भारतीय मेजर कार्प (आईएमसी) ओडिशा में किसानों के तालाबों में जून-अगस्त के दौरान प्रजनन करती हैं। ब्रूड के पछेती परिपक्वन तथा परंपरा से चले आ रहे इस विश्वास के कारण कि अगेती प्रजनित स्पॉन घटिया स्तर का होता है, इस प्रवृत्ति में आरंभ में कोई बदलाव नहीं आया। ओडिशा के खोरधा जिले के अंतर्गत बलियांता ब्लॉक के सरकाना गांव के श्री बाटाकृष्ण साहू (बाटाबाबू) इस क्षेत्र के एक प्रगतिशील मछली पालक हैं जिन्होंने परंपरागत प्रजनन प्रबंध योजना के द्वारा जून-अगस्त 2012 के दौरान 20 करोड़ कार्प स्पॉन उत्पन्न किए। इस तथ्य के बावजूद कि बाटाबाबू पिछले 20 वर्षों से मछली जीरे का उत्पादन कर रहे थे, उन्होंने आईएमसी के अगेती प्रजनन की किसी भी संभावना पर विचार नहीं किया।
श्री साहू को उनके तालाब में कार्पों के अगेती परिपक्वन के लिए सीफाब्रूडTM को आजमाने का परामर्श दिया गया। चूना तथा महुआ की खली के साथ संक्षिप्त लेकिन नियमित तैयारी के बाद एक साथ स्थित दो तालाबों (प्रत्येक 0.3 हैक्टर क्षेत्र का) को 1,000 कि.ग्रा./है. के घनत्व पर 250 कतला, रोहू और मृगल (2012 में प्रजनित) के साथ 2 फरवरी 2013 को स्टॉक किया गया। भरण परीक्षण 18 फरवरी 2013 को आरंभ किया गया तथा प्रायोगिक तालाब में सीफाब्रूडTM को उनके कायाभार का 3 प्रतिशत आहार दिया गया। तुलनीय तालाब में फार्म पर बना आहार उपलब्ध कराया गया। पालन के 30 दिन बाद श्री साहू ने नोट किया कि प्रायोगिक तालाब में तुलनीय तालाब की अपेक्षा कतला नस्ल की मछलियां अधिक स्वस्थ व अधिक चमकदार थीं। रोहू और मृगल के लगभग सभी नरों व मादाओं तथा कतला के कुछ नरों व मादाओं ने भरण के 30 दिनों के अंदर गुणप्ररूपी परिपक्वन के लक्षण प्रदर्शित किए। ये मछलियां अप्रैल 2013 के प्रथम सप्ताह में (48 दिनों में) परिपक्व हो गईं, यद्यपि न तो तालाब का पानी बदला गया और न ही कोई अन्य प्रबंधन विधि को अपनाना संभव हुआ।
तेज गर्मी (42 से 450 से.), पानी की अत्यधिक कमी, स्पॉन खरीदने वालों के बारे में कोई सुनिश्चितता न होने, अपने नर्सरी तालाबों के तैयार होने व अगेती प्रजनित होने वाले स्पॉन के जीवित रहने के बारे में विश्वास की कमी के कारण आरंभ में किसान इस प्रजनन कार्यक्रम को अपनाने के बारे में झिझक रहे थे। ब्रूड स्टॉक को प्रायोगिक तालाब से अन्य स्थान पर हस्तांतरित किया गया क्योंकि जल की बहुत कमी थी।
पहले आरंभ किया गया प्रजनन कार्यक्रम उत्प्रेरण एजेंट के रूप में ओवा-एफएच का उपयोग करके मृगल ब्रूड के साथ 22 अप्रैल 2013 को सम्पन्न किया गया। एक अन्य प्रजनन कार्यक्रम 13 और 18 मई 2013 को कतला पर तथा 31 मई 2013 को रोहू पर सम्पन्न किया गया। परीक्षित तीनों प्रजातियों में 100 प्रतिशत प्रजनन अनुक्रिया थी और अंडों का पूर्ण विमोचन हुआ। निषेचन दर और स्पॉन की प्राप्ति 90 प्रतिशत से अधिक थी। इसके विपरीत तुलनीय तालाब में किसी भी ब्रूड को प्रजनन कार्य के लिए तैयार नहीं पाया गया।
मई 2013 के अंत में उन्होंने 34 ब्रूड प्रजनित किए तथा 83 लाख स्पॉन उत्पन्न किए और 15 जून 2013 तक 2 करोड़ गुणवत्तापूर्ण स्पॉन को बेचा तथा अधिकांश ब्रूड अब भी प्रजनित किए जाने शेष हैं। उन्हें आशा है कि सीफाब्रूडTM भारित मछली तथा उनके अपने आहार से भरित ब्रूड स्टॉक से वे अगस्त, 2013 के अंत तक 30 करोड़ से अधिक स्पॉन का उत्पादन कर सकेंगे (50 प्रतिशत वृद्धि)। अप्रैल में स्पॉन को बेचने की कोई आरंभिक समस्या नहीं हुई और लगभग सभी स्पॉन को बेच दिया गया और इस प्रकार जिस दिन स्पॉन को तालाबों से निकाला गया उसी दिन नियमित खरीददारों ने उन्हें खरीद लिया। इस किसान द्वारा तेज गर्मी के दौरान आईएमसी के अगेती प्रजनन में प्राप्त की गई प्रथम सफलता से उनमें विश्वास उत्पन्न हुआ। इसके अलावा उनके साथ ही स्पॉन खरीददारों के सहयोग से उन्हें आने वाले वर्षों में फरवरी-मार्च में अगेती प्रजनन कार्यक्रम को अपनाने की प्रेरणा मिली है। अगेती प्रजनित (अप्रैल में) स्पॉन 15 जून 2013 तक फिंगरलिंग के आकार तक बढ़ गए और उन्हें तथा अन्य नर्सरी उत्पादकों को प्रति नग एक रुपया प्राप्त हुआ। स्पॉन खरीददारों के अनुसार फिंगरलिंग की जीवित रहने की दर 40-70 प्रतिशत के बीच है जबकि पिछले वर्षों में स्पानिंग मौसम के दौरान 30 प्रतिशत की सामान्यता देखी गई थी। फिंगरलिंग जून के मध्य से अक्तूबर तक ग्रो आउट कल्चर के लिए स्टॉकिंग हेतु तैयार हो जाते हैं और वृद्धि के उद्देश्य से लगभग 3महीने का अतिरिक्त समय मिल जाता है। श्री साहू का मानना है कि सीफाब्रूडTM की सहायता से अगेती प्रजनन से आने वाले वर्षों में सर्वोच्च गर्मी के दौरान भी स्पॉन खरीदने वालों की संख्या में तेजी से वृद्धि होगी और इसका मीठा जल जल जंतुपालन के क्षेत्र में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
(स्रोत : सीआईएफए भुबनेश्वर ओडिशा)
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