पोल्ट्री पालन के औद्योगिकीकरण और सघनीकरण से प्रति वर्ष 28 – 30 मिलियन मीट्रिक टन तक पोल्ट्री अपशिष्ट उत्पन्न होता है। समुचित उपयोगिता प्रौद्योगिकियों/निपटान विधियों के अभाव में इस अपशिष्ट से अनेक पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। इसलिए, भाकृअनुप – केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (ICAR – CARI ), इज्जतनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिकों द्वारा पोल्ट्री पक्षियों से निकले मलमूत्र से सभी मौसमों के लिए बायोगैस उत्पादन हेतु एक नई ‘DAC’ technology विकसित की गई थी। इस प्रौद्योगिकी को विभिन्न कॉपन घटकों यथा इनलेट पाइप, आउटलेट पाइप, गैस कलेक्टर, बायोगैस कम्प्रेसर, गैस सिलेण्डर आदि के साथ अवायवीय डाइजेस्टर (200 लिटर) को शामिल करते हुए एक प्रायोगिक बायोगैस संयंत्र पर आजमाया गया (चित्र 1) पोल्ट्री बायोगैस नीली लौ के साथ एलपीजी की तरह जलता है (चित्र 2)। पोल्ट्री बायोगैस के संयोजन से पता चलता है कि इसमें मिथेन (%, V/V) की मात्रा 60.02 थी जो कि अन्य विधियों तथा सब्सट्रेट से उपलब्ध बायोगैस के बराबर अथवा बेहतर है।
इस प्रौद्योगिकी का उल्लेखनीय बिन्दू यह है कि बायोगैस उत्पादन के लिए केवल पोल्ट्री मलमूत्र अथवा विष्टा की ही जरूरत होती है। इसमें गाय का गोबर मिलाने की जरूरत नहीं होती जो कि आमतौर पर अन्य विधियों में पोल्ट्री मलमूत्र से बायोगैस का उत्पादन करने में मिलाया जा रहा है। इस प्रौद्योगिकी से जल की बचत करने में भी मदद मिलती है जैसा कि पोल्ट्री मलमूत्र के लिए विलायक के तौर पर डाइजेस्टर की स्लरी का बार-बार उपयोग किया जाता है । इस प्रौद्योगिकी की मदद से गर्मी तथा सर्दी दोनों मौसमों में वर्षभर बायोगैस का उत्पादन करना संभव है। यह तर्कसंगत है क्योंकि भारत में अधिकांश बायोगैस संयंत्र कम परिवेशी तापमान के कारण सर्दी के मौसम में कार्य करना बन्द कर देते हैं। ‘DAC’ टैक्नोलॉजी में, गरमी तथा सर्दी के मौसम में लगभग एक घन मीटर बायोगैस उत्पादन के लिए क्रमश: 12 – 13 और 19 – 20 किग्रा. पोल्ट्री मलमूत्र अथवा विष्टा की आवश्यकता होती है। बायोगैस की यह मात्रा 4-5 सदस्यों वाले एक औसत परिवार के लिए तीन बार का खाना बनाने के लिए पर्याप्त होती है। इसका उपयोग पोल्ट्री फार्म पर ताप स्रोत के रूप में भी किया जा सकता है। पोल्ट्री बायोगैस की स्पेन्ट स्लरी में अच्छा खाद मान और अंकुरण क्षमता होती है और इसे पौधों पर ज्वलन प्रभाव जो कि क्रूड पोल्ट्री मलमूत्र के साथ एक प्रचलित समस्या है, के बिना भर जैविक फसल उत्पादन हेतु कृषि खेतों में आसानी से प्रयोग किया जा सकता है।
यह प्रौद्योगिकी ग्रामीण पोल्ट्री किसानों की उनकी ऊर्जा मांग के संबंध में आत्मनिर्भरता हासिल करने में मददगार हो सकती है। 5000 लेयर्स पक्षियों के मलमूत्र में प्रतिवर्ष लगभग 4100 किग्रा. बायोगैस का उत्पादन करने की क्षमता होती है । यदि बायोगैस का मूल्य रूपये 32.00 प्रति किग्रा. माना जाए तब इसका बाजार मूल्य लगभग रूपये 1.31 लाख प्रति वर्ष होगा। स्पेन्ट स्लरी से लगभग 128 टन खाद उत्पन्न करने की क्षमता होती है। इस खाद का मूल्य यूरिया, फॉस्फेट, पोटाश और सूक्ष्म पोषक तत्व के समतुल्यता आधार पर लगभग रूपये 2.56 लाख होगा। इसलिए, इस प्रौद्योगिकी में मूल्यवान पोल्ट्री मलमूत्र से 5 – 6 गुणा तक मूल्य संवर्धन करने की व्यापक क्षमता है। पोल्ट्री पालकों के लिए वित्तीय लाभ उत्पन्न करने के अलावा, इस प्रौद्योगिकी का पर्यावरण पर भी भरपूर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इससे प्रदूषकों, दुर्गन्ध और मक्खियों में उल्लेखनीय कमी आती है साथ ही स्वच्छ भारत मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने में मदद मिलती है।
(स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान (ICAR – CARI ), इज्जतनगर, बरेली, उत्तर प्रदेश)
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