देश के समुद्रीय संवर्धन उद्योग में एक प्रमुख सफलता के रूप में भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि द्वारा उच्च मूल्य वाली दो और समुद्रीय मछलियों जिनकी कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेहद मांग है, को सफलतापूर्वक विकसित किया गया।
भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि द्वारा नारंगी धब्बेदार ग्रुपर (एपीनेफेलस काऑइ्स ) तथा पिंक ईयर एम्परर (लेथ्रिनस लेण्टजन ) का बीज उत्पादन विकसित किया गया। भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि द्वारा पहले ही कोबिया (रैकीसेण्ट्रॉन कैनाडम ) और सिल्वर पॉम्पेनो ( ट्रैकीनोटस ब्लॉकाई ) की बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी विकसित की जा चुकी है। नारंगी धब्बेदार ग्रुपर जो कि Hammour के नाम से प्रचलित है, के हेचरी बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास संस्थान के विशाखापटनम क्षेत्रीय केन्द्र पर जबकि पिंक ईयर एम्परर की प्रौद्योगिकी का विकास संस्थान के विजिन्जम अनुसंधान केन्द्र पर किया गया।
ग्रुपर का बीज उत्पादन
नारंगी धब्बेदार ग्रुपर, एक व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मांसाहारी मछली है जिसकी कि विश्व के अनेक भागों में बेहद मांग है। संस्थान द्वारा लार्वा की उत्तरजीविता दर को बढ़ाने की दिशा पिछले दो वर्षों से अपने वैज्ञानिकों व तकनीकी स्टाफ द्वारा किए गए सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप यह उपलब्धि हासिल की गई। मछली के बीज उत्पादन में प्रारंभिक सफलता वर्ष 2014 में हासिल की गई थी लेकिन तब लार्वा की उत्तरजीविता दर बहुत कम थी। इस बार विभिन्न जल गुणवत्ता और फीडिंग प्रोटोकॉल को अपनाने के बाद 10 प्रतिशत की बढ़ी हुई उत्तरजीविता दर हासिल की गई।
हेचरी में 42 दिनों तक पालन करने के बाद लार्वा अब 3 सेमी. के आकार के साथ प्रगत फ्राई अवस्था में हैं और नर्सरी में स्थानान्तरित करने के लिए तैयार हैं। बाद में आंगुलिक मछलियों का इस्तेमाल ग्रो आउट पिंजरों में समुद्रीय संवर्धन के लिए किया जा सकता है।
नारंगी रंग के धब्बेदार ग्रुपर के बीच उत्पादन में मिली सफलता ने देश में हेचरी में उत्पादित बीजों का उपयोग करते हुए मछली के समुद्रीय संवर्धन के लिए आशा की एक नई किरण दिखाई है। इस विकास से समुद्रीय संवर्धन हेतु भरपूर अवसर उत्पन्न होने की आशा है इससे किसानों को इन प्रजातियों के समुद्री पिंजरा पालन करने में मदद मिल रही है, और देश में मत्स्य किसानों और निर्यातकों के लिए व्यवसाय के अच्छे अवसर मिल रहे हैं। नारंगी धब्बेदार ग्रुपर समुद्रीय संवर्धन के लिए एक क्षमताशील प्रजाति है क्योंकि यह उच्च तापमान, कठोर प्रकृति के प्रति सुसंगत है और उच्च बाजार मूल्य के साथ स्वादिष्ट है।
प्रमुख मछली अवतरण केन्द्रों में, थोक बाजार में मछली का मूल्य रूपये 400 – 450 प्रति किग्रा. है जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में जिन्दा मछली का बिक्री मूल्य 3-4 गुणा ज्यादा है जिससे प्रजाति के समुद्रीय संवर्धन की संभावनाओं का पता चलता है।
मछली के बीज उत्पादन में मिली इस सफलता से भारत को ग्रुपर के वैश्विक उत्पादन में उल्लेखनीय योगदान करने में मदद मिलेगी। इस प्रौद्योगिकी को भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि के विशाखापटनम क्षेत्रीय केन्द्र, के वैज्ञानिक प्रभारी डॉ. शुभादीप घोष के मार्गदर्शन में विकसित किया गया।
नारंगी धब्बेदार ग्रुपर विश्व स्तर पर उपलब्ध है लेकिन यह उष्णकटिबंधीय और अर्ध उष्णकटिबंधीय जल क्षेत्रों में ही प्रमुखता से पाया जाता है और यह विश्व में विशेषकर हांगकांग, चीन, ताइवान, सिंगापुर तथा मलेशिया जैसे अनेक एशियाई देशों में लाइव रीफ फूड फिश (LRFF) व्यापार का मुख्य आधार बना हुआ है।
पिंक ईयर एम्परर का बीज उत्पादन
उच्च मूल्य वाली समुद्रीय मछली, पिंक ईयर एम्परर की पिंजरा ब्रूड स्टॉक और प्रजनन प्रौद्योगिकी का सफल विकास विश्व में अपनी तरह का प्रथम प्रयास है। भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि के विजिन्जम अनुसंधान केन्द्र द्वारा संस्थान में स्थापित रिसर्कुलेटिंग जलजीव पालन प्रणाली (RAS) का इस्तेमाल करते हुए लगातार दो वर्षों के सतत प्रयासों के उपरान्त इस प्रौद्योगिकी का विकास किया गया है।
पिंक ईयर एम्परर (लेथ्रिनस लेण्टजन ) अच्छी गूदा गुणवत्ता और कठोर प्रकृति के साथ एक फूड फिश है जो कि घरेलू बाजार में लोकप्रिय है और इसकी वैश्विक सीफूड बाजारों में क्षमताशील मांग है। यह मछली शरीर भार में 2 किग्रा. तक की वृद्धि हासिल करती है और इससे घरेलू बाजार में रूपये 400 से 600 प्रति किग्रा. का मूल्य मिलता है।
प्रजातियों की पकड़ में कमी को देखते हुए, पिंक ईयर एम्परर की प्रजनन प्रौद्योगिकी से देश को पिंजरा मत्स्य पालन जैसे समुद्री संवर्धन गतिविधियों के माध्यम से प्रजाति के उत्पादन को बढ़ाने में मदद मिलेगी। वर्तमान में, देश में खुला पिंजरा पालन तीन अथवा चार समुद्रीय मछली प्रजातियों तक ही सीमित है। बेहतर वृद्धि दर और मानकीकृत प्रजनन प्रौद्योगिकी के साथ, पिंक ईयर एम्परर पिंजरा मत्स्य किसानों के बीच एक अभ्यर्थी प्रजाति बनने की राह पर है। इच्छुक किसानों के बीच इस प्रजाति की स्केलिंग-अप करने के लिए प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया गया।
पिंक ईयर एम्परर की बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का विकास भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि के विजिन्जम अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक प्रभारी डॉ. एम. के. अनिल के मार्गदर्शन में किया गया । (स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय समुद्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान ( ICAR – CMFRI ), कोच्चि)
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