सुश्री हिरेशा वर्मा, एक आईटी पेशेवर से प्रसिद्ध मशरूम उत्पादक तक का सफर तय करते हुए देहरादून के चारबा गाँव में बतौर सफल उद्यमी 'हानाग्रोकेयर' देहरादून नामक मशरूम कंपनी की मालिक हैं।
गेहूँ, धान और सब्जियों की पारंपरिक खेती की गैर-लाभकारी प्रथा ने ग्रामीणों को बेहतर आय के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर कर दिया। ग्रामीणों को उनके मूल/पैतृक स्थान पर बेहतर आय अर्जित करने के अवसर प्रदान करने के लिए ही सुश्री हिरेशा ने कृषि के क्षेत्र में एक उद्यमी बनने का फैसला लिया।
2013 में अपने सर्वेंट क्वार्टर में सीप (ऑयस्टर) के 25 बैग के साथ मशरूम की खेती शुरू करने के अच्छे परिणाम मिले। 2,000 रुपए निवेश करने पर उन्होंने 5,000 रुपए कमाए। दूधिया (मिल्की) मशरूम की खेती ने उन्हें उत्साहजनक परिणाम दिए। सुश्री हिरेशा ने मशरूम की खेती का प्रशिक्षण लिया और कृषि विज्ञान केंद्र, देहरादून, उत्तराखंड से लोकप्रिय किस्मों के बारे में सीखा।
2014 में भाकृअनुप-मशरूम अनुसंधान निदेशालय, सोलन और हिमाचल प्रदेश में अपने प्रशिक्षण के दौरान, उन्होंने खाद व बीज के लिए मशरूम विभाग, देहरादून तथा वित्तीय सहायता के लिए एनएचएम और एनएचबी से संपर्क किया। उन्होंने गाँव चारबा, लंगा रोड, देहरादून में प्रायोगिक परियोजना के रूप में खेती के लिए प्रत्येक झोपड़ी में 500 बैग के साथ तीन बाँस की झोपड़ियों में वास्तविक काम शुरू किया।
हालाँकि उन्हें कई समस्याओं और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके दृढ़ संकल्प ने उन्हें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में कभी निराश नहीं किया।
इन झोंपड़ियों में उन्हें 15% की उपज मिली। इसके बाद उन्होंने ऑयस्टर मशरूम के दो आवर्तन/चक्र किए और उपयुक्त तापमान के अनुसार मशरूम के प्रकारों का आवर्ती करते हुए हुए दो साल तक मौसमी खेती की। चार साल तक मौसमी खेती करने के बाद उन्हें पूरे साल उत्पादन बढ़ाने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास मिला।
जबरदस्त परिणामों ने उन्हें मशरूम की खेती में कुछ नए नवाचारों के लिए प्रेरित किया। ऐसे में विभिन्न प्रौद्योगिकियों/तकनीकियों को सीखने के लिए उन्होंने विभिन्न संस्थानों का दौरा किया। उन्होंने अपना खुद का कंपोस्ट बनाया और गोपेश्वर जैसे दूरस्थ स्थानों सहित उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में अन्य मशरूम उत्पादकों को इसकी आपूर्ति की।
सुश्री हिरेशा की लगन और कड़ी मेहनत ने उनके सपनों को साकार करने में सफलता हासिल किया और अब, उनके पास चारबा में आधुनिक उत्पादन उपकरणों एवं सुविधाओं से सुसज्जित/लैस एक मशरूम फार्म है, जिसकी उत्पादन क्षमता 1 टन प्रति दिन है, जिसने 15 लोगों को रोजगार प्रदान किया और और मशरूम उत्पादन में पहाड़ियों पर 2,000 से अधिक महिलाओं एवं किसानों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने शिताके (Shitake) और गनोडर्मा (Ganoderma) जैसे औषधीय मशरूम उगाने में भी विविधता लाई है जो कैंसर विरोधी, वायरल और एंटी-ऑक्सीडेंट हैं।
प्रति दिन 20 किलोग्राम की अल्प मौसमी मात्रा के साथ शुरुआत करने वाली सुश्री हिरेशा आज 10 वातानुकूलित कमरों के अंदर वैज्ञानिक लाइनों के साथ वर्ष भर उत्पादन सहित प्रति दिन 1,000 किलोग्राम की उत्पादन क्षमता वाले प्रौद्योगिकी से सुसज्जित संयंत्रों के साथ एक सच्ची उद्यमी हैं।
वह अचार, कुकीज, नगेट्स, सूप, प्रोटीन पाउडर, चाय, पापड़ आदि जैसे मशरूम के मूल्यवर्धित उत्पाद भी बना रही हैं। अब सुश्री हिरेशा टिहरी, पौड़ी और गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में किसानों को मशरूम उगाने में मदद कर रही हैं।
एक उद्यमी तौर पर वह मशरूम उत्पादन, खपत और विपणन के क्षेत्र में अपना अधिकतम प्रयास करना चाहती हैं। सुश्री हिरेशा को उनके प्रयासों के लिए विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
(स्त्रोत: कृषि विज्ञान केंद्र, देहरादून, उत्तराखंड)
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