आलू प्रसंस्करण उद्योग के लिए आलू के कंदों में शर्करा का संचित होना सबसे गंभीर समस्या है। सामान्यत: आलू के कंदों को कम तापमान (2-40 सेल्सियस) पर संग्रहीत किया जाता है ताकि उनमें अंकुरण न होने पाए। कम तापमान पर आलू के भंडारण के परिणामस्वरूप अपचयित शर्करा (प्राथमिक ग्लूकोज) का संचय होता है जिससे "शीत प्रेरित मीठापन" पैदा होता है। फ्राइंग के दौरान 'मॉलियार्ड प्रतिक्रिया' में अपचयित शर्करा के सहयोग से काले रंग के तैयार उत्पाद का उत्पादन होता है। चिप्स, फ्रेंच फ्राइज़ इत्यादि संसाधित उत्पादों को बनाने के लिए आलू के कंदों की उपयुक्तता मुख्य रूप से उनमें मौजूद ग्लूकोज की मात्रा से निर्धारित होती है।
सामान्यत:, ताजे भार के आधार पर 0.1% (अर्थात् 1000 पीपीएम) से नीचे का ग्लूकोज-स्तर चिप्स और फ्रेंच फ्राइज़ तैयार करने के लिए स्वीकार्य माना जाता है। वातावरण की दशाएं जिनमें तापमान प्रमुख है, आलू में ग्लूकोज-स्तर के संचय पर व्यापक प्रभाव डालता है। भारत में अपनाई जाने वाली सामान्य विधि के अनुसार, किसान अपने आलू को प्रसंस्करण उद्योग में ले जाते हैं और उद्योगस्थलों तक ले जाते हैं, उनके उत्पादन में ग्लूकोज की अधिक मात्रा पाए जाने के कारण उद्योग द्वारा उनके उत्पादन को खारिज कर दिया जाता है। परिवहन लागत और उपज को रद्द करने में समय की बर्बादी और मौद्रिक घाटे के कारण किसानों के समक्ष एक विकट संकट पैदा हो जाता है। सामान्यत: आलू में ग्लूकोज की मात्रा का पता लगाने में विभिन्न प्रकार के जैवरासायनिक विधियों का प्रयोग किया जाता है जिसमें काफी समय लगता है साथ ही यह उबाऊ, प्रयोगशाला-आधारित होता है और इसके लिए परिष्कृत उपकरणों की आवश्यकता होती है। आम तौर पर उद्योगों द्वारा इसके लिए चिप कलर टेस्ट विधि का उपयोग किया जाता है। यह परीक्षण आमतौर पर चिप्स/फ्रेंच-फ्राइज़ बनाने के लिए आलू के ढेर की उपयुक्तता को बताता है लेकिन इससे इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता है कि इन उत्पादों को तैयार करने के लिए कितने समय तक उपयुक्त रखा जा सकता है।
इसे ध्यान में रखते हुए, आईसीएआर-केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला ने आलू में ग्लूकोज के शीघ्र आकलन के लिए "डिप-स्टिक्स" विकसित किया है। शर्करा (ग्लूकोज) के आकलन के लिए विकसित "डिप्स्टिक्स" आधारित विधि अत्यधिक संवेदनशील (50 पीपीएम सांद्रता तक ग्लूकोज का पता लगाया जा सकता है), त्वरित (2 - 5 मिनट), सरल (कोई भी कर सकता है) और स्थान निरपेक्ष (इये आलू के खेतों में, भंडारण स्थल, घर या औद्योगिक साइट कहीं पर भी संचालित किया जा सकता) है। इसके साथ ही ये विकसित डिप-स्टिक्स न्यूनतम दो साल तक कारगर रहती हैं। इन डिप-स्टिक्स को आलू की सभी किस्मों के लिए भंडारण की विभिन्न दशाओं के साथ-साथ आलू के विकास के विभिन्न चरणों के दौरान भी काम में लाया जा सकता हैं।
ग्लूकोज के आकलन हेतु विकसित इन "डिप-स्टिक्स" का उपयोग किसानों (चाहे उनकी साक्षरता स्थिति कुछ भी हो) द्वारा अपने खेतों में या भंडारण स्थल या औद्योगिक स्थल कहीं पर भी किया जा सकता है। इससे किसानों को अपनी फसल लेने के बाद की विपणन/बिक्री लक्ष्य/गंतव्यों के लिए उचित निर्णय लेने में मदद मिलेगी। यह छोटे स्तर पर प्रसंस्कृत आलू उत्पादों को तैयार करने वाले वेंडर (विक्रेताओं) तथा आलू प्रसंस्करण इकाई प्रारंभ करने के इच्छुक लोगों के लिए अत्यधिक उपयोगी होगा।
डिपस्टिक्स द्वारा ग्लूकोज आकलन हेतु प्रक्रिया:
विकसित विधि बहुत सरल और त्वरित है। इन डिपस्टिक्स का उपयोग करके आलू के कंदों में शर्करा (ग्लूकोज) का आकलन की प्रक्रिया इस प्रकार है।
- ग्लूकोज-स्तर के परीक्षण के लिए आलू के ढेर/खेतों में से यादृच्छिक रूप से 2-5 आलू के कंद लें।
- सामान्य चाकू से आलू के कंद (लगभग कंद के बीच तक) पर एक गहरा कट लगाएं।
- इस कट में डिप-स्टिक्स डालें और डिप्-स्टिक्स द्वारा आलू के रस के अवशोषण के लिए 5-10 सेकंड तक प्रतीक्षा करें।
- अब इन डिप-स्टिक्स को बाहर निकालें और इसे 2-5 मिनट तक प्रतिक्रिया (रिएक्शन) के लिए रखें (ग्लूकोज सांद्रता पर निर्भर रंग परिवर्तन)।
- 2-5 मिनट के बाद, दिए गए कलर-चार्ट के साथ परिवर्तित (विकसित) रंग की तुलना करें,
कलर-चार्ट की तुलना से आपको इस परीक्षणाधीन आलू में शर्करा (ग्लूकोज) के स्तर का पता लगेगा। यदि स्तर 1000 पीपीएम (प्रति मिलियन भाग) से कम है, तो वे आलू प्रसंस्करण के लिए उपयुक्त होते हैं।
(स्रोत: आईसीएआर- केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला)
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