डेयरी पशुओं की उत्पादकता एवं डेयरी खेती में प्रमुख आर्थिक बाधा और कल्याणकारी चिंता को प्रभावित करने व रक्त चूसने वाले परजीवी, टिक्स हानिकारक होते हैं। मेजबान (होस्ट) के चयापचय को प्रभावित करने वाली गतिविधियों से होने वाली जलन के कारण टिक्स के काटने से जानवरों का आहार कम हो जाता है। प्रत्येक टिक द्वारा अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिए रक्त की 30 बूँदों से कम नहीं चूसने से रक्त की हानि होती है, जिसके परिणामस्वरूप मंद विकास होता है और शरीर का वजन कम होता है। इसका नियंत्रण विभिन्न तरीकों से किया जाता है।
आसक्त लार्वा, अर्भक और परिपक्वों को मारने के लिए अकारिसाइड (किलनीनाशक) के साथ मेजबानों का उपचार सबसे व्यापक रूप से किया जाता है, क्योंकि परजीवी की पुनरावृत्ति आम है। ऐसे परिदृश्य में टिक आबादी में प्रतिरोध के त्वरित विकास के कारण नए रासायनिक यौगिकों का परिचय आवश्यक हो जाता है। यह कृषि प्रणाली को बनाए रखने के चुनौतियों में से एक है क्योंकि इस समस्या को लागत प्रभावी और टिकाऊ तरीके से नियंत्रित करने की जरूरत होती है।
स्वदेशी ज्ञान प्रणाली इस तरह के अकारिसाइडल (किलनीनाशक) गुणों के साथ जड़ी बूटियों की एक श्रृंखला प्रदान करती है। पौधे की सामग्रियों को कीटनाशक, विकास अवरोधक, एंटी-मोल्टिंग और विकर्षक गतिविधियों के रूप में जाना जाता है। पर्यावरण पर किसी भी महत्त्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव के बिना टिकों को नियंत्रित करने के लिए क्षेत्र उन्मुख, लागत प्रभावी और आसानी से उपलब्ध गुणवत्ता वाले हर्बल अकारिसाइड का विकास समय की मांग है।
एनआईएफ की मध्यस्थता वाली पॉली हर्बल दवा:
गुजरात में स्थित डीएसटी के तहत एक संगठन नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (एनआईएफ), भारत ने टिक्स को नियंत्रित करने, वैज्ञानिक रूप से मूल्यांकन करने और देश भर में विभिन्न स्थानों में इसका प्रदर्शन करने के लिए सामुदायिक ज्ञान की सरलता के आधार पर नीम और काली मिर्च के पत्तों को शामिल करते हुए एक पॉली हर्बल दवा बनाई।
क्षेत्र परीक्षण के लिए भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के साथ सहयोग
नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने आईसीएआर-एनडीआरआई, करनाल, हरियाणा के साथ पाली हर्बल दवा के क्षेत्र परीक्षण के लिए अनुसंधान कार्यक्रम के रूप में सहयोग किया। संस्थान ने 2019-2020 के दौरान हरियाणा के 3 जिलों करनाल, जींद और भिवानी में 203 पशुओं सहित 47 किसानों के साथ इसका मूल्यांकन किया।
तैयारी (उपक्रम) और अनुप्रयोग की विधि
आम तौर पर स्थानीय रूप से नीम और मॉन्क पेपर (विटेक्स नेगुंडो) के रूप में जाना जाने वाला हर्बल अवयव इंडियन लिलाक (अज़दिराचता इंडिका/नीम) को अध्ययन क्षेत्रों में एकत्र किए जाने वाले नागोद/माला के रूप में जाना जाता है। नीम के पेड़ की लगभग ढाई किलो ताजा एकत्र पत्तियों को 4 लीटर गुनगुना पानी में रखा जाता है और इसी तरह नागोद/माला के पौधे की लगभग 1 किलो पत्तियों को 2 लीटर गुनगुने पानी में रखा जाता है। दावा को तैयार करने के लिए सामान्य कमरे के तापमान में इसे रात भर या लगभग 12 घंटे की अवधि तक रखा जाता है।
बाद में अपरिष्कृत निचोड़ को छान कर उसे अलग से एकत्र किया जाता है। नीम के लगभग 300 मिलीलीटर कच्चे निचोड़ और मॉन्क पेपर के 100 मिलीलीटर को 3:1 के अनुपात में मिलाया गया तथा स्टॉक (भंडार) समाधान के रूप में रखा गया था। आवश्यकताओं के समय छोटे धारक के खेतों में अनुप्रयोग के लिए 3,600 मिलीलीटर ताजे पानी/नल के पानी में 400 मिलीलीटर बनाई हुई दवा को मिलाया गया था।
चिकित्सा क्रियान्वयन (व्यवस्था)
हरियाणा के जिलों के 8 गाँवों में पहले तीन दिन ही दवा तैयार की गई और दिलाई गई। इसे प्रतिदिन दो बार - सुबह और शाम – दिलाई गई। टिक्स से प्रभावित जानवरों को तीन दिनों के लिए उपचार समाधान (अज़दिराचता इंडिका+विटेक्स नेगुंडो) प्रदान किया गया।
उपचार प्रदान करने के बाद संबंधित अध्ययन क्षेत्रों में किसानों, पशु चिकित्सा अधिकारियों और लुवास के वैज्ञानिकों के सहयोग से थन, गलकम्बल, कान एवं शरीर के अन्य अंगों में टिकों की गिनती करके 7वें दिन, 14वें दिन, 21वें दिन और 28वें दिन के बाद अवलोकन दर्ज किए गए।
पॉली हर्बल दवा का प्रभाव:
एनआईएफ की पॉली हर्बल दवा के परिणामस्वरूप टिक की आबादी में काफी कमी आई। एनआईएफ खुले स्त्रोत तकनीक से इलाज करने वाले जानवरों में 48 घंटे के भीतर 34.57 ±3.35 [मीन ± एस.ई.] तक कमी पाई गई। हालाँकि 56 घंटे के अंत होते-होते तक 24.63±2.34 [मीन ± एस.ई.] कमी पाई गई थी। 28वें दिन तक के अवलोकन में पाया गया कि बहुत अधिक संक्रमण नहीं हुआ था क्योंकि संक्रमण की दर 384±029 पाई गई थी। 28वें दिन के अवलोकन में पीड़ित पशुओं पर दवाई का प्रभाव 92.97% पाया गया। किसानों के खेत में दवा ने हायलोम्मा एनाटोलिकम के कठिन टिक संक्रमण पर भी प्रभाव दिखाया। प्रायोगिक अवधि के दौरान उपचारित पशुओं पर टिक संक्रमण की पुनरावृत्ति पर ध्यान नहीं दिया गया। सभी अध्ययन स्थानों में प्राकृतिक संक्रमण के दौरान 45 दिनों तक उपचार के बाद अवरोधक प्रभावकारिता पाई गई।
हरेक वर्ष 25 से 30 दिनों की औसत पुनरावृत्ति के साथ प्रति पशु अकारिसाइड्स और पशुचिकित्सा प्रभार की खरीद पर 1,440 रुपये खर्च करते हुए एनआईएफ की मध्यस्थता वाले पॉली हर्बल दवा का उपयोग करके किसान 40 से 45 दिनों में एक बार उपचार दोहरा सकते हैं। उपचार की लागत लगभग 20 रुपए से 30 रुपए/पशु/45 दिन है जो एक वर्ष में 160 रुपए से 240 रुपए तक होती है। समाधान की लागत प्रभावशीलता से किसान आश्वस्त थे ।
आनुपातिक दरों से वृद्धि
इसके अलावा हरियाणा के सभी गाँवों में नीम की आसान उपलब्धता, निर्गुन्डी (विटेक्स नेगुंडो) अध्ययन क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित नहीं था। हालाँकि बुजूर्गों ने लगभग 40 से 50 साल पहले इसके उपयोग के बारे में बताया। प्रौद्योगिकी के विस्तार के एक हिस्से के रूप में परियोजना टीम ने हर्बल पार्क, वन विभाग, हरियाणा सरकार, यमुनानगर से 2,000 निर्गुन्डी के पौधे खरीद कर किसान प्रथम परियोजना के तहत भाकृअनुप-एनडीआरआइ और सीएसएसआरआइ द्वारा गोद लिए गए गाँवों सहित 30 गाँवों में 600 किसानों को वितरित किया।
एनडीआरआइ परिसर, विभिन्न पशु चिकित्सा कार्यालयों, पॉलीक्लीनिक, केवीके और हमेटि, जींद क्षेत्रों में काफी संख्या में पौधे लगाए जाते हैं। पौधों से स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को सुदृढ़ करने सहित पशुधन कल्याण के लिए स्थानीय रूप से उपलब्ध प्रौद्योगिकियों के बेहतर उपयोग में सहायता करने की उम्मीद है।
निष्कर्ष:
सापेक्ष लाभ, कम जटिलता, परीक्षण क्षमता और अनुकूलता जैसी नवाचार की विशेषताओं ने एलोपैथिक उपचार पर पशुपालन विभागों और लुवास द्वारा गोद लिए गए पड़ोसी किसानों एवं पशु चिकित्सकों के बीच एनआईएफ पॉली हर्बल दवा में रुचि को प्रेरित किया। दवाओं के सफल प्रदर्शन से लागत प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित होगी।
पशु चिकित्सा अधिकारियों, पैरा पशु चिकित्सा कर्मचारियों जैसे पशु चिकित्सा सेवा के हितधारकों को भी प्रौद्योगिकी की उपयोगिता के प्रति जागरूक किया गया था।
(स्रोत: भाकृअनुप-राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा)
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