श्री नीम तशेरिंग लेपचा, आयु 26पूर्वी सिक्किम के निवासी आजीविका के लिए अपने दो हैक्टर खेत में पारंपरिक खेती करते थे। कठिन परिश्रम के बावजूद भी उत्पादन कम और आय संतोषजनक नहीं थी। इसी क्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र, भाकृअनुप केन्द्र, रानीपूल, पूर्वी सिक्किम द्वारा तीन वर्षों (2013-2016) तक दिये गए सहयोग से श्री लेपचा की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हुआ।
तकनीकी हस्तक्षेप
जैविक खती के लिए तकनीकी सहयोग उत्तर पूर्वी क्षेत्र के लिए भाकृअनुप अनुसंधान परिसर, सिक्किम, प्रशिक्षण केन्द्र द्वारा आदानों के सहयोग तथा खेत प्रदर्शनों के माध्यम से विकास में योगदान दिया गया। राष्ट्रीय जलवायु समुत्थानशील कृषि नवाचार (एनआईसीआरए) के तहत इनको विभिन्न सहयोग दिए गए। इस सहयोग का उद्देश्य यह था कि किसान की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्हें पारंपरिक खेती की बजाय एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस) की ओर उन्मुख किया जाय। केवीके द्वारा दिये गए सहयोगों में प्रमुख रूप से जलकुंड बनाने के लिए एग्री-पॉलीथीन शीट (250 जीएसएम), सूक्ष्म वर्षाजल एकत्रण संरचना, सब्जी की क्रमबद्ध खेती के लिए कम लागत वाली प्लास्टिक की पाईप (पारदर्शक 45 जीएसएम यूवी स्थिर शीट), चावल की फसल के पश्चात बिना जुताई के खेती के लिए मटर (टीएसएक्स-10) की बीज, उन्नत मक्का किस्म आरसीएम 1-1 और उन्नत चावल किस्म आरसीएम 10, आंगन में मुर्गी पालन के लिए ‘वनराजा’ किस्म तथा चारा उत्पादन के लिए नेपियर संकर इत्यादि शामिल हैं।
इसके साथ ही वैज्ञानिक प्रबंधन विधियों के तहत ग्रास कार्प और कॉमन कार्प, दूधारू गाय में संकर जर्सी और बड़ी इलायची की सावनी और वारंलांगी किस्मों से भी इन्हें परिचित कराया गया। सब्जियों में बंदगोभी, फूलगोभी किस्म सुहासिनी, ब्रोकोली किस्म एवरेस्ट, टमाटर किस्म अर्का सम्राट, धनिया की किस्म सुपर मिडोरी से भी उन्हें परिचित कराया गया। प्राप्त आदानों से सुपर मिदोरी, पालक, चायनीज सफेद मूली की खेती क्रमबद्ध तरीके से कम लागत वाले प्लास्टिक टनल में की गई। 5 मी x 4 मी. x 1.5 मी. (क्षमता 30,000 ली.) आकार के जीवन रक्षक जलकुंड का भी निर्माण किया गया। गुरुत्वाकर्षण आधारित फव्वारा सिंचाई प्रणाली फसलों की सिंचाई आवश्यकता को पूरा करने में एक अनिवार्य उपकरण साबित हुई है। इसके साथ ही किसानों को एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के विविधीकरण को चुनने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
प्रभाव
छोटी सी अवधि में क्षमता निर्माण के माध्यम से ये अपनी क्षमता, उत्साह और संस्थागत हस्तक्षेप के द्वारा एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के प्रगतिशील किसान के रूप में पहचाने जाने लगे। वर्तमान में श्री लेपचा की शुद्ध आय 4,15,050/रु. - [(चावल की खेती (0.25 हैक्टर) = 8000 रु., मक्का उत्पादन से (0.25 हैक्टर) = रु. 9,500, क्रमबद्ध सब्जी उत्पादन (सत्र/वर्ष) प्लास्टिक टनल (0.05 हैक्टर) के तहत = 1,50,000 रु., रबी की सब्जियों (शून्य जुताई विधि से मटर और अन्य फसल 0.15 हैक्टर की खेती में) = 12,500 रु., बड़ी इलायची उत्पादन (0.25 हैक्टर) = 45,000 रु., दूध उत्पादन (2,880 लीटर/वर्ष) = 75,800रु., आंगन में मुर्गीपालन (वजराजा, संख्या-100) = 63,750 रु., मात्स्यिकी (संख्या-500, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प) = 50,500 रु. की आय हुई। वहीं पारंपरिक खेती प्रणाली द्वारा आय 1,65,000 रु. थी। इसमें 89.750/रु. एकीकृत जैविक खेती प्रणाली पर व्यय किया गया (परिवारिक सदस्यों के श्रम और मजदूरों की मजदूरी खर्च को छोड़कर) जिसके परिणामस्वरूप लाभ और लागत का अनुपात 4.6 पाया गया।]
इस सफलता के बाद श्री लेपचा न केवल अपने गांव के किसानों बल्कि पूर्वी सिक्किम के किसान समुदाय के लिए एक आदर्श हैं। नजदीक के गांवों के प्रधान इस उदाहरण से प्रेरित होकर किसानों को जैविक खेती प्रणाली अपनाने के लिए बढ़ावा दे रहे हैं। इन हस्तक्षेपों द्वारा कमजोर पर्वतीय पारिस्थितिकी में भी सीमित संसाधनों के रचनात्मक व सकारात्मक प्रयोग की पूरी क्षमता है।
श्री नीम तशेरिंग लेपचा को इस उपलब्धि के लिए श्री खोरलो भूटिया, सचिव, खाद्य एवं कृषि विकास प्रभाग, सिक्किम द्वारा भाकृअनुप अनुसंधान परिसर, सिक्किम केन्द्र, तदोंग के वर्ष 2005 में 40वें स्थापना दिवस के अवसर पर प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया गया।
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