महानगरों में शहरी और परिनगरीय/उपनगरीय क्षेत्रों तथा बड़े शहरों में 300 रुपए से 350 रुपए प्रति किलो के जीवित वजन की लागत के साथ भेड़ के मांस की बढ़ती मांग कई किसानों को बेहतर नस्लों के साथ भेड़ों के मांस को अपने भोजन में शामिल करने के लिए आकर्षित कर रही है।
मेमनों में विकास के प्रारंभिक चरण में पोषण की कमी से प्रतिरक्षा कम हो जाती है और शरीर के वजन में कमी तथा उच्च मृत्यु दर के परिणामस्वरूप रोगों की संवेदनशीलता बढ़ जाती है। यह मुख्य रूप से पोषण की कमी के कारण होता है क्योंकि भेड़ की नस्लों में मेमनों के विकास को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त दूध उत्पादन करने की बहुत सीमित क्षमता होती है।
प्री-वीनिंग (दूध छुड़ाने के पूर्व/स्तन्य त्याग पूर्व) के चरण (90-100 दिन) के दौरान मेमनों में शरीर के निचले हिस्सों में वजन का बढ़ना प्रमुख चिंताओं में से एक है। दुग्ध विस्थापक वाले अत्यधिक पाचन गुणवत्तापूर्ण अवयवों के माध्यम से अनुपूरक भोजन का तकनीकी हस्तक्षेप इस मुद्दे का समाधान कर सकता है। युवा जानवरों के विकास व वृद्धि के लिए इस पूरक को बनाया गया है।
भाकृअनुप-राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, कर्नाटक में अनुसंधान फ़ार्म पर स्तन्य त्याग पूर्व चरण के दौरान दुग्ध विस्थापक के उपयोग पर हुए कई अध्ययनों का निष्कर्ष मेमनों में स्वास्थ्य और विकास को बढ़ावा देने में इसकी प्रभावशीलता को दर्शाता है। जीवित वजन की प्रचलित बाजार लागत की तुलना में इसकी लागत युवा मेमनों के स्वास्थ्य और विकास में सुधार के अलावा किफायती साबित हुआ। किसानों की प्रबंधन प्रणाली के तहत प्रौद्योगिकी की जाँच के लिए संस्थान ने बेंगलुरु, कर्नाटक के उपनगरीय क्षेत्रों में इसके उपयोग पर क्षेत्र परीक्षण किया।
कर्नाटक सरकार के राज्य पशुपालन विभाग की मदद से तुमकुर जिले के सिरा तालुक में नारी सुवर्ना पालने वाले प्रगतिशील किसानों की पहचान की गई। नारी सुवारना एक लोकप्रिय/बहु-प्रजननशील नस्ल है जो अपनी विपुलता तथा उच्च प्रतिशत के साथ जोड़े बनाने के लिए जानी जाती है, जहाँ शुरुआती चरण में भेड़ के बच्चों का आहार एक चिंता का विषय है। किसानों को इसके उपयोग के निर्देशों के साथ भाकृअनुप-एनआईएएनपी में तैयार मिल्क रिप्लेसर/दुग्ध विस्थापक प्रदान किया गया। दो से तीन सप्ताह के युवा मेमनों का चयन किया गया और उन्हें दो समूहों में विभाजित किया गया - नियंत्रण समूह को नियमित पद्धति से खिलाने वाले किसानों के साथ रखा गया और उपचार समूह को 60 दिनों की अवधि के लिए 40 ग्राम/दिन की दर से दुग्ध विस्थापक पूरकता के साथ रखा गया। दोनों समूहों को एक ही प्रबंधन प्रणाली के तहत पाला गया था।
मेमनों को इसकी आदत डालने और इससे परिचित होने में 3 से 4 दिन लग गए; वे आसानी से इसका सेवन कर रहे थे। नतीजतन, साप्ताहिक अंतराल के साथ शरीर के वजन का पर्यवेक्षण करने पर किसानों ने दुग्ध विस्थापक को स्वीकार कर लिया। दुग्ध विस्थापक खिलाए गए भेड़ के बच्चे सक्रिय, स्वस्थ थे और नियंत्रण समूह की तुलना में अधिक वजन प्राप्त कर रहे थे। दुग्ध विस्थापक पूरक उपचार समूह में नियंत्रण समूह (150 ग्राम बनाम 70 ग्राम/दिन) की तुलना में काफी अधिक वजन था। 150 रुपए/किलो पूरक दूध के सेवन से भेड़ के बच्चे को 1.5 से 2.0 किलोग्राम वजन प्राप्त हुआ। ऐसे में 300 रुपए/किलोग्राम की दर से 1.5 किलो अतिरिक्त वजन के लिए यह 450 रुपए की आय प्राप्त करेगा।
लाभ-लागत का अनुपात लगभग 3.0 था। दुग्ध विस्थापक पूरकता का प्रारंभिक पैमाना परीक्षण उत्साहजनक था। किसानों ने उत्पाद को अपनाने की इच्छा जताई।
इस प्रौद्योगिकी को शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों के आसपास के उन किसानों के बीच लोकप्रिय बनाने की जरूरत है जो मांस उत्पादन के लिए भेड़ों पर निर्भर हैं और उत्पाद का उत्पादन और विपणन करने के लिए उपयुक्त एजेंसियों की पहचान कर रहे हैं।
मांस-उत्पादन के लिए भेड़ की चर्बी पर निर्भर रहने और उत्पाद के उत्पादन एवं विपणन हेतु उपयुक्त एजेंसियों की पहचान करने के लिए शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों के आसपास बड़ी संख्या में किसानों के बीच प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता है।
(भाकृअनुप-राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, कर्नाटक)
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