58वीं वार्षिक चावल समूह बैठक (एआरजीएम) का आयोजन असम कृषि विश्वविद्यालय, जोरहाट में 4 से 5 मई, 2023 तक की गई।
मुख्य अतिथि, डॉ. तिलक राज शर्मा, उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), भाकृअनुप ने अनुसंधान के बहु-विषयक मोड के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कम/ अल्ट्रा-लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स तथा उच्च अनाज प्रोटीन किस्मों सहित विशेष चावल के विकास पर जोर दिया। डॉ. शर्मा ने यह भी कहा कि कई तनाव सहिष्णुता और उच्च सूक्ष्म पोषक स्तर वाली किस्मों को विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने एनयूई तथा डब्ल्यूयूई किस्मों के विकास के लिए गति प्रजनन एवं अन्य जीनोम प्रौद्योगिकियों के विकास पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रोपाई, कटाई एवं मूल्य श्रृंखला में वृद्धि के लिए मशीनीकृत तकनीकों को विकसित करने की भी आवश्यकता है।

डॉ. आर.एम. सुंदरम, निदेशक, भाकृअनुप-आईआईआरआर ने चावल पर एआईसीआरआईपी द्वारा की गई प्रगति और 2022-23 के लिए एआईसीआरआईपी और आईआईआरआर के अनुसंधान पर प्रकाश डाला।
डॉ. नायक, निदेशक, भाकृअनुप-एनआरआरआई, कटक ने किसानों के लिए डीएसआर और कार्बन क्रेडिट के महत्व पर जोर दिया।
डॉ. एस.के. चेतिया, मुख्य वैज्ञानिक, एआरआरआई, तीताबार ने 1923 में अपनी स्थापना के बाद से असम चावल अनुसंधान संस्थान की 100 वर्षों की शानदार यात्रा को प्रस्तुत किया।
डॉ. एस.के. प्रधान, सहायक महानिदेशक (एफएफसी) ने पोषण युक्त किस्मों के विकास, कम लागत वाली मशीनों के विकास तथा चावल उत्पादों के मूल्य श्रृंखला में वृद्धि पर जोर दिया।
डॉ. एस.आर. दास, मानद प्रोफेसर, ओयूएटी ने प्रजनकों से विशेष रूप से पूर्वी भारत के लिए जलमग्न सहिष्णुता, बाढ़ की स्थिति के प्रति सहिष्णुता एवं अवायवीय श्वसन जैसे गुणों को धारित करने वाले किस्मों को विकसित करने का आग्रह किया।
डॉ. बी.सी. डेके, वाइस चांसलर, एएयू, जोरहाट ने 'हरित क्रांति' से 'हरित वाणिज्य' में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने नई किस्मों के विकास के साथ-साथ अन्य प्रथाओं के एक उपयुक्त पैकेज के विकास पर भी जोर दिया, जिसे अब विकसित करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर दस प्रकाशन, दो वेबसाइट एवं दो मोबाइल ऐप जारी किए गए।
इससे पहले डॉ. ए. भट्टाचार्य, अनुसंधान निदेशक (कृषि), एएयू, जोरहाट ने स्वागत संबोधन दिया।
डॉ. एम.एस. प्रसाद, संयोजक, 58वें एआरजीएम, एएयू, जोरहाट ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा
कार्यक्रम में भारत और अन्य देशों के लगभग 400 प्रतिनिधियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
(स्रोत: भाकृअनुप-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद)
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