डीएसएच -185: नई सीजीएमएस- आधारित कुसुम (सैफ्लॉवर) की संकर किस्मे

डीएसएच -185: नई सीजीएमएस- आधारित कुसुम (सैफ्लॉवर) की संकर किस्मे

आईसीएआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयलसीड्स रिसर्च में विकसित डीएसएच-185 सार्वजनिक क्षेत्र का पहला सीजीएमएस-आधारित कुसुम का संकर है। इसे संपूर्ण भारत में खेती के लिए जारी और अधिसूचित किया गया है। डीएसएच-185,  ए-133 (सीजीएमएस वंशक्रम) x 1705-पी 22 (एक रेस्‍टोरर वंशक्रम) के बीच का एक क्रॉस है।   ए-133 में साइटोप्लाज्मिक वंशानुगत नर बंध्‍यता (जेनेटिक मेल स्टेरिलिटी) का स्रोत इसकी जंगली प्रजातियां, कार्थमस ऑक्सीएकंथा, है।

बारानी दशाओं में डीएसएच-185 से औसतन 14.3 क्विंटल/हेक्टेयर, सिंचित दशाओं में 21 क्विंटल/हेक्टेयर तथा राष्ट्रीय स्तर पर 17.4 क्विंटल/हेक्टेयर की बीज उपज मिलती है।  इससे  वर्षाश्रित दशाओं में 4.12 क्विंटल/हे0, सिंचित दशाओं में 5.7 क्विंटल/हे0 और राष्ट्रीय स्तर पर 4.8 9 क्विंटल/हे0 की तेल उपज प्राप्‍त होती है।  औसतन, डीएसएच -185 ने  बीज उपज के मामले में सर्वश्रेष्ठ चेक किस्मों, ए1 और पीएनबीएस-12 पर 25-30% श्रेष्ठता प्रदर्शित की है तथा जीएमएस-आधारित राष्ट्रीय संकर चेक किस्‍म, एनएआरआई-एच -15 की अपेक्षा 15.2%  उत्‍कृष्‍टता प्रदर्शित की है।  इसमें 28-29% तेल अंश पाया गया है और परीक्षण स्थानों में इसमें ए1, पीएनबीएस-12 की अपेक्षा तेल उपज में 25-28% श्रेष्ठता दर्ज की गई है।

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ राज्यों में शुष्क और सिंचित दशाओं के तहत किसानों के खेतों में डीएसएच-185 बनाम अन्‍य किस्‍मों की क्षमता का प्रदर्शन किया गया है। छत्तीसगढ़ में सूखे की दशाओं में डीएसएच-185 ने चेक किस्म ए1  से प्राप्‍त 5 क्विं/हे0 बीज उपज की तुलना में औसतन 17 क्विंटल/हे0 बीज उपज दर्ज की  है।  महाराष्ट्र में, इस किस्‍म ने सिंचित दशाओं में ए1 से प्राप्‍त 16 क्विंटल/हे0 की तुलना में 21 क्विंटल/हे0 उपज दी जबकि तेलंगाना की शुष्‍क दशाओं में डीएसएच-185 ने राज्य की किस्म मंजीरा से प्राप्‍त 4-5  क्विंटल/हे0 की तुलना में 10-14  क्विंटल/हे0 की उपज दी।  यह किस्‍म फ्यूजेरियम के विरूद्ध प्रतिरोधी है जो कुसुम की प्रमुख बीमारी है।

  

  डीएसएच-185 और ए और बी वंशक्रमों (लाइनों) की बीज-उत्पादन तकनीक को परिष्‍कृत किया गया है। आईसीएआर-आईआईओआर में डीएसएच-185 के बीज उत्पादन के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।

(स्रोत: आईसीएआर-भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्‍थानहैदराबाद)

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