उत्तराखण्ड के देहरादून जिले के कलसी और चकराता ब्लॉक में जौनसार आदिवासी क्षेत्र हैं जहां परंपरा से मक्का की खेती की जाती है। उत्तराखण्ड में मक्का की खेती के अंतर्गत कुल 27,895 हजार हैक्टर क्षेत्र है जिसमें से देहरादून में कुल 9,115 हजार हैक्टर क्षेत्र में मक्का की खेती होती है। यह राज्य में कुल मक्का की खेती के क्षेत्र का लगभग 33 प्रतिशत है। इसमें से लगभग 45 प्रतिशत जिले के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है और उसमें मुख्यत: कलसी और चकराता के आदिवासी ब्लॉक आते हैं। तथापि, पहाड़ी क्षेत्र से मक्का के उत्पादन में केवल 30 प्रतिशत का योगदान दिया जाता है जिसका कारण जिले के मैदानी भाग (1,879 कि.ग्रा./है.) की तुलना में मक्का की निम्न उत्पादकता (976 कि.ग्रा./है.) है। यह उत्पादकता स्तर राज्य के सम्पूर्ण पर्वतीय क्षेत्र के मामले में प्राप्त होने वाले औसत (1,187 कि.ग्रा./है.) से भी कम है।
पर्वतीय क्षेत्र में मक्का की सकल उत्पादकता को बढ़ाने के प्रयास में भा.कृ.अनु.प. – विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में खेती की उन्नत विधियों के साथ अनेक संकर किस्में विकसित की गई हैं। इनमें से विवेक मेज हाइब्रिड 45 एक अगेती पकने वाली (85-90 दिन) तथा उच्च उपजशील (50-55 क्विंटल/हैक्टर) किस्म है जो टर्सिकम तथा मेडिस पत्ती झुलसा की सहिष्णु हैं। यह संकर जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड में उगाए जाने के लिए वर्ष 2013 में केन्द्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जारी की गयी थी। इसके पौधे की ऊंचाई 200-205 सें.मी. होती है जिसमें लंबे बेलनाकार भुट्टे लगते हैं जिन पर श्रेष्ठ छिलका ढका होता है। इस किस्म के दाने भारी (1000 दानों का औसत भार 335 ग्रा.), पीले रंग के व बनावट में अर्ध पिचके होते हैं। इसमें 'हरे बने रहने का गुण' है जिससे इस किस्म का पौधा पके हुए भुट्टे तोड़ने के पश्चात् हरे चारे के रूप में उपयोग में लाए जाने की दृष्टि से उपयुक्त है।
कथित ब्लॉकों में मक्का की उत्पादकता बढ़ाने के लिए विवेक मेज़ हाइब्रिड 45 मक्का की खेती की सिफारिश की गई। मक्का का उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से खरीफ 2015 के दौरान इस क्षेत्र में अग्र पंक्ति प्रदर्शन आयोजित किए गए। अग्र पंक्ति प्रदर्शन आयोजित करने की पूर्व शर्त के रूप में 'पर्वतीय फसलों की उन्नत उत्पादन तकनीकें' शीर्षक के अंतर्गत प्रशिक्षण कार्यक्रमों के अतिरिक्त खेत प्रदर्शनों का भी आयोजन किया गया। यह प्रशिक्षण भा.कृ.अनु.प. – वीपीकेएएस, अल्मोड़ा की आदिवासी उपयोजना घटक के अंतर्गत मई 2015 में कलसी ब्लॉक के धानपाउ, सावदा और लखवाद गांवों के किसानों के लिए मक्का की फसल पर विशेष ध्यान देने के लिए आयोजित किया गया था। इसके पश्चात् इन गांवों के किसानों को जून 2015 में मक्का के संकर बीजोत्पादन पर एक हैंड्स ऑन प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया तथा गांव समूह के 10 हैक्टर क्षेत्र में विवेक मेज हाइब्रिड 45 के प्रदर्शन लगाए गए।
किसानों के अनुसार कलसी और चकाराता में विवेक मेज हाइब्रिड 45 की उपज उनकी स्थानीय किस्मों की तुलना में दोगुनी थी (इसकी पुष्टि वैज्ञानिकों के प्राथमिक मूल्यांकन से भी हुई)। ऐसा इस मौसम में सामान्य से कम वर्षा होने के बावजूद हुआ। किसानों ने यह भी बताया कि इस संकर किस्म में तेज चलने वाली हवाओं से होने वाली क्षति भी कम हुई। संकर के 'हरा बने रहने के गुण' की किसानों ने विशेष रूप से प्रशंसा की। विवेक मेज हाइब्रिड45 के निष्पादन से उत्साहित होकर किसानों ने अगले फसल मौसम के दौरान इस किस्म को उगाने के प्रति अपनी उत्कंठा व्यक्त की और वे संस्थान से इस किस्म के बीज को पर्याप्त मात्रा में प्राप्त करने की अपेक्षा कर रहे हैं। इस संकर किस्म के बीज की वांछित मात्रा को दीर्घावधि में टिकाऊ रूप से आपूर्ति करने के लिए संस्थान ने ग्राम समूह के स्तर पर मक्का के संकर बीजोत्पादन की प्रणाली स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं और इस प्रकार, इस प्रक्रिया में स्थानीय उद्यमशीलता को भी बढ़ावा मिला है।
यह संस्थान निचले स्तर के हस्तक्षेपों के माध्यम से और अधिक पहल लेने के लिए तैयार है जिसमें मक्का छीलने की मानवीय विधि के स्थान पर श्रम को कम करने की विधि से छिलाई करना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना, राज्य में कुक्कुट, खाद्य तथा अन्य उद्योगों से सम्पर्क स्थापित करके उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करना, मक्का बीजोत्पादन हब के रूप में साथ के मैदानी क्षेत्रों को विकसित करना जैसे पहलू शामिल हैं।
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