दलहन के कटोरे के रूप में जाना जाने वाला बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर जिले के पास सिंचाई सुविधाओं का अभाव है क्योंकि इस क्षेत्र में लगातार वर्षा की कमी दर्ज की गई है। जिले की केवल 27.7% भूमि ही सिंचित हैं, शेष 72.3% भूमि वर्षा आधारित है। नहरें सिंचाई का मुख्य स्रोत हैं जिसके कारण दलहनी फसल क्रियात्मक तौर पर मुरझा जाती हैं। इन स्थितियों में पानी की बचत के लिए सिंचाई के तरीकों अर्थात स्प्रिंकलर (छिड़काव) और ड्रिप (सूक्ष्म या बूँद-बूँद) सिंचाई प्रणाली की काफी गुंजाइश है। इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र, कुरारा, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश ने क्षेत्र में सिंचाई प्रणालियों का प्रदर्शन किया, ताकि सिंचाई के पानी के उपयोग की दक्षता को अधिकतम किया जा सके और क्रियात्मक तौर पर मुरझाने के कारण दलहन उत्पादन के नुकसान से बचा जा सके।
केवीके की टीम ने स्थितियों का विश्लेषण करते हुए पाया कि दलहन उत्पादन में लगे किसानों ने प्रवाहित सिंचाई की, जबकि दलहनी फसलों के लिए विभिन्न चरणों में हल्की सिंचाई की आवश्यकता थी। उपर्युक्त दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए टीम ने दलहन उत्पादन में हल्की एवं समान सिंचाई, जल बचत सिंचाई विधि एवं छिड़काव सिंचाई प्रणाली को सफल पाया।
30 सेमी की पंक्ति रिक्ति और लगभग 10 सेमी के पौधे से पौधे के अंतर के साथ बुवाई की गई पंक्ति अक्टूबर में एक बीज ड्रिल के साथ पूरी हुई। बीजाई के समय और फसल के फूल अवस्था से ठीक पहले छिड़काव प्रणाली से दो सिंचाई की गई।
उत्पादन:
- छिड़काव सिंचाई प्रणाली में (17.31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) अनाज की उपज 6.04 क्विंटल प्रति हेक्टेयर (34.8%) अधिक थी।
- खेती की लागत छिड़काव सिंचाई प्रणाली में 22700 रुपए/हेक्टेयर अर्थात 2500 रूपए (11.0%) से कम थी।
- छिड़काव सिंचाई प्रणाली में सकल आय 79972 रुपए/हेक्टेयर अर्थात 27905 रुपए/हेक्टेयर (34.8%) से अधिक थी।
- छिड़काव सिंचाई प्रणाली में शुद्ध आय 57272 रुपए/हेक्टेयर अर्थात 30405 रुपए/हेक्टेयर (53.0%) से अधिक थी।
- छिड़काव सिंचाई प्रणाली में लागत अनुपात 2.52: 1 अर्थात 1.32: 1 (52.3%) से अधिक था।
परिणाम:
किसानों के एक समूह और केवीके टीम ने किसानों के क्षेत्र में प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के उत्पादन का विश्लेषण किया। पैदावार और उसकी विशेषताओं के साथ-साथ लाभ के मामले में प्रदर्शन: लागत अनुपात 34% से 52% तक अधिक दर्ज किया गया था। राज्य के बागवानी विभाग द्वारा हमीरपुर जिले में ही नहीं, बल्कि बुंदेलखंड क्षेत्र के सभी जिलों में इस प्रौद्योगिकी का प्रचार-प्रसार किया गया।
प्रभाव:
जल की बचत: उनके संभावित प्रदर्शन के लिए दलहनी फसलों की आवश्यकता के अनुसार, छिड़काव प्रणाली के साथ हल्की और समान सिंचाई महत्त्वपूर्ण फसल विकास के चरणों में दी गई थी और प्रवाहित सिंचाई पद्धति की तुलना में लगभग 40% से 45% पानी बचाया गया था।
(स्त्रोत: कृषि विज्ञान केंद्र, हमीरपुर, उत्तर प्रदेश)
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