मछली को अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोटीन और बहु-असंतृप्त फैटी एसिड (PUFA), विटामिन और खनिजों जैसे अन्य मूल्यवान पोषक तत्वों का एक समृद्ध और वहनीय स्रोत माना जाता है। हाल ही में मछलियों की बिक्री में फोर्मल्डेहाइड, अमोनिया इत्यादि जैसे हानिकारक रसायनों को मिलाने की रिपोर्ट प्राप्त हुई हैं। फॉर्मल्डेहाइड एक विषाक्त अल्डेहाइड है, जिसे इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन केंसर एंड अमोनिया द्वारा कैंसर उत्पन्न् करने वाले एजेंट के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, हालांकि यह कैंसरजन्य नहीं है, लेकिन अमोनिया का लगातार अंतग्रहण मुंह, गले, आहारनाल और पेट के श्लेष्मा झिल्ली (म्यूकस मेंब्रेन) पर घावों जैसे खतरनाक स्वास्थ्य जोखिमों का कारण बन सकता है। इन रसायनों से युक्त मछलियों का सेवन मछली उपभोक्ताओं में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। चूंकि इन हानिकारक रसायनों का परीक्षण करने के लिए मौजूदा पारंपरिक जांच तकनीकें काफी समय लेने वाली होती हैं और इनके परिणाम ग़लत भी हो सकते हैं; इसलिए आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान ने मछलियों में फार्मल्डिहाइड और अमोनिया की त्वरित जॉंच के लिए एक कम लागत वाली, प्रयोक्तानुकूल पेपर स्ट्रिप विधियां विकसित की हैं।
ये जॉंच विधियां सरल, त्वरित और 2-3 मिनट के भीतर ही रंग-परिवर्तन (कलर डेवलेपमेंट) के अवलोकन के आधार पर की जाती हैं। मछलियों में फार्मेलिन और अमोनिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए दो अलग-अलग किट हैं। प्रत्येक किट में फार्मेलिन या अमोनिया द्वारा संदूषण की सीमा का आकलन करने के लिए एक रिएजेंट सोल्यूशन और एक मानक कलर-चार्ट वाले 25 परीक्षण स्ट्रिप्स होते हैं। इस पट्टी को ताजा मछली या मछली के मांस की सतह पर स्क्रैप किया जाता है, और उसके बाद रिएजेंट सोल्यूशन की 1-2 बूंदों को उसमें डालकर होने वाले रंग-परिवर्तन को देखा जाता है, जिसकी घरेलू तौर पर बिक्री की जा रही मछलियों में मिलावट की जांच के लिए दिए गए कलर चार्ट के साथ तुलना की जा सकती है। फार्मेलिन के मामले में, यदि पट्टी पर दिखाई देने वाला रंग हल्का गुलाबी है, तो सैंपल को फार्मेलिन से मुक्त माना जाता है। यदि रिएजेंट को मिलाने पर यह पट्टी हरी हो जाती है और उसके बाद गहरी नीली होने लगती है तो ऐसी दशा में फार्मेलिन का स्तर प्रति किलो 20-100 मिलीग्राम के बीच होगा, जो इस बात का संकेत देता है कि मछली खाने के लिए सुरक्षित नहीं है। इसी तरह, अधिक अमोनिया संदूषण के मामले में, पट्टी का रंग गहरा नीला हो जाएगा जिससे यह पता चलता है कि इसमें अमोनिया का अंश प्रति किलो 300 मिग्रा से अधिक है। यदि अमोनिया का स्तर 100-300 मिग्रा/किग्रा के बीच या उससे कम होता है, तो मछली खाने के लिए उपयुक्त मानी जा सकती है और जब अमोनिया का स्तर प्रति किग्रा 100 मिग्रा से कम होता है तो उस दशा में पट्टी का रंग पहले हल्का हरा और बाद में हल्का नीला हो जाता है।
आईसीएआर-सीआईएफटी की इस सफल तकनीकी उपलब्धियों से बाजार में उपलब्ध मछलियों की आहारात्मक सुरक्षा और गुणवत्ता संबंधित पहलुओं को सुनिश्चित किया जाएगा, और प्रत्युत्तर में इस क्षेत्र में मत्स्य व्यापारियों द्वारा कपटपूर्ण मिलावट को हतोत्साहित किया जा सकेगा। विभिन्न स्थानों पर कुछ नमूना परीक्षण के माध्यम से भी इस तकनीक की पुष्टि की गई है।
(स्रोत: आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान)
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