कलमकारी का अर्थ कलम की सहायता से छपाई की कला है। यह कपड़ों पर पेंटिंग तथा छपाई की एक पुरानी दस्तकारी है। कलमकारी आंध्र प्रदेश में दो विभिन्न शैलियों में यहां के दो गांवों नामत: श्री कालाहस्ती और मछलीपट्टनम में पिछले 3,000 वर्ष पूर्व विकसित हुई थी। 'मछली पट्टनम कलमकारी’ को सकल पुष्पीय लताओं/फारसी डिजाइनों से देखकर पहचाना जा सकता है जो ब्लॉक द्वारा छापे जाते हैं और प्राकृतिक वानस्पतिक रंगों का उपयोग करके परंपरागत श्रम साध्य विधियों से तैयार किए जाते हैं। मछलीपट्टनम इस कला का केन्द्र है और यहां वनस्पतियों से तैयार किए गए रंगों का उपयोग करके कलमकारी का काम किया जाता है। इस परंपरागत कला के दस्तकार नए स्रोतों तथा रंजन प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ छपाई की नई विधियों की लंबे समय से मांग कर रहे थे ताकि उनके व्यापार में विविधीकरण हो और यह बड़े सिलसिलाए वस्त्र उद्योग तक पहुंच सके।
राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंध अकादमी (नार्म) हैदराबाद द्वारा व्यापार नियोजन एवं विकास परियोजना के अंतर्गत इस कौशलपूर्ण कला को विकसित करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकियां खोजने के लिए पहल की गई। राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेष परियोजना (एनएआईपी), प्राकृतिक रंजकों में मूल्य श्रृंखला (वीसीएनडी) परियोजना से सृजित पौधों पर आधारित आधुनिक रंजन प्रौद्योगिकियों को स्टेकहोल्डरों तक हस्तांतरित करने के लिए गृह विज्ञान विभाग, आचार्य एन.जी. रंगा कृषि विश्वविद्यालय (अंगारू), हैदराबाद द्वारा पहचाना गया। इस परियोजना में परंपरागत कला की स्थानीय पारिस्थितिक प्रणाली के लिए उपयुक्त विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इन प्रौद्योगिकियों को और अनुकूल बनाया गया।
पांच नए रंगों, उन्हें निष्कर्षित करने की तकनीकों और पूरी क्रियाविधि को कलमकारी समूह के पांच मास्टर कला दस्तकारों को उपलब्ध कराया गया। प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराने के साथ-साथ प्रशिक्षित दस्तकार 30 से अधिक कर्मियों के लिए स्थल पर दिए गए प्रशिक्षण का अंग बने। आधुनिक प्रौद्योगिकियों का अंतिम स्तर तक हस्तांतरण किया गया ताकि दस्तकारों द्वारा प्रौद्योगिकी की जो कमी अनुभव की जा रही थी, उसे दूर किया जा सके। इस प्रौद्योगिकी का उपयोग करके रंगाई, छपाई और सिलेसिलाए वस्त्र तैयार करने की एक नई इकाई स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस प्रक्रिया में नार्स से विकासकर्ताओं द्वारा विकसित की गई प्रौद्योगिकी को वेजिटेबल हैंडब्लॉक कलमकारी प्रिंटर्स वेलफेयर एसोसिएशन (दस्तकारों की एसोसिएशन) जैसे लक्षित प्रौद्योगिकी खोजने वालों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है। श्री सज्जा नागेश्वर राव ने बताया कि इस प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से कलमकारी कला में नई रंगाई तथा छपाई की तकनीकों के और बेहतर होने के अवसर बढ़े हैं। नार्म द्वारा उपलब्ध कराए गए कुशलता विकास कार्यक्रम से नई तकनीकों को अपनाने की प्रक्रिया में एक नया दृष्टिकोण उभरा है जिससे समय और धन दोनों की बचत हुई है। इससे उत्पाद का मूल्यवर्धन हुआ है और बाजार में नकली माल से बचते हुए वर्तमान ट्रेंडी डिजाइनों के कारण इनके विपणन में वृद्धि हुई है।
ऐसी आशा है कि इस सम्पर्क से ग्रामीण आंध्र प्रदेश में 15वीं शताब्दी की इस परंपरागत कला में नवीनता आएगी तथा उद्यमशीलता का विकास होगा और फैब इंडिया तथा राष्ट्रीय कपड़ा कार्यक्रम जैसे व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे। पहले भी एसोसिएशन को नार्म द्वारा चलाई गई एक जागरूकता कार्यशाला के दौरान 24 जुलाई 2013 को जीआई रजिस्ट्री से 'भौगोलिक संकेत' अनुदार स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है।
(स्रोत: नार्म हैदराबाद)
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