एकड़ जमीन खरीदी और उसे पूरी तरह उपजाऊ बना दिया।
उन्होंने वर्ष 2000 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की पंत्रिका ’चंगी खेती’ में प्रकाशित खेती के अभिनव तरीके सीखे और गेहूं या धान जैसी परम्परागत फसलों के बजाय कुछ नया करने की सोची। इसके लिए उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्र रोपण, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और अन्य कृषि विभागों से 20 से ज्यादा प्रशिक्षण प्राप्त किए।
सबसे पहले गुरदीत ने एक एकड़ क्षेत्र में किन्नों का बाग और 0.5 एकड़ क्षेत्र में दशहरी आम का बाग लगाया। आम उगाने के लिए उन्होंने पार्श्व कलम बांधने की तकनीक का प्रयोग किया। इन बागानों से अच्छा मुनाफा मिलने पर उन्होंने एक कैनाल भूमि पर नेट हाउस बनाया और वर्ष 2008 से बहुफसली खेती करने लगे।
अब वे इस नेट हाउस में शिमला मिर्च, धनिया, खीरा, सहित कई अन्य फसलें एक साथ उगाते हैं। इन फसलों से पिछले साल इन्हें एक लाख रुपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हुआ। गुरदीत ने बताया कि वह अपने फलों व सब्जियों की भली प्रकार ग्रेडिंग और पैकेजिंग करने के बाद घर-घर बेचा। इससे उन्हें थोक बाजार की तुलना में 30 से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य मिला। हाल ही में गुरदीत ने सलाद में इस्तेमाल होने वाले टमाटर की किस्म चेरी टमाटर को शहर में 100 रुपए प्रति किलो बेचा। संबंधित विभाग से सब्सिडी मिलने पर वह नेट हाउस को बड़ा करना चाहते हैं।
गुरदीत मिर्च, करेला, फूलगोभी, बेबीकॉर्न, बैंगन और लहसुन उगा रहे हैं। मिर्च (सीएच 1), बैंगन (बीएच 2), शिमला मिर्च (भारत), प्याज (पंजाब नारोया व एन 53) और टमाटर (पंजाब बरखा बहार 1) के नर्सरी पौधों की बिक्री का विशिष्ट कार्य किया है। उन्होंने बताया कि वह कम से कम उर्वरकों का प्रयोग करते हैं और ज्यादातर उत्पाद जैविक हैं। हाल ही में इन्होंने पैकेजिंग मशीन में बदलाव किया है। अब अकेले एक व्यक्ति भी पैकेजिंग कर सकता है।
गुरदीत सिंह की छोटी जोत से भी काफी कमाई हो रही है। ज्यादातर किसान मजदूरों पर निर्भर रहकर संकट के दौर में हैं क्योंकि वे खुद काम करना नहीं चाहते हैं। गांवों में अद्यतन कृषि प्रौद्योगिकियों से कृषि कार्य करने की प्रेरणा देने के लिए वे एक एग्रीकल्चर सोसायटी बनाएंगे। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, किसान क्लब और अन्य जिला स्तरीय संगठनों द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया है।
(स्रोतः एनएआईपी मास मीडिया प्रोजेक्ट, डीकेएमए, कंसोर्टियम पार्टनर सीफेट लुधियाना के सहयोग से)
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