स्थिति विश्लेषण: राष्ट्र, क्षेत्र तथा सभी जिला के किसानों आदि के आर्थिक विकास में खेती बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लाभदायक उद्यम बनाने के लिए उत्पादन (उत्पाद) का प्रभावी ढंग से विपणन किये जाने की बात आती है। बाड़मेर भारत का पांचवां सबसे बड़ा जिला होने के नाते, जब कृषि उत्पादन पर विचार किया जाता है तो यहां, इस जिले को, कठोर जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस क्षेत्र में ऐओलाइन और दोमट महीन से लेकर खुरदरी और चूने वाली मिट्टी होती है। क्षेत्र में पश्चिम में वर्षा 200 मिमी से लेकर पूर्व में लगभग 370 मिमी तक होती है और सूखे की घटना असामान्य विशेषता नहीं है। परंपरागत रूप से इस क्षेत्र में मुख्य बागवानी फ़सलें बेर, खजूर और अनार हैं जो उनकी जलवायु आवश्यकता के अनुसार उच्च उपयुक्तता के कारण व्यापक रूप से उगाई जाती हैं।
प्रौद्योगिकी: फ़िकस कैरिका, मानव जाति के लिए ज्ञात प्राचीन फलों में से एक है जिसका उल्लेख बाइबिल में भी मिलता है। उच्चतम अंजीर उत्पादन मुख्य रूप से मध्य पूर्व के देशों द्वारा चिह्नित है, भारत अंजीर उत्पादन में 12वें स्थान पर है। भारत में अंजीर को एक मामूली फल फसल माना जाता है और सामान्य (खाद्य) अंजीर की व्यावसायिक खेती ज्यादातर महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश (लखनऊ और सहारनपुर) कर्नाटक (बेल्लारी, चित्रदुर्ग और श्रीरंगपटना) और तमिलनाडु तथा कोयम्बटूर के पश्चिमी हिस्सों तक ही सीमित है।
उप-उष्णकटिबंधीय और पर्णपाती फल होने के कारण, अंजीर की खेती को शुष्क और अर्ध-शुष्क वातावरण, उच्च गर्मी तथा तापमान, भरपूर धूप एवं मध्यम तापमान और मध्यम पानी की उपलब्धता उपयुक्त हो सकता है। अंजीर उच्च तापमान, 450 सेंटीग्रेड तक, में जीवित रह सकता है। बाड़मेर क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियां अंजीर की खेती के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं। अब किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से कम लागत में अधिक आय पैदा करने वाली कृषि पद्धतियों पर जोर दिया गया है।
इनपुट: वर्ष 2012 में अपनी स्थापना के समय से, कृषि विज्ञान केन्द्र, गुड़ामालानी बाड़मेर क्षेत्र के कृषक समुदाय की आजीविका की स्थिति के उत्थान के लिए काम कर रहा है। केवीके, गुडामालानी प्रशिक्षण आयोजित करके ज्ञान और कौशल का विकस कर रहा है तथा उन फसलों या प्रथाओं पर जोर दे रहा है जो इस क्षेत्र के लिए सबसे उपयुक्त हैं। केवीके द्वारा समय-समय पर इस क्षेत्र में नई फसलों और संबद्ध गतिविधियों की शुरुआत की संभावना का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण किए जाते हैं।
वर्ष 2019-20 में केवीके बाड़मेर केन्द्र में 5.00 हेक्टर क्षेत्र में अंजीर की लगाई गई और अब यह उल्लेखनीय रूप से 200.00 हेक्टर क्षेत्र को आच्छादित कर रही है। इलकी मुख्य किस्म "डायना" है जिसे पौधों के बीच 4x4 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। पानी की कमी से पौधों की सुरक्षा के लिए खेती वाले क्षेत्र में ड्रिप सिंचाई प्रणाली स्थापित की गई है। वर्तमान में अंजीर की खेती वाले ब्लॉक चौहटन, सिंदरी, शिवना, गुडामलानी, बाड़मेर और शिव हैं। इस प्रकार पौधे तीसरे वर्ष में उपज देना शुरू कर देते हैं और प्रत्येक पौधा 15-20 किलोग्राम कच्चा उपज (फल) देता है।
प्रारंभ में रोपण सामग्री की व्यवस्था स्वयं केवीके के सहयोग से की गई और इसके बाद मौजूदा उत्पादकों ने प्रौद्योगिकी अपनाने वाले नए किसानों से आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई।
परिणाम: प्राप्त कच्चा माल 60 से 100 रु. प्रति किलो। रुपये की दर से बेचा जाता है। इसलिए एक पेड़ 1500-2000 रु. देता है। उत्पादकों द्वारा अर्जित प्रति हेक्टेयर आय 5-6 लाख है जो मौजूदा कृषि स्थिति की तुलना में काफी अधिक है। अंजीर की खेती उल्लेखनीय रूप से किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार कर रही है, और यह किसान परिवार को गुणवत्तापूर्ण पोषण भी प्रदान कर रही है।
लाभ: इसकी उपज की बहुत अधिक मांग तथा आस-पास के बाजारों की उपलब्धता अंजीर उत्पादकों के लिए मुनाफे का सौदा बन रही है। उत्पाद के उच्च पोषक मूल्य से संबंधित होने के कारण इसकी स्थानीय के साथ-साथ उद्योगों में उच्च मांग है।
विस्तार: शुरुआत में अंजीर की खेती 5 हेक्टर क्षेत्र में शुरू की गई थी और अब बड़ी संख्या में किसान अंजीर की खेती के लिए आगे आ रहे हैं, क्योंकि, अंजीर उत्पादकों द्वारा अर्जित बड़े लाभ से किसान अवगत हो रहे हैं। इसलिए केवीके, सफल अंजीर उत्पादक किसानों को खेती के परिणामों का प्रदर्शन करके अन्य किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए लगातार प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इसलिए, जिले के सभी प्रखंडों के किसान ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के कृषक समुदाय भी अंजीर की खेती करने के लिए काफी उत्सुक दिख रहे हैं।
(स्रोत: भाकृअनुप-कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, जोधपुर)
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