आदिवासीपारा गांव, हाथखोला (बाली गांव, संख्या - 9), गोसाबा ब्लॉक, दक्षिण 24 परगना, पश्चिम बंगाल में जनजातियों की आजीविका वृद्धि में जल जीवपालन प्रौद्योगिकी द्वारा बड़ी सफलता प्राप्त की गई। वर्ष 2009 में इस द्वीप पर आए घातक चक्रवाती तूफान ‘एईला’ द्वारा काफी बर्बादी हुई थी। तूफान के कारण समुद्र का खारा जल द्वीप के मीठे पानी के तालाबों में आ गया था जिससे जैवविविधता सहित सिंचाई चैनल को काफी हानि पहुंची थी। इस प्रकार के घातक तूफान के बाद द्वीप के निवासियों को खाद्य एवं आजीविका से संबंधित बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा। जनजातीय आबादी वाले क्षतिग्रस्त द्वीप पर भाकृअनुप – केन्द्रीय ताजा जलजीव पालन संस्थान (सीफा), भुबनेश्वर द्वारा मछली पालन गतिविधियों और आजीविका सहयोग प्रणाली की पुनर्स्थापना से जुड़े कदम उठाए गए। इसके तहत गुणवत्तापूर्ण कार्प बीज, अन्य महत्वपूर्ण आदानों और प्रौद्योगिकी की उपलब्धता प्रमुख मुद्दे थे। इस द्वीप के जलजीव विकास के लिए सीफा द्वारा सर्वेक्षण कराने के साथ ही तालाब के मृदा एवं जलीय मानदंड का विश्लेषण, मछली जीरा उत्पादन के लिए फाइबर ग्लास रेनफोर्स्ड प्लास्टिक (एफआरपी) से निर्मित कार्प हैचरी की भी स्थापना की गई। इसके साथ ही एकीकृत तथा समग्र जलजीव पालन के लिए आवश्यक आदानों की आपूर्ति हेतु आदिवासीपारा गांव के 51 जनजातीय किसानों को 4.855 हैक्टर क्षेत्र में जलजीव पालन संबंधी प्रशिक्षण, वैज्ञानिक प्रदर्शन, हितधारकों के लिए नियमित प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इसके साथ ही सीफा द्वारा द्वीप के विकास के लिए विभिन्न संसाधनों वाले व्यक्तियों और गणमान्यों को भी जोड़ने का कार्य किया गया।
जलजीव पालन प्रदर्शन कार्यक्रम के पहले चरण (मार्च 2013) में 2.56 हैक्टर तालाब क्षेत्र के साथ 22 लाभार्थी परिवारों को कवर किया गया तथा दूसरे चरण (26 जुलाई 2013) में 2.295 हैक्टर तालाब क्षेत्र के साथ अतिरिक्त 29 लाभार्थियों को कवर किया गया। वर्ष 2014 में प्रति खेप 10 लाख अंडे उत्पादन क्षमता वाली एक एफआरपी हैचरी इकाई की स्थापना की गई और द्वीप में सफलतापूर्वक बड़ी और छोटी कार्प के बीज का उत्पादन किया गया।
इसके साथ ही द्वीप में मिश्रित मछली पालन का प्रदर्शन 4.855 हैक्टर जल क्षेत्र के 51 तालाबों और कुल 51 जनजातीय किसान परिवारों के लिए विभिन्न चरणों में आयोजित किया गया। इसके तहत भारत की प्रमुख कार्प (आईएमसी) जैसे रोहू, कातला और मृगल की पालन सघनता 6000 मछलियां/हैक्टर और अनुपात 4:3:3 की संख्या में थी। इस मछली पालन प्रणाली में भारतीय मछली प्रजातियों के साथ ही बाटा (लाबियो बाटा) को भी 2,000 मछली/हैक्टर के हिसाब से शामिल किया गया। तालाब में मछलियों के नियमित चारे के लिए लटकने वाली बांस की टोकरियों की व्यवस्था की गई। पोषण के लिए मछलियों के भार के 1-2 प्रतिशत के अनुपात में डूब जाने वाली चारा टिकिया को भी तालाब में डाला गया। गाय का ताजा गोबर 8,000 कि.ग्रा./है./वर्ष (समान मासिक), यूरिया 200 कि.ग्रा./है./वर्ष (समान मासिक) और चूना 400 कि.ग्रा./है./वर्ष (समान मासिक) के अनुपात में नियमित उर्वरक के तौर पर तालाब में डाला गया। एसएसपी और चूने के प्रयोग के बीच 15 दिनों का अंतराल रखा गया। प्रत्येक महीने मछलियों की वृद्धि आकलन के लिए उन्हें जाल द्वारा निकाला गया तथा इसके साथ ही मछलियों के उचित विकास के लिए तालाब के तल को आडोलित भी किया गया।
इस प्रकार मछली पालन से 800 कि.ग्रा./है./वर्ष शानदार उत्पादन प्राप्त किया गया। लाभार्थियों ने 4.3 – 4.9 टन/है./वर्ष के हिसाब से मछली उत्पादन प्राप्त किया तथा 120 रु. प्रति किलो ग्राम की दर से मछली विक्रय द्वारा प्रति हैक्टर 4.56 लाख रु. की आय प्राप्त की। वर्ष 2015 में जनजातीय किसानों को मछली पालन से जुड़े महत्वपूर्ण आदानों की आपूर्ति नहीं की जा सकी जिसके बावजूद भी उनका उत्साह व निश्चय कम नहीं हुआ। बिना किसी बाहरी मदद के उन्होंने स्वयं के संसाधनों द्वारा तालाब में मछली पालन से 3.0 – 3.5 टन/है./वर्ष मछली उत्पादन किया।
प्रति इकाई तालाब क्षेत्र से उत्पादकता एवं आय में वृद्धि के लिए संस्थान द्वारा कम लागत वाले बत्तखों के घर तैयार किये गये और सितंबर, 2013 में 800 ‘खाकी कैम्पबेल’ किस्म के बत्तख के बच्चे 3.0 हैक्टर जल क्षेत्र वाले द्वीप के 38 लाभार्थियों को वितरित किए गए। बत्तखों का स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए प्लेग और हैजा जैसी बीमारियों के वैक्सीन लगाए गए। लाभार्थियों को एक माह के लिए बत्तख चारा तथा पानी पिलाने और चारा खिलाने के बर्तन भी वितरित किए गए। जनवरी, 2014 के मध्य तक वयस्क बत्तखों ने अंडे देने शुरू कर दिए। इस मछली व बत्तख पालन से 38 किसान परिवारों ने 3.0 है. तालाब से कुल 2.8 लाख रुपए वार्षिक आय प्राप्त की।
द्वीप में ताजा जलजीव पालन हस्तक्षेपों द्वारा प्राप्त सफलता एक मॉडल के तौर पर विकसित हुई है जिसका विभिन्न क्षेत्रों में अनुसरण किया जा सकता है। वन विभाग, पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाकृअनुप – सीफा की प्रदर्शन गतिविधियों को देखने के लिए अनेक बार दौरे किये। जंगलों में जनजातियों के प्रवेश में उल्लेखनीय कमी के अवलोकन के बाद यह ज्ञात हुआ कि मछली पालन काफी लाभदायी व्यवसाय है। इस सफलता से प्रेरित वन विभाग द्वारा सुन्दरवन डेल्टा के दूसरे द्वीपों में भी जलजीव पालन गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
(स्रोतः भाकृअनुप – केन्द्रीय ताजा जलजीव पालन संस्थान, भुबनेश्वर)
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