बिरजाबरना जनजातीय बहुलता (77 प्रतिशत जनजातीय किसान परिवार) वाला गांव है। 1400 मि.मी. वार्षिक वर्षा और घुरलीजोर लघु सिंचाई परियोजना के बाद भी सुंदरगढ़ जिले का यह गांव सिंचाई सुविधा से वंचित था। इस समस्या के कारण इस गांव के किसानों के लिए खरीफ में एकल फसल चावल की औसत उत्पादन (2.5-3.1 टन/है.) वाली खेती के अतिरिक्त विकल्प नहीं था। नहर द्वारा अपर्याप्त जल आपूर्ति एवं अन्य सिंचाई स्रोतों की कमी के कारण गांव में सिंचाई की अनिश्चित सुविधा थी। इसके अलावा घुरलीजोर जलाशय जिसका निर्माण नहर द्वारा पानी की आपूर्ति करने के उद्देश्य से किया गया था, उसकी संरचना क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। इसकी वजह से जल आपूर्ति की स्थिति बेहद कम थी। इसके कारण वर्ष 2013 तक वर्षाधारित कृषि गांव के लिए एक मात्र विकल्प था। इस स्थिति में भाकृअनुप – भारतीय जल प्रबंधन संस्थान (आईआईडब्ल्यूएम), भुबनेश्वर ने वर्ष 2013-14 के दौरान इस गांव में विभिन्न जल संरक्षण एवं प्रबंधन रणनीतियां बनाई। खेत प्रदर्शन एवं दौरों जैसे क्षमता निर्माण कार्यक्रमों और विभिन्न कृषि उद्यमों में जल के विभिन्न प्रयोग के माध्यम से गांव के किसानों को दक्ष जल प्रबंधन ज्ञान एवं आजीविका विकास के बारे में सिखाया गया। सिंचाई संरचना जैसे, इनलेट, आउटलेट और सरप्लस इस्केप स्ट्रक्चर के बारे में नहर से जुड़े समुदाय को जल उपयोगिता बढ़ाने के बारे में जानकारी दी गई। इसके परिणाम स्वरूप पहले की तुलना में गांव के तालाब और भूक्षेत्र (30 प्रतिशत) और जल की उपलब्धता (1.2 हैक्टर-एम) में वृद्धि हुई है।
गांव के सामुदायिक तालाब के नजदीक नाली के किनारे 4.8 मी. ब्यास की 9.0 मी. की गहराई तक कुंआ खोदा गया। इस हस्तक्षेप द्वारा 1.8 हैक्टर मीटर अतिरिक्त पानी 2.1 हैक्टर भूक्षेत्र में उपलब्ध हुआ। इसके साथ ही जमीन के नीचे लगे पाइप की सहायता से कुएं द्वारा जल आपूर्ति को जोड़ा गया तथा छिड़काव सिंचाई विधि का भी उपयोग किया गया। इन हस्तक्षपों से संसाधनहीन जनजातीय किसानों में वर्ष 2015-16 के दौरान विश्वास हुआ कि वे एकल फसल के स्थान पर खरीफ में धान, रबी में तिलहन और गर्मियों में मूंगफली एवं चने की खेती कर सकते हैं। खुदे हुए कुएं द्वारा पूरक सिंचाई उपलब्धता से खरीफ में चावल का उत्पादन 30 प्रतिशत तक बढ़ गया। रबी में छिड़काव विधि के प्रयोग से 32 प्रतिशत पानी का बचाव हुआ और फसल उत्पादन में 28 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप मूंगफली की खेती में पारंपरिक चेक बेसिन सिंचाई की तुलना में बेहतर जल उपयोग द्वारा उत्पादकता में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
सामुदायिक तालाब में कृषि और रेशम उत्पादन के लिए नहर जल एवं वर्षाजल संरक्षण की विभिन्न प्रबंधन प्रयोगों का भी उपयोग किया गया। जल उत्पादन और आर्थिक वृद्धि के लिए तालाब में अल्प आदान आधारित मछली पालन की भी शुरुआत की गई। पहले वर्ष में देश की प्रमुख मछली किस्मों (कतला, लाबिओ रोहिता और सी. मृगल) के जीरों को 7,500 रु./हैक्टर की लागत में 30:30:40 (सतह चारा: मुख्य चारा: तलहटी चारा) के अनुपात में मछली पालन किया गया। 210 दिनों के बाद 472 कि.ग्रा. मछली उत्पादन किया गया जिससे 62,000/हैक्टर की दर से शुद्ध आय प्राप्त हुई। इस प्रकार से जल की उत्पादकता प्रति 3 मीटर, 6.2 रु. दर्ज की गई। क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को विभिन्न आधुनिक कृषि जल प्रबंधन के तरीकों से अवगत कराया गया और जलीय कृषि गतिविधियों की विधियों के पैकेज के बारे में प्रशिक्षित किया गया। जिसमें लघु सिंचाई प्रणालियों में प्रवाह सिंचाई के रखरखाव; ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों और विभिन्न सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में जानकारी दी गई।
जल प्रबंधन एवं संसाधन विकास से फसल एवं मछली पालन द्वारा औसत वार्षिक आय में वृद्धि दर्ज की गई तथा वर्ष 2015-16 के दौरान 17,000रु./ से लेकर 1.42 लाख रुपये लक्षित क्षेत्र (2.1 है. फसल क्षेत्र और 1.0 है. तालाब से) से प्राप्त किए गए। परिणाम से उत्साहित आईआईडब्ल्यूएम, भुबनेश्वर द्वारा वर्ष 2016-17 के दौरान एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन गतिविधियों के लिए मोहुलजोर नामक एक अन्य आदिवासी गांव में कार्य किया जा रहा है।
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