आदिवासी किसानों की आजीविका को सुधारने के लिए समेमित फार्मिंग प्रणाली

आदिवासी किसानों की आजीविका को सुधारने के लिए समेमित फार्मिंग प्रणाली

मणिपुर पूरी तरह से बारानी है तथा यहां खरीफ के मौसम में कृषि क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक भाग में चावल की खेती की जाती है। किसानों के पास उपलब्‍ध जोत का आकार छोटा है और खेती की विधियां उनकी आजीविका में पर्याप्‍त सुधार नहीं ला पा रही थी। उत्‍तर-पूर्व के लोग मांस प्रेमी हैं और कुक्‍कुट, शूकर तथा अन्‍य मांस उत्‍पादों की यहां अधिक मांग है। इस प्रकार फसलों, पशुधन तथा मात्स्यिकी उत्‍पादों की यहां कमी है। अत: फार्म उत्‍पादकता को उच्‍चतम करने के लिए उत्‍तर पूर्वी पर्वतीय क्षेत्र के लिए भा.कृ.अनु.प. अनुसंधान परिसर, मणिपुर केन्‍द्र, इम्‍फाल द्वारा भागीदारी के मोड में समेकित फार्मिंग प्रणाली के माध्‍यम से प्रौद्योगिकी हस्‍तक्षेप किए गए।

प्रौद्योगिकी हस्‍तक्षेप

maze-01-17112014_0.jpg

 

maze-02-17112014_0.jpg maze-03-17112014_0.jpg

मणिपुर की भौतिक, सामाजिक और आर्थिक सीमाओं को ध्‍यान में रखते हुए 2011-12 से 2013-14 की अवधि के दौरान मणिपुर के चुड़ाचंदपुर जिले के टोलेन गांव में हैंकपाउ (आदिवासी किसान) के खेत में एक समेकित फार्मिंग प्रणाली का मॉडल विकसित किया गया। इस मॉडल में सात घटकों से युक्‍त एकीकृत आदिवासी इलाके के निकट चार हैक्‍टर के क्षेत्र को तार वाली बाड़ से घेरा गया। आदिवासी उपयोजना की सहायता से धान (आरसीएम-9), मक्‍का (पूसा कम्‍पोजिट 3), मूंगफली(आईसीजीएस-76), मटर (आजाद पी-1), सब्जियों [बंदगोभी (रेयरबाल) और फूलगोभी (अर्ली हेमलता)],फलों (50 ट्री बीन, 50 कचई नींबू और 50 नारंगी), छह शूकर शिशु (संकर नस्‍ल हैम्‍पशायर), 125 कुक्‍कुट (ग्रामप्रिया), मछली पालन (कॉमन कॉर्प, ग्रास कार्प और कतला के फिंगरलिंग), जलकुंड के लिए बने 250 माइक्रॉन की कृषि पॉलीथीन की चादरें और अपशिष्‍ट पदार्थों के पुनश्‍चक्रण के लिए वर्मीकम्‍पोस्टिंग की इकाई जैसी सुविधाएं उपलब्‍ध कराके प्रौद्योगिकी हस्‍तक्षेप किया गया। समेकित फार्मिंग प्रणाली पर क्षमता निर्माण संबंधी कार्यक्रम ग्रामवासियों के लिए चलाया गया जिनमें किसानों ने भी भाग लिया।

प्रभाव

maze-04-17112014_0.jpg

इस प्रदर्शन के पश्‍चात् श्री हैंकपाउ ने 4.80 टन/है. की उच्‍चतर उपज ली जबकि इससे पूर्व उन्‍हें 3.25 टन/है. की चावल उपज मिलती थी। इस किसान ने पहली बार मूंगफली उगाईं (आईसीजीएस – 76 किस्‍म) जिससे उसे 2.40 टन/है. की शुष्‍क फली उपज प्राप्‍त हुई। मक्‍का की किस्‍म पूसा कम्‍पोजिट-3 से 3.25 टन/है. की उपज मिली ज‍बकि इसकी तुलना में उन्‍हें पहले मक्‍का की स्‍थानीय किस्‍म (चाखावकुजाक (हिल)) से 1.70 टन/है. उपज मिलती थी। इस तकनीक के अपनाने से उन्‍हें सब्‍जी की भी बढ़ी हुई उपज प्राप्‍त हुई तथा बंदगोभी और फूलगोभी की खेती से 1.50 लाख शुद्ध लाभ प्राप्‍त हुआ। दूसरे वर्ष शूकर शिशुओं की संख्‍या बढ़कर 15 हो गई जिसमें छह सूअर शामिल थे। कुक्‍कुट पालन के अंतर्गत ग्राम प्रिया नस्‍ल अच्‍छा निष्‍पादन दे रही है और इससे किसान को 40-45 अंडे प्रति दिन प्राप्‍त हो रहे हैं। उन्‍होंने मिश्रित मछली पालन प्रणाली को अपनाया है जिसमें ग्रास कार्प पानी की मध्‍य और ऊपरी परतों में रहती है जबकि कामन कार्प पानी की निचली परत में रहती है। वर्ष 2011-12 इस में किसान के पास कोई जल संग्रहण प्रणाली नहीं थी, वर्ष 2013-14 में उन्‍होंने जलकुंड में 30,000 लीटर जल एकत्र किया। उन्‍नत विधि से उन्‍हें 4 हैक्‍टर भूमि से कुल 3,63,500/- रु. का लाभ हुआ (धान की खेती (2 हैक्‍टर) =82,000 रु. मूंगफली उत्‍पादन(0.5 हैक्‍टर) = 38,000 रु., हरे भुट्टे के रूप में मक्‍का उत्‍पादन (0.5 हैक्‍टर) = 23,000 रु., रबी मौसम में सब्‍जी उत्‍पादन (1 हैक्‍टर, बंदगोभी और मूली) = 150000 रु., फल उत्‍पादन (फल लगना अभी आरंभ नहीं हुआ है) = शून्‍य, शूकर पालन = 37000 रु., कुक्‍कुट पालन = 16,000 रु., मछली पालन = 17500 रु.] जबकि इसकी तुलना में वर्ष 2011-12 में कुल लाभ 1,05,000 रु. था।

अब, वे न केवल अपने गांव बल्कि इस जिले के समस्‍त आदिवासी समुदाय के लिए आदर्श बन गए हैं। अन्‍य गांवों के किसान भी इनकी सफलता से प्रेरित हुए हैं तथा अधिकांश गांवों के मुखिया उनसे अपने गांवों में ऐसा मॉडल लागू करने का अनुरोध कर रहे हैं। इस प्रकार की सफलताओं से दुर्लभ संसाधनों का पर्वतीय पारिस्थितिक प्रणाली का बेहतर उपयोग हुआ है तथा कुल मिलाकर आदिवासी किसानों को बहुत लाभ हुआ है।

यही मॉडल कागुनगाई, पीस लैंड, तामेंगलोंग जिला, नुंगशांग गांव के सोमी, उखरूल जिले, एच.बी. स्‍टार्सन, चांदेल कुलेन, चंदेल जिला तथा सेनापति जिले के पुरूल अकुटपा गांवके आर.डी. पीटर के द्वारा भी अपनाया जा रहा है।

×