कश्मीर घाटी का सबसे बड़ा जिला बारामुला वर्ष 2012-13 में देश का सबसे बड़ा सेब उत्पादक जिला था। कृषि विज्ञान केंद्र, बारामुला ने वहां के किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रशिक्षण देने की आवश्यकता महसूस की जिसके आधार पर वे आर्थिक रूप से अधिक व्यावहारिक एवं रोजगार सृजित करने वाले उद्यमों की स्थापना में योग्य हो सकें। इस क्रम में केवीके ने किसानों और ग्रामीण युवाओं को ‘करो और सीखो’ प्रणाली के माध्यम से कृषि संबंधित उपकरणों के बारे में प्रशिक्षण दिया। यह प्रशिक्षण सिद्धांत की अपेक्षा व्यवहारिकता पर केंद्रित था। शीतोष्ण फलों की गुणवत्तापूर्ण पौधरोपण सामग्री की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए केवीके ने ‘बागवानी नर्सरी स्थापना योजना’ के तहत प्रशिक्षण प्रदान किया। इस व्यावसायिक प्रशिक्षण का उद्देश्य किसान समुदायों के लिए रोजगार संभावनाएं सृजित करने के साथ-साथ गुणवत्तापूर्ण पौधरोपण सामग्री की उपलब्धता को बढ़ाना भी था। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 7 प्रशिक्षुओं ने अपने खेतों में नर्सरी की स्थापना की इसके साथ ही वे कृषि - उद्यम के रूप में व्यावसायिक बागवानी नर्सरी की स्थापना की योजना बना रहे हैं।
भाकृअनुप- केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र, बारामुला ने बागवानी आधारित समग्र कृषि पद्धति को सशक्त हस्तक्षेप के रूप में किसानों की सतत आजीविका के लिए चिन्हित किया है।
श्री तारिक अहमद शेख और अब्दुल समाद पेराय, कुंजेर ब्लॉक, गांव मुलगाम की रुचियों को देखते हुए बारामुला स्थित केवीके ने उनके बागों में बागवानी आधारित समेकित कृषि प्रणाली की अग्रिम पंक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया। इसके साथ ही केवीके द्वारा सेब बाग प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। प्रशिक्षण लेने के बाद वर्ष 2015-16 में श्री तारिक अहमद शेख ने 0.25 हैक्टर बाग से 1.05 लाख रुपए एवं श्री अब्दुल समाद पेराय ने भी 0.5 हैक्टर सेब के बाग से 2.15 लाख रुपए अर्जित किए। दोनों प्रगतिशील किसान केवीके द्वारा सुझाए गए तकनीकों को अपनाने के बाद अपने बगीचों से 20% अधिक उत्पादन की आशा कर रहे हैं। केवीके, बारामुला द्वारा बागवानी नर्सरी स्थापना विषय पर दिए गए प्रशिक्षण के बाद प्रतिभागी दोनों प्रगतिशील किसानों के साथी ग्रामीण युवाओं ने अपने खेतों में सेब के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए बागवानी नर्सरी की स्थापना की है जिसके तहत उन्होंने पुराने पौधों के स्थान पर नए किस्मों का रोपण किया है। इसके साथ ही अतिरिक्त आय कमाने और पोषण सुरक्षा के लिए अपने बागों में धान, दलहन, सब्जियों अंतःफसलों के रूप में खेती भी कर रहे हैं। इसके साथ ही वह पशुधन उत्पादकता को बढ़ाने के लिए साल भर उगने वाले चारा फसलों का भी उत्पादन कर रहे हैं।
Like on Facebook
Subscribe on Youtube
Follow on X X
Like on instagram