अंडमान द्वीप समूहों की तटवर्ती निम्न भूमियों की जलवायु विभिन्न पर्यावरणीय कारणों से खेती के लिए अनुकूल नहीं है। वर्षा के कम दिनों से सूखे की अवधि लंबी हो जाती है तथा शुष्क मौसम में मृदा की लवणता के कारण इस क्षेत्र में खेती का काम बहुत जोखिम भरा हो जाता है। बढ़ते हुए औसत वैश्विक तापमान और समुद्र तल के खतरे का प्रबंध करना बहुत महत्वपूर्ण है, ताकि इन क्षेत्रों के लोगों को टिकाऊ आजीविका सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा वर्ष 2004 के पश्चात् सूनामी समुद्रजल अक्सर भूमि में प्रवेश कर जाता है तथा धान के खेतों में लवणीय जल भर जाता है। भारी ऊष्ण कटिबंधीय वर्षा के साथ-साथ खेतों में समुद्री जल के आ जाने से अक्सर खेत में खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं। दक्षिण अंडमान का कोलीनपुर गांव इस प्रकार की समस्याओं से प्रभावित अनेक गांवों में से एक है।
यह अनुभव करते हुए कि कृषि तथा आजीविका लवणीय जल के प्रवेश करने तथा जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं, इस गांव के श्री रंजीत बरोई के खेत में उठी हुई क्यारी तथा कूंड प्रणाली का प्रदर्शन किया गया। राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेष परियोजना के अंतर्गत इस प्रणाली का प्रदर्शन भा.कृ.अनु.प. –केन्द्रीय द्वीप अनुसंधान कृषि अनुसंधान संस्थान, पोर्ट ब्लेयर द्वारा कोलीनपुर गांव, दक्षिण अंडमान के 10 अन्य किसानों के खेतों में भी किया गया। उसके बाद से अर्थात् 2012 से अब तक की लगभग 4वर्ष की अवधि में कोलीनपुर गांव, दक्षिण अंडमान द्वीप समूह के श्री बरोई का जीवन नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया है।
उठी हुई क्यारी और कूंड (आरबीएफ) प्रणाली में मार्च 2013 में तटवर्ती निम्न भूमि के लगभग 0.3 हैक्टर क्षेत्र में सुविधाजनक लंबाई (लगभग 36 मीटर) की 6 मी. चौड़ी चार कूंडों के साथ-साथ 4 मी. चौड़ाई की तीन उठी हुई क्यारियां बनाई गईं। इन क्यारियों से लवण तथा अन्य आविषालु पदार्थ परवर्ती वर्षा मौसम के दौरान वर्षा जल का उपयोग करके क्यारी से बाहर निकाल दिए गए। वर्षा जल का कूंडों में 2014 और उसके बाद से संग्रहण किया गया तथा प्रथम वर्ष में एकत्र किए गए जल को बाहर निकाल दिया गया। जुलाई 2014 के अंत तक लगभग 465 घन मी. जल एकत्र करके कूंडों में भंडारित किया गया जो भारतीय मेजर कार्प मछलियों को पालने के लिए पर्याप्त था। भा.कृ.अनु.प. – सी.आई.ए.आर.आई. ने मछली शिशु उपलब्ध कराए तथा किसानों ने वनराज पक्षियों को घर के पिछवाड़े पालकर कुक्कुटपालन पुन: शुरू किया। श्री बरोई ने कृषि कार्यों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने के लिए संस्थान की कृषि मौसम इकाई से नियमित रूप से कृषि परामर्श प्राप्त किए।
इस किसान ने फार्म अपशिष्टों, कुक्कुट खाद और पंचगव्य से तैयार कम्पोस्ट का उपयोग करके आरबीएफ प्रणाली की मेड़ों पर ऑर्गेनिक केले की खेती शुरू की। सूखे मौसम के दौरान केले की फसल की सिंचाई के लिए कूंड़ों में भरे जल का उपयोग किया गया तथा इसके साथ ही चौलाई और मूली जैसी अल्पावधि की सब्जियां भी अंतरफसल के रूप में सफलतापूर्वक उगाई गईं। श्री बरोई ने संस्थान की तकनीकी सहायता और ज्ञान के द्वारा अपने खेत में फलों व सब्जियों की खेती तथा मछली व कुक्कुट पालन का एकीकरण किया और इस प्रकार 0.3 एकड़ क्षेत्र से 40,000 रु. कमाए। उनकी यह कमाई आने वाले वर्षों में और भी बढ़ेगी। ये अब अंडमान द्वीप समूहों के तटवर्ती निम्न भूमियों के अन्य किसानों के लिए एक आदर्श किसान बन गए हैं।
''मेरा भाग्य भा.कृ.अनु.प. – सीआईएआरआई के रूप में उठी हुई क्यारी तथा कूंड़ प्रणाली के द्वारा उदित हुआ जिसके अंतर्गत अपघटित तटवर्ती निम्न भूमियों में भी केले की ऑर्गेनिक खेती के लिए सक्षम प्राद्योगिकी उपलब्ध हुई'', ये शब्द इस किसान ने भा.कृ.अनु.प.के प्रति आभार प्रकट करते हुए व्यक्त किए।
यह मॉडल देश के इस सुदूर भाग में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विरुद्ध भी टिकाऊ सिद्ध हो सकता है।
(स्रोत: भा.कृ.अनु.प. – केन्द्रीय द्वीप कृषि अनुसंधान संस्थान पोर्ट ब्लेयर)
फेसबुक पर लाइक करें
यूट्यूब पर सदस्यता लें
X पर फॉलो करना X
इंस्टाग्राम पर लाइक करें