निकोबार द्वीप समूहों के आदिवासियों के लिए समेकित खेती

निकोबार द्वीप समूहों के आदिवासियों के लिए समेकित खेती

ss-08-11-2013-2_0.jpgकृषि कार-निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी समाज की मुख्‍य आर्थिक गतिविधि है लेकिन यह पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है और कृषि क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक भाग में नारियल की खेती की जाती है। इसके अलावा इस द्वीप में केला, पपीता, कसावा और शकरकंद भी उगाए जाते हैं। पहले किसान जीवन-यापन के लिए या प्राकृतिक रूप से खेती करते थे और किसी भी उर्वरक का उपयोग नहीं करते थे। पूरी आदिवासी जनसंख्‍या सरकारी एजेंसियों द्वारा अनुमानित दर पर आपूर्ति किए जाने वाले खाद्य पदार्थों पर निर्भर है। द्वीप में फलों की अनुपलब्‍धता के कारण कुछ कंद फसलों, केला और अनन्‍नास को छोड़कर फल और सब्जियां सामान्‍यत: इनके आहार में शामिल नहीं हैं।

सीएआरआई का हस्‍तक्षेप
द्वीप की भौतिक, सामाजिक व आर्थिक सीमाओं को ध्‍यान में रखते हुए केन्‍द्रीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान (सीएआरआई) ने भागीदारी मोड में घर के आस-पास खेती के लिए एक समेकित फार्मिंग प्रणाली का मॉडल विकसित किया। इस मॉडल के अंतर्गत आदिवासी रिहायशी क्षेत्र के निकट 400 वर्ग मी. का बाड़युक्‍त क्षेत्र तैयार किया गया जहां घर के पिछवाड़े मुर्गी पालन, बकरी पालन तथा कार्बनिक व्‍यर्थ पदार्थ के पुनश्‍चक्रण के लिए केंचुए की खाद तैयार करने की एक समेकित इकाई स्‍थापित की गई। यह मॉडल कार-निकोबार के किन्‍मई और किमिओस गांवों में लागू किया गया तथा इससे 40 कृषक परिवारों को सीधे-सीधे लाभ हुआ। समेकित फार्मिंग प्रणालियों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं की आदिवासी उपयोजना के अंतर्गत समेकित फार्मिंग पर संवेदीकरण कार्यक्रम के पश्‍चात् 400 वर्ग मी. के क्षेत्र को फल और सब्जियां उगाने व कुक्‍कुटों व चार बकरियों का कम लागत का शरणस्‍थल बनाने के लिए बाड़बंद किया गया। सब्‍जी और फलों की खेती में कुशलता प्राप्त करने के पश्‍चात् सब्जियों (भिण्‍डी, बैंगन, टमाटर, हरी चौलाई,खीरा, करेला और लौकी) के बीज तथा फलों की कलमें (केला, अनन्‍नास और पपीता) प्रतिभागियों में बांटे गए। बहुद्देशीय फलीदार वृक्ष सेस्‍बेनिया प्रजाति (अगाथी) को जैविक बाढ़, हरे चारे तथा हरी पत्तियों की खाद के रूप में इस्‍तेमाल करने के लिए मुख्‍य भूमि से पहली बार यहां लाया गया।

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प्रभाव
आरंभ में किसान इस मॉडल को अपनाने के बारे में झिझक रहे थे लेकिन कुछ समय बाद उनके घर के पिछवाड़े फलों व सब्जियों के उगने तथा तेजी से बढ़वार पाने वाले स्‍वस्‍थ चूजों और बकरे-बकरियों के जन्‍म के कारण उनकी प्रवृत्ति में परिवर्तन आया। निकोबार में पहली बार ग्रामवासियों ने अपने घर के पास बनी गृह वाटिका में सब्जियों की भरपूर फसल ली।

कुमारी शिल्‍पा उन लाभार्थियों में एक हैं जिन्‍होंने उत्‍साह दिखाते हुए इस प्रौद्योगिकी को अपनाया। ये किन्‍मई गांव की रहने वाली हैं। उन्‍होंने इस शुरूआत के चार माह के अंदर 50 कि.ग्रा. भिण्‍डी, 20 कि.ग्रा. हरी चौलाई, 10 कि.ग्रा. मूली और  10 कि.ग्रा. लौकी की उपज ली। अब ये न केवल अपने गांव के लिए बल्कि निकोबार के समस्‍त आदिवासी समुदाय के लिए रोल मॉडल बन गई हैं। ऐसा ही उन अन्‍य निकोबारियों के मामले में हुआ जिन्‍होंने इस मॉडल को अपनाया। अब, अन्‍य गांवों के किसान भी इन किसानों की सफलता से प्रेरित हुए हैं तथा अधिकांश गांव के प्रधान अपने गांवों में ऐसा मॉडल लागू करने का अनुरोध कर रहे हैं। इस प्रकार के हस्‍तक्षेपों से इस नाजुक द्वीप पारिस्थितिक प्रणाली के अंतर्गत दुर्लभ संसाधनों के उपयोग पर सकारात्‍मक प्रभाव पड़ा है तथा कुल मिलाकर किसानों को लाभ हुआ है।

(स्रोत: सीएआरआई पोर्ट ब्‍लेयर)

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