‘रानी’ और ‘आशा’ नामक दो संकर शूकरों की उन्नत नस्ल भाकृअनुप – राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र, रानी, गुवाहाटी द्वारा विकसित किए गए हैं। इसके साथ ही दो अन्य शूकर नस्लें: ‘एचडी-के75’ तथा ‘झारसुक’ को अखिल भारतीय समन्वित शूकर परियोजना के तहत असम कृषि विश्वविद्यालय, गुवाहाटी तथा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची द्वारा विकसित किये गए हैं। इन नस्लों को डॉ. एच. रहमान, उपमहानिदेशक (एएस), भाकृअनुप, नई दिल्ली द्वारा किसानों के हित में जारी किया गया। डॉ. के.एम. बुजरबरूआ, उपमहानिदेशक, कुलपति, असम कृषि विश्वविद्यालय; डॉ. एन.एम. कुलकर्णी, कुलपति, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय; डॉ. आर.एस. गांधी, सहायक महानिदेशक (एपी एंड बी), भाकृअनुप तथा डॉ. डी.के. सरमा, निदेशक, भाकृअनुप – राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र द्वारा गुवाहाटी और रांची में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया गया। डॉ. ए.के. चौधरी, निदेशक, अनुसंधान, एएयू; डॉ. डी.के. सिंह ‘द्रोण’, निदेशक, अनुसंधान, बीएयू; डॉ. विनीत भसीन (एजी एंड बी), निदेशक, भाकृअनुप – राष्ट्रीय याक अनुसंधान केन्द्र, दोनों विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों और शिक्षकों के साथ ही एआईसीआरपी केन्द्रों के प्रभारी तथा राज्य पशुचिकित्सा विभाग, असम, मेघालय, नगालैंड, झारखंड के वरिष्ठ अधिकारियों व प्रगतिशील किसानों ने कार्यक्रम में भाग लिया।
इस अवसर पर डॉ. रहमान ने बल देकर कहा कि देश में शूकर मांस की आपूर्ति एवं मांग में भारी अंतर है जिसका कारण स्थानीय कृषि जलवायु स्थितियों में अपनाए जाने योग्य विकसित तथा बेहतर उत्पादकता वाले शूकर नस्लों की कमी है। उन्होंने कहा कि विकसित जननद्रव्य की भारी मांग की आपूर्ति करने में ये किस्में काफी सहयोगी होंगी। उन्होंने भाकृअनुप – राष्ट्रीय शूकर अनुसंधान केन्द्र, गुवाहाटी, एएयू, गुवाहाटी तथा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, रांची तथा तेजी से बढ़ने वाली शूकरों की नस्लों के विकास में संलग्न वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी। उन्होंने शीघ्र लाभ हेतु अन्य पशुओं के पालन की अपेक्षा शूकर पालन पर जोर दिया। इस अवसर पर उन्होंने शूकर पालक किसानों को शूकर शिशु वितरित किए तथा प्रकाशनों को भी जारी किया।
डॉ. बूजरबरूआ, कुलपति, असम कृषि विश्वविद्यालय तथा डॉ. एन.एम. कुलकर्णी, कुलपति, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने अखिल भारतीय समन्वित शूकर अनुसंधान परियोजना को अपने विश्वविद्यालयों में कार्यान्वयन के लिए आश्वस्त किया तथा किसानों में इन नस्लों को वितरित करने के लिए मेगा-सीड परियोजना से सहयोग के लिए आग्रह किया।
इन नस्लों को जारी करने से पहले इनकी उत्पादकता, प्रजनन और अनुकूलन क्षमता को कुछ पीढ़ियों तक परस्पर मिलान के द्वारा स्थिर किया गया है। इन नस्लों के शूकर 8 माह की आयु में 74 – 80 कि.ग्रा. शारीरिक भार तक हो जाते है जिनके पीठ पर वसा की मोटाई 1.75 - 2.58 सें.मी. तक होती है।
उपमहानिदेशक (पशु विज्ञान), भाकृअनुप, नई दिल्ली द्वारा संस्थान द्वारा तेजी से बढ़ने वाले संकर शूकरों के विकास के लिए प्रशंसा की गई तथा उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि ग्रामीण किसान इन विकसित जननद्रव्यों वाले शूकरों के पालन से लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम में इन उन्नत नस्लों को मेगा-सीड शूकर परियोजना के माध्यम से असम, झारखंड तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रचारित करने से संबंधित प्रस्ताव रखा गया।
(स्रोतः पशु विज्ञान संभाग, भाकृअनुप, नई दिल्ली)
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