गोवा में खारा जल संसाधन विपुल मात्रा में मौजूद है और यहां का 330 हैक्टर क्षेत्र तटवर्ती समुद्री जीव पालन को बढ़ावा देने के लिए उपलब्ध है। तथापि, लोगों के बीच प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों के बारे में कमी इस क्षेत्र में समुद्री जीव पालन की दिशा में वांछित विकास न हो पाने का प्रमुख कारण पाया गया है। पर्यटकों की पसंद का स्थल होने के नाते तथा अधिकांश जनसंख्या के मछली भोगी होने के नाते गोवा में फिन फिश तथा शैलफिश की बहुत मांग है।
हरा सीप, पेरना विरिडिस जिसे स्थानीय लोग 'जि़नेनेयो' के नाम से बुलाते हैं, गोवा के लोगों के द्वारा पसंद की जाने वाली द्विकपाटीय समूह की प्रमुख शैलफीश प्रजाति है। 40-60 मि.मी. आकार के एक सीप का औसत भार 30-33 ग्रा. होता है और गोवा के फुटकर बाजार में इसकी कीमत लगभग 5 से 8 रुपये है। यह प्रजाति 25-32 पीपीटी की लवणता से युक्त खारे जलों में बहुत अच्छी वृद्धि प्राप्त करती है। इसलिए गोवा के अभी तक उपयोग में न आए खारे जल वाले क्षेत्रों में सीप पालन की तकनीकों के माध्यम से संसाधनों को बढ़ाकर भविष्य में मछली भोजियों की मांग पूरी की जा सकती है। रैक,रैफ्ट जैसी विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके सीप पालन तथा पर्यावरण हितैषी विधियों को अपनाकर इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त की जाती है। इसके लिए आहार,उर्वरक तथा अन्य सामग्री जैसे बाहरी निवेशों की भी आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार, इस पालन प्रणाली को बनाए रखना अपेक्षाकृत आसान है। सामान्यत: इनकी कल्चर अवधि तटवर्ती क्षेत्रों तथा उप ज्वारीय पट्टियों में पर्याप्त सीप जीरा स्थापित होने के पश्चात् नवम्बर या दिसम्बर में आरंभ होती है। यह अवधि मई अर्थात् लगभग 6-7 महीनों तक रहती है। तथापि, इनका प्रग्रहण जून से पहले कर लिया जाना चाहिए क्योंकि मानसूनी वर्षा से जल की लवणता घट जाती है और इससे सीप की वृद्धि प्रभावित होती है।
इस पृष्ठभूमि में भा.कृ.अनु.प. के गोवा स्थित अनुसंधान परिसर ने पिछले छह वर्षों में नवम्बर के दौरान एंटोनियो बास्को मैनेंजिस, गोवावेल्हा की शूकर पालन इकाई के साथ एकीकृत करते हुए 0.6 हैक्टर की अर्ध-सम्बद्ध जलशय में पी. विरिडिस के रैक पालन पर प्रदर्शन आरंभ किया। रैक संरचना में स्टॉकिंग के लिए 1 कि.ग्रा. सीप स्पैट (28 मि.मी. लंबाई के औसत आकार व 2 ग्रा. भार के) का उपयोग किया गया। जल, तलछट तथा सीप के भौतिक रासायनिक व जीवविज्ञानी प्राचलों का द्विसाप्ताहिक विश्लेषण करते हुए नियमित निगरानी की गई तथा मानचित्र परामर्श प्रदान किए गए। मछली पालक किसानों ने 60 कि.ग्रा. सीप स्पैट से कुल 186.125 कि.ग्रा. भार के 5760 सीपों का उत्पादन किया। प्रत्येक सीप को जिसका औसत भार 33 ग्रा. था, 5/- रु. प्रति नग के हिसाब से बेचा गया। कुल उत्पादन लागत लगभग 14,370/- रु. थी। कुल लाभ तथा शुद्ध लाभ क्रमश: 28,800रु. और 16,510 रु. था।
इस प्रौद्योगिकी के सफल प्रदर्शन के पश्चात् लगभग 15 किसानों ने मानसून के पश्चात अगले मौसम में गोवा के मुहानों तथा तटवर्ती जलों में सीप पालन में रूचि प्रदर्शित की है। इस प्रकार, सीप पालन के सफल प्रदर्शन से गोवा में तटवर्ती समुद्री जीवपालन के विकास के मार्ग प्रशस्त हुए हैं।
(स्रोत: भाकृ.अनु.प. अनुसंधान परिसर गोवा)
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