बिनौला उत्पादन एक श्रम गहन उद्योग है जिसमें विशेष रूप से पौधे के विपुंसीकरण और परागण के दौरान प्रति एकड़ औसतन 10 कुशल कर्मियों की आवश्यकता होती है। इसमें पर्याप्त निवेश लगता है और लाभ प्राप्त होने में लगभग 10 महीने लग जाते हैं। इससे लाभ प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी संबंधी उचित हस्तक्षेपों के साथ-साथ प्रबंध और प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। इस उद्देश्य से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी), उदयपुर, राजस्थान में 'एकीकृत फार्मिंग प्रणाली और प्रौद्योगिकी मॉडलों के माध्यम से आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आजीविका तथा पोषणिक सुरक्षा' विषय पर राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेष परियोजना (एनएआईपी) की उप परियोजना के अंतर्गत एक पहल की गई। एनएआईपी के प्रयासों से ढुंगरिया एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड (डीएपीसीएल), मेवाड़, ढुंगरपुर की एक उत्पादक कंपनी के रूप में स्थापना करके उसका पंजीकरण किया गया।
डीएपीसीएल से सम्बद्ध किसान
स्वयं सहायता के सिद्धांतों का उपयोग करके डीएपीसीएल ने 41 कृषक व्यापार समूह (एफबीजी) सृजित किए जिसमें 622 सदस्य थे। इन्हें बचत करने में सुविधा प्रदान की गई तथा विपणन की शक्ति सृजित करने के लिए किसानों द्वारा उपजाई गई अतिरिक्त सामग्री को समूहित किया गया। इस संस्था ने ढुंगरपुर जिले के 10 गांवों में प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण के सत्र आयोजित किए। राजस्थान के बांसवाड़ा और ढुंगरपुर जिले में उत्पादक कंपनियों (पीसी) ने किसानों को एक्सेस विकास सेवाओं से जोड़ा और उनके साथ सहयोग किया। पीसी का मुख्य उद्देश्य फार्म उपज को एक साथ खरीदना और उसका विपणन करना है ताकि किसानों को बेहतर लाभ मिल सके।
कृषि कंपनी के साथ साझेदारी
डीएपीसीएल ने बिनौले की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए हिम्मतनगर, गुजरात में स्थित एक कृषि कंपनी से समझौते पर हस्ताक्षर किए। इससे लागत संबंधी पारदर्शिता सुनिश्चित हुई, भुगतान संबंधी अनुसूची तय की गई, किसानों को नियमित तकनीकी सहायता प्रदान की गई और निवेशों की सकल लागत कम करने के लिए सामूहिक युक्ति का उपयोग किया गया। इस साझेदारी के पश्चात् किसानों की संख्या तथा डीएपीसीएल के बिनौला उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। वर्ष 2010-11 में केवल 42 किसान इस संस्था से सम्बद्ध थे लेकिन 2012-13 में यह संख्या बढ़कर 287 पहुंच गई। डीएपीसीएल का लक्ष्य 2014-15 में 1000 किसानों को जोड़ना है।
दोनों पक्षों को लाभ
डीएपीसीएल के राजस्व का मुख्य स्रोत सामूहिक निवेश आपूर्ति, बिनौले का उत्पादन, सामूहिक विपणन और तकनीकी फार्म सेवाएं प्रदान करना है। व्यापार संबंधी इन गतिविधियों के माध्यम से कंपनी किसानों को निरंतर वांछित सेवाएं उपलब्ध कराती है और परिचालन लागत को कम करते हुए उनके लाभ को बढ़ाने का प्रयास करती है। डीएपीसीएल का टर्न ओवर 2010-11 में 9.51 लाख रु., 2011-12 में 25.78 लाख रु. था जो 2012-13 में बढ़कर 66.44 लाख रु. हो गया। विभिन्न कृषि कंपनियों से साझेदारी के माध्यम से किसान बीजोत्पादन के वांछित निवेशों की बचत करते हैं। उन्हें ये निवेश बाजार मूल्य से कम से कम 20 प्रतिशत कम दर पर प्राप्त होते हैं। एमपीयूएटी द्वारा ढुंगरपुर जिले में इस मॉडल् के सफल कार्यान्वयन और एक्सेस विकास सेवाओं से किसानों की आमदनी बढ़ी है। वर्ष 2010-13 से एक किसान की शुद्ध औसत आय 1 हैक्टर भूमि से 15168 रु. हुई है। यह आय एनएआईपी के कार्यान्वयन के पूर्व होने वाली शुद्ध आय की तुलना में 39 प्रतिशत अधिक है। 2014-15 तक इसके 19,846 रु. होने की संभावना है।
हरिलाल ने उत्पादक कंपनी से हाथ मिलाया
हरि लाल (52) वतादा गांव के हैं और पिछले 10 वर्षों से बिनौला उत्पादन के कार्य में लगे हैं। वे 2010-11 में डीएपीसीएल में आए। इसके बाद से उन्हें अनेक लेन-देनों में पारदर्शिता बढ़ने के कारण लाभ हुआ है। पहले जो वे खर्च करते थे उसका अधिकांश भाग अब डीएपीसीएल द्वारा वहन किया जा रहा है। प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभों में शामिल है : अदायगी की निर्धारित शर्तें, परिवहन लागत में कमी तथा ओटाई की लागत अब डीएपीसीएल वहन कर रही है। कृषि विश्वविद्यालय की सहायता से कपास के प्लॉटों की गहन निगरानी भी की जा रही है।
स्वयं सहायता के सिद्धांतों पर कार्य करना
मंडल के निदेशक, अध्यक्ष और एफबीजी के सचिव प्रौद्योगिकी एजेंटों के रूप में कार्य कर रहे हैं तथा सामूहिक निवेश आपूर्ति और माल के विपणन के लिए कृषि विज्ञान केन्द्र जैसी संस्थाओं व उत्पादक एजेंटों के बीच सेतु के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह परियोजना चार पिछड़े जिलों नामत: उदयपुर, बांसवाड़ा, ढुंगरपुर और सिरोही में 10 समूहों में 78 गांवों में चल रही है। परियोजना का उद्देश्य एकीकृत फार्मिंग प्रणाली मॉडलों तथा व्यावहारिक प्रौद्योगिकियों को अपनाकर तीन वर्ष में किसानों की आय को दोगुना करना है। इसे निजी क्षेत्र में पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध कराके बाजार से भी जोड़ा गया है ताकि किसानों को मोल-तोल करने में सहायता मिले और उत्पादक विपणन कंपनी के अंतर्गत स्वयं सहायता के सिद्धांतों को अपनाते हुए किसानों के समूह को कृषक व्यापार केन्द्रों के रूप में संगठित करते हुए उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलाया जा सके।
(स्रोत: एनएआईपी – एमपीयूएटी उदयपुर तथा डीएमएपीआर आणंद से प्राप्त इनपुट सहित मास मीडिया परियोजना डीकेएमए)
Like on Facebook
Subscribe on Youtube
Follow on X X
Like on instagram