30 नवम्बर, 2023, देहरादून
भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (आईआईएसडब्ल्यूसी), देहरादून ने उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट), देहरादून द्वारा आपदा प्रबंधन पर चल रही छठी विश्व कांग्रेस के एक भाग के रूप में आज ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय परिसर में जलवायु प्रतिरोधी प्रौद्योगिकियों पर एक विशेष तकनीकी सत्र का आयोजन किया।
भाकृअनुप-आईआईएसडब्ल्यूसी के निदेशक, डॉ. एम. मधु ने सत्र का समन्वय किया। उन्होंने संस्थान की उपलब्धि एवं आगे के क्रियाकलाप के अलावा इस सत्र के दृष्टिकोण एवं प्रतिभागियों के बारे में विचार साझा किया।
डॉ. चरण सिंह, प्रमुख, एचआरडी और एसएस डिवीजन, आईआईएसडब्ल्यूसी ने संसाधन संरक्षण और आजीविका के लिए मानव संसाधन विकास तथा कृषि वानिकी मॉडल पर बात की।
डॉ. राजेश के सिंह, प्रमुख, जल विज्ञान एवं इंजीनियरिंग ने जल संसाधन संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को रोकने तथा उत्पादन क्षमता में सुधार के लिए संरक्षित जल के कुशल उपयोग पर मुख्य व्याख्यान प्रस्तुत किया।
डॉ. जे.एम.एस. तोमर, प्रमुख, पादप विज्ञान ने मृदा एवं जल संरक्षण (एसडब्ल्यूसी) में वनस्पति की भूमिका तथा लेमन ग्रास से आजीविका के रास्ते तथा बेहतर बागवानी तकनीकों सहित विभिन्न कृषि वानिकी मॉडल पर विचार-विमर्श किया।
डॉ. डी.वी. सिंह, प्रमुख, मृदा विज्ञान और कृषि विज्ञान प्रभाग ने मृदा संसाधनों तथा उनके महत्व, एसडब्ल्यूसी एवं वाटरशेड प्रबंधन प्रौद्योगिकियों की बैटरी के माध्यम से प्रबंधन के कुशल तरीकों पर बात की।
डॉ. एम. मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख, पीएमई और केएम यूनिट, आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून ने हिमालयी क्षेत्र के लिए कृषि-आधारित मॉडल की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए मानव तथा प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाली आपदाओं की स्थिति में जैव विविधता संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला।
आईआईएसडब्ल्यूसी के पैनलिस्टों और लाइनिंग उद्योग से आमंत्रित वक्ताओं द्वारा कुल 6 मुख्य-नोट प्रस्तुतियाँ आयोजित की गईं। ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी में 28 नवंबर से 1 दिसंबर 2023 तक आयोजित 4 दिवसीय कांग्रेस में लगभग 40 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने भाग लिया तथा आईआईएसडब्ल्यूसी के पैनलिस्टों और वक्ताओं के साथ बातचीत की।
सत्र से निम्नलिखित 5 सिफारिशें सामने आईं जिन्हें इस कांग्रेस की कार्यवाही में उपयुक्त रूप से शामिल करने के लिए आयोजकों के साथ साझा किया गया।
1. सहभागी एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसके परिणामस्वरूप संसाधन संरक्षण और आजीविका समर्थन के माध्यम से बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के साथ सतत विकास होता है।
2. मृदा क्षरण नियंत्रण कुल कार्बन पृथक्करण क्षमता के एक बड़े हिस्से में योगदान कर सकता है। जल संचयन और पुनर्चक्रण पर जोर देने के साथ प्राकृतिक संसाधन संरक्षण भविष्य में जलवायु परिवर्तन को कम कर सकता है।
3. कृषि-वानिकी प्रौद्योगिकियां जलवायु के प्रति लचीली हैं और आजीविका सुरक्षा के लिए बढ़ी हुई उत्पादकता, संसाधन संरक्षण और आय सृजन के लिए इसे बड़े पैमाने पर बढ़ाया/ प्रचारित किया जाना चाहिए।
4. सर्वेक्षण के लिए प्रशिक्षित स्थानीय पैरा-टैक्सोनोमिस्ट (स्थानीय प्रमुख मुखबिर) के अलावा बीएसआई, जेडएसआई, एफएसआई, जीबीपीआई एचई, डब्ल्यूआईआई, एफआरआई, आईआईआरएस, राज्य जैव विविधता बोर्ड, भाकृअनुप, स्थानीय शिक्षाविदों सहित संगठनों एवं हितधारकों के बीच तालमेल लाने और वनों, कृषि परिदृश्यों, नदियों और अन्य जलीय संसाधनों सहित विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में मौजूदा जैविक संसाधनों का अस्थायी तथा स्थानिक स्तर पर दस्तावेजीकरण करने और बाद के परिवर्तन या प्रवृत्ति विश्लेषण के लिए एक राष्ट्रीय/ क्षेत्रीय सूची/ डेटाबेस/ ऐतिहासिक डेटा बेस बनाने के लिए प्रभावी समन्वय की रणनीति बनाएं।
5. भू-सिंथेटिक सामग्रियों के विभिन्न रूपों का उपयोग जल निकायों से रिसाव नियंत्रण एवं भूस्खलन के नियंत्रण में भी कुशलता से किया जा सकता है।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, देहरादून)
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