पश्चिमी त्रिपुरा जिले में जोमपुईजाला ब्लॉक में आमतौर से आदिवासी रहते हैं और ये आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर हैं। यहां के निवारी श्री उमेन्द्र देबबर्मा, उम्र 37 वर्ष, के पास मध्याधानीमार गांव में तीन हैक्टर भूमि थी। इसमें सिंचाई सुविधाओं का अभाव था। बिना वैज्ञानिक आदानों के श्री देबबर्मा पारम्परिक तरीके से खरीफ मक्का की फसल उगाया करते थे। 'आत्मा' और कृषि विज्ञान केन्द्र, पश्चिमी त्रिपुरा के प्रौद्योगिकीय तथा महत्वपूर्ण आदानों को उपलब्ध कराने से देबबर्मा जी को खरीफ मक्का उत्पादन में उल्लेखनीय मुनाफा प्राप्त हुआ।
केवीके, पश्चिम त्रिपुरा द्वारा प्रौद्योगिकी सहायता
केवीके, पश्चिमी त्रिपुरा, खोवई के निकट, छेबरी में स्थित है। आत्मा कार्यक्रम के तहत केवीके टीम द्वारा मक्का उत्पादन प्रौद्योगिकी पर फार्म स्कूल के दौरान श्री देबबर्मा, केवीके वैज्ञानिकों के संपर्क में आये और इन्होंने अपनी कृषि संबंधी समस्याएं बतायीं। इनके खेत के प्रोफाइल अध्ययन के पश्चात केवीके ने वर्ष 2014-15 के ग्रीष्मकालीन मक्का उत्पादन प्रदर्शन कार्यक्रम के लिए इनका खेत चुना। केवीके ने मक्का संकर किस्म (दिशा 3502) के बीज उपलब्ध करवाये और केवीके कार्यक्रम समन्वयक के नेतृत्व में विशेषज्ञों के नियमित खेत दौरे आयोजित किये गये।
प्रभाव
केवीके द्वारा सहायता से पूर्व, उनकी आय 24 हजार रु./है. थी और लाभ: लागत अनुपात 1.28 था ये मक्का की कम उत्पादक किस्में उगाते थे। केवीके द्वारा उपयुक्त प्रौद्योगिकी सहायता के पश्चात श्री उमेन्द्र देबबर्मा को 4.5 टन/है. उपज प्राप्त हुई और इन्हें 20 रु./कि.ग्रा. स्थानीय बाजार में उपज बेचने से 9 हजार/है. कुल लाभ प्राप्त हुआ। भूमि की तैयारी, आदान लागत, मजदूरी इत्यादि पर कुल 31 हजार रु./है. खर्च आया। इस तरह प्रौद्योगिकी सहायता के बाद इनका शुद्ध लाभ 59 हजार रु. और लाभ: लागत अनुपात 2.9 रहा। मक्का उत्पादन से खुश होकर इन्होंने मक्का की आय से पम्पसैट खरीदा है। इसके अलावा अब ये दूसरे किसानों को भी प्रत्येक फसल के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाने लिए उत्साहित कर रहे हैं।
(स्रोत: केवीके, पश्चिम त्रिपुरा)
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