बाढ़ के उपरांत फसल प्रबंधन और आईबीएफआई के माध्यम से बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में कृषि अनुकूलन

बाढ़ के उपरांत फसल प्रबंधन और आईबीएफआई के माध्यम से बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में कृषि अनुकूलन

प्राकृतिक आपदा होने के नाते बाढ़ जहाँ वैश्विक कृषि के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर कर सामने आ रही है, वहीं खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा भी बनते जा रही है। देश के कुल बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों (40 मिलियन/हेक्टेयर) का लगभग 12.7% और 4.2% क्षेत्र क्रमशः बिहार और ओडिशा में है। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर और पूर्वी चंपारण जिले तथा ओडिशा का पुरी ज़िला अत्यधिक वर्षा की घटनाओं, खराब जल निकासी और नदी के बहाव के उल्लंघन अथवा तटबंध के टूटने के कारण बाढ़ के लिए अतिसंवेदनशील है। बाढ़ का पानी 6 से 15 दिन तक कृषि खेतों में बना रहता है जिससे खरीफ फसलों, मुख्य रूप से चावल को भारी नुकसान होता है।

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बाढ़ रोधी कृषि पद्धतियों और अनुकूलन उपायों को विकसित करने तथा ‘बाढ़ के उपरांत फसल प्रबंधन और सूचकांक आधारित बाढ़ बीमा (आईबीएफआई) के माध्यम से बिहार और ओडिशा के बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में कृषि अनुकूलन की वृद्धि’ के लिए भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का पूर्वी अनुसंधान परिसर, पटना और अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (आईडब्ल्यूएमआई), कोलंबो के सहयोग से वर्ष 2017 में एक शोध अध्ययन की शुरुआत की। इस पहल का उद्देश्य खेती योग्य क्षेत्रों में बाढ़ के पानी की सीमा और अवधि के आकलन की गुणवत्ता को बढ़ाने के संदर्भ में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के लिए एक प्रौद्योगिकी सहायता आधार विकसित करना भी है।

शुरुआत में संस्थान ने सबसे गंभीर रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पहचान करने और विभिन्न परिदृश्यों के लिए बाढ़ के उपरांत प्रबंधन की रणनीतियों को ईजाद करने के लिए इन जिलों में बाढ़ की आवृत्ति और सीमा का विश्लेषण किया (Brahmanand et al., 2017; http://www.iiwm.res.in/publication.php)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के गायघाट प्रखंड में चरणवार फसल क्षति का आकलन बाढ़ की अवधि और सीमा दोनों के संदर्भ में किया गया तथा सूचकांक आधारित फसल बीमा में 7000 रुपए प्रति हेक्टेयर से लेकर 20,000 रुपए प्रति हेक्टेयर तक का भुगतान वर्ष 2017 और 2018 के दौरान क्रमशः 43 और 170 किसानों को किया गया।

पिछले दो वर्षों के दरम्यान भाकृअनुप और अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान ने परिचालन क्षेत्र में फसल क्षति के आधार पर बाढ़ के उपरांत फसल प्रबंधन योजना तैयार की और उसे बिहार के 2 प्रखंडों, गायघाट (मुजफ्फरपुर जिला), चिरैया (पूर्वी चंपारण जिला) और ओडिशा के एक प्रखंड कानास (पुरी जिला) में लागू किया।

बिहार के बाढ़ प्रभावित किसानों को बाढ़ के उपरांत की फसल प्रबंधन योजना के अनुसार वैकल्पिक फसलें, अर्थात संकर मक्का, मसूर, सरसों, बैंगन, टमाटर, खीरा, गोभी और फूलगोभी के बीज उपलब्ध कराए गए। बाढ़ के उपरांत इन बीजों को अनुकूलतम समय में बोया गया। बिना हस्तक्षेप के बाढ़ से क्षतिग्रस्त खेत की तुलना में मक्का जैसी वैकल्पिक फसलों की समय पर बुवाई होने के कारण किसान लगभग 16,700/- रुपए प्रति हेक्टेयर अतिरिक्त शुद्ध लाभ कमा सकते हैं। बाढ़ के उपरांत की स्थिति के तहत टमाटर, बैंगन, गोभी, खीरा और फूलगोभी जैसी सब्जियों की खेती के कारण किसानों का शुद्ध आय 33,200 रुपए से बढ़कर 37,700 रुपए प्रति हेक्टेयर दर्ज किया गया।

ओडिशा के पुरी जिले के कानास ब्लॉक के बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में सामान्य प्रत्यारोपित (30 दिन पुरानी) चावल की अंकुर (3.5 टन हेक्टेयर-1) की औसत अनाज के उपज की तुलना में अधिक आयु वाले चावल के अंकुरों (60 दिनों) के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप वर्ष 2018 और 2019 के दौरान क्रमशः 24% (4.35 टन हेक्टेयर-1) और 29% (4.51 टन हेक्टेयर-1) अधिक अनाज की उपज हुई।

बाढ़ के दौरान बेहतर गुंजाइश के लिए किसानों को खेती योग्य क्षेत्रों में आम के पौधे लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया। कुल मिलाकर, बाढ़ के उपरांत प्रबंधन के हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप लाभ में वृद्धि हुई: लागत अनुपात 1.55 से 3.08 तक देश के कालानुक्रमिक बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में कृषि अनुकूलन बढ़ाने की क्षमता रखता है।

(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर)

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