प्रतिभा हल्दीm से आय व आजीविका सुरक्षा में बढ़ोतरी

प्रतिभा हल्दीm से आय व आजीविका सुरक्षा में बढ़ोतरी

श्री पी. चन्‍द्र शेखर आजाद, आन्‍ध्र प्रदेश के विजयवाडा के एक 73 वर्षीय उद्यमी किसान है जिनके लिए खेती बाड़ी केवल एक लाभकारी उद्यम नहीं है। यह इनका विजन, पैसन और मिशन है। श्री आजाद अपने कथनों, कार्यों और सोच के मामले में अभी भी युवा हैं। एक किसान के रूप में श्री आजाद की पारी की शुरूआत 23 साल पहले हुई। श्री आजाद ने याद करते हुए बताया कि ''मैं 50 वर्ष की आयु तक विजयवाडा में एक छोटी प्रिन्टिंग प्रेस चला रहा था। बाद में, मैंने अपने पिता से विरासत में मिली 9 एकड़ जमीन पर हल्‍दी, धान, मक्‍का, केला आदि की खेती करना प्रारंभ किया।

क्षेत्र में अन्‍य किसानों की ही तरह हल्‍दी ही मुख्‍य फसल थी। उस समय श्री आजाद द्वारा दुग्‍गीराला, कडप्‍पा, अरमूर तथा टेकुरपेट आदि जैसी स्‍थानीय किस्‍मों की खेती की जा रही थी। उस समय हल्‍दी की खेती करना बहुत अधिक लाभकारी नहीं था क्‍योंकि इसमें कम उपज और अधिक रोग प्रकोप का खतरा विद्यमान था। आगे श्री आजाद ने बताया कि वह एक अधिक पैदावार देने वाली और अच्‍छी गुणवत्‍ता वाली हल्‍दी किस्‍म की तलाश कर रहे थे। लगभग आठ साल पहले मैं भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड द्वारा विकसित प्रतिभा हल्‍दी किस्‍म के साथ आया। श्री आजाद ने केरल से 50 किलोग्राम मूलवृन्‍त खरीद कर प्रयोगात्‍मक आधार पर वर्ष 2004 में प्रतिभा की खेती करना प्रारंभ किया। यह एक वृद्ध से   उद्यमी किसान बनने की कभी समाप्‍त नहीं होने वाली गाथा की शुरूआत थी। वर्ष 2007 के बाद से, श्री आजाद के लिए परिस्थितियों में काफी हद तक बदलाव आया। इनका खेती उत्‍पादन कई गुणा तक बढ़ गया। इन्‍होंने इलाके के बागवानी विभागों और अन्‍य किसानों को बीज मूलवृन्‍तों की आपूर्ति करना प्रारंभ किया।

वर्ष 2007 - 2008 के दौरान, श्री आजाद ने आन्‍ध्र प्रदेश के बागवानी विभाग, निजामाबाद को 12 टन बीज मूलवृंत की आपूर्ति की। अगले वर्ष इन्‍होंने अदिलाबाद जिले में प्रतिभा रोपण सामग्री की 30 टन और रंगा रेड्डी जिले में विभाग को 12 टन रोपण सामग्री की आपूर्ति की।

वर्ष 2010 -11 में इन्‍होंने 2.75 एकड़ में प्रतिभा  किस्‍म की खेती की और लगभग 43 टन ताजा मूलवृन्‍त की उपज हासिल की। श्री आजाद ने बताया कि ''पिछले वर्ष उनका कुल खेती खर्च लगभग दो लाख रूपये था जिसमें बीज मूलवृन्‍त, रोपण और तुडाई आदि की लागत शामिल थी जबकि मैं लगभग 14 लाख रूपये मूल्‍य के उत्‍पाद बेचने में सफल रहा। अपनी सफलता की गाथा को आगे सुनाते हुए श्री आजाद ने बताया कि मैं जैविक कृषि प्रणाली का पालन कर रहा था और उसमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम कर रहा था। अधिक उपज, बेहतर जल निकासी, अगेती परिपक्‍वता, अच्‍छी गुणवत्‍ता और बीज मूलवृन्‍त के लिए अच्‍छी मांग आदि ऐसे कारक हैं जो कि श्री आजाद को और क्षेत्र में अन्‍य किसानों को प्रतिभा  किस्‍म को अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

श्री आजाद द्वारा खेती की मेड एवं खांचा विधि का प्रयोग किया जाता है जो कि आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य में प्रचलन में है। इन्‍होंने फसल की विभिन्‍न बढ़वार अवस्‍थाओं में सुपर फॉस्‍फेट, वर्मी कम्‍पोस्‍ट, गन्‍ना फिल्‍टर केक, जैव सुधारक तथा जैव उर्वरकों का उपयोग किया।

कन्‍दों की खुदाई बैलों की मदद से की गई। साथ ही इन्‍होंने हल्‍दी कन्‍दों की सफाई करने के लिए मजदूरों को रखा। साफ किए गए हल्‍दी मूलवृन्‍तों  अथवा गांठ को उबाला गया जिसके लिए बड़े हल्‍दी बॉयलर्स का उपयोग किया गया। उबले हुए मूलवृन्‍तों को 20 दिनों तक धूप में सुखाया गया और फिर मैकेनिकल पॉलीशर्स की मदद से उन पर पॉलिश की गई। लेकिन अभी भी इनके उत्‍पादन का बड़ा हिस्‍सा बीज मूलवृन्‍त के रूप में बेचा जा रहा है।

श्री आजाद के अनुभव के अनुसार, प्रतिभा  किस्‍म मूलवृन्‍त सड़न की अत्‍यधिक प्रतिरोधी है जबकि इनके खेत के समीप हल्‍दी की अन्‍य स्‍थानीय किस्‍में यथा टेकुरपेट और दुग्‍गीरला आदि मूलवृन्‍त सड़न से संक्रमित थीं।

हल्‍दी की किस्‍म प्रतिभा को भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड द्वारा खुली परागित संतति सेलेक्‍शन के माध्‍यम से विकसित किया गया है। भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोडकी प्रभा एवं प्रतिभा  अकेली ऐसी हल्‍दी किस्‍में हैं जिन्‍हें आजतक पूरे विश्‍व में वास्‍तविक हल्‍दी पौद सेलेक्‍शन के माध्‍यम से विकसित किया गया है। इन दोनों में से, प्रतिभा  किस्‍म ने देशभर में नाम और प्रतिष्‍ठा दोनों की अर्जित की हैं – ऐसा भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी. सूर्यकुमार का कहना है।

श्री आजाद की सफल गाथा अनेक अन्‍य किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत है। अब श्री आजाद राज्‍य में प्रतिभा  हल्‍दी की खेती के लिए एक ब्राण्‍ड एम्‍बसेडर हैं। हल्‍दी की खेती करने वाले अनेक किसान इनसे सलाह और मार्गदर्शन प्राप्‍त कर रहे हैं।

अपनी उम्र के अन्‍य किसानों से श्री आजाद को अलग दिखाने वाले गुणों में उनके द्वारा इनोवेशन को अपनाने में अपनी तत्‍परता दिखाना है। उम्र के इस पड़ाव में भी श्री आजाद कम्‍प्‍यूटर पर कार्य करना पसंद करते हैं। वे खेती की हर अवस्‍था में ऐसा भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड के वैज्ञानिकों के साथ फोन और इन्‍टरनेट के माध्‍यम से लगातार सम्‍पर्क बनाये रखते हैं। साथ ही वे सभी प्रकार की फार्म गतिविधियों का रिकॉर्ड रखते हैं, नियमित अन्‍तराल पर फसल की फोटो खींचकर उसे वैज्ञानिकों के पास सलाह के लिए भेजते हैं।

'' कृषि से कभी नुकसान नहीं होगा यदि किसान अधिक पैदावार देने वाली उन्‍नत किस्‍मों को और वैज्ञानिक फसल प्रबंधन रीतियों को अपनाने के लिए तैयार रहे। समय से फसल प्रबंधन रीतियों और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने से फसल की उत्‍पादकता में कई गुणा बढ़ोतरी होगी'' –ऐसा कहना है भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड के निदेशक डॉ. एम. आनन्‍दराज का।

(स्रोत : भाकृअनुप – भारतीय मसाले अनुसंधान संस्‍थान, कोझीकोड, केरल से मिले इनपुट के आधार पर मास मीडिया मोबिलाइजेशन, डीकेएमए पर एनएआईपी उप-परियोजना)

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