8 जनवरी, 2025, मुंबई
मत्स्य पालन और जलीय कृषि में प्रगति को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भाकृअनुप-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान ने सहकारी मत्स्य संघ (सीओएफएफईडी), पटना, बिहार को दो अत्याधुनिक तकनीकों का लाइसेंस दिया। मत्स्य पालन क्षेत्र की स्थिरता तथा उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से आज आधिकारिक तौर पर ये तकनीकी सौंपी गई।
भाकृअनुप-सीआईएफई के निदेशक, डॉ. रविशंकर सी.एन. ने भारतीय मत्स्य पालन क्षेत्र के भविष्य को आगे बढ़ाने तथा अनुसंधान से बाजार तक के मार्ग को मजबूत करने में इस तरह के सहयोग के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह साझेदारी भाकृअनुप-सीआईएफई के क्षेत्र में ज्ञान और प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने, मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि उद्योग में नवाचार, स्थिरता तथा विकास को बढ़ावा देने के चल रहे प्रयासों में एक मील का पत्थर साबित होगा।
लाइसेंस प्राप्त प्रौद्योगिकियों में शामिल हैं:
1. त्रिस्तरीय प्रणाली के तहत कैटफ़िश हैचरी और बीज पालन: डॉ. सी.एस. चतुर्वेदी, डॉ. डब्ल्यू.एस. लाकड़ा, डॉ. अर्पिता शर्मा और डॉ. ए. लैंडगे द्वारा विकसित यह अभिनव विधि कैटफ़िश पालन के लिए हैचरी प्रबंधन तथा बीज पालन के लिए एक उन्नत, टिकाऊ दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस तकनीक को पहले ही पेटेंट मिल चुका है।
2. फिशएनयूआर™: एक अभूतपूर्व डू-इट-योरसेल्फ (DIY) तकनीक जो मछली के अपशिष्ट से जैविक खाद बनाने में सक्षम बनाती है। श्री अनुराग सिंह, डॉ. अर्पिता शर्मा, डॉ. मार्टिन जेवियर और श्री शुभम सोनी द्वारा विकसित इस तकनीक को ट्रेडमार्क प्रदान किया गया है और यह अपशिष्ट प्रबंधन और टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिए एक मूल्यवान समाधान प्रस्तुत करती है।
इन दोनों प्रौद्योगिकियों के लाइसेंस के लिए समझौता ज्ञापन (एमओए) पर औपचारिक हस्ताक्षर के समय, डॉ. अर्पिता शर्मा (आविष्कारक और सह-आविष्कारक, प्रधान वैज्ञानिक और एफईईएस प्रभाग के प्रमुख), डॉ. एस.पी. शुक्ला (आईटीएमयू के प्रभारी अधिकारी), डॉ. स्वदेश प्रकाश (प्रधान वैज्ञानिक, एफईईएस प्रभाग) और भाकृअनुप-सीआईएफई के अन्य प्रमुख कर्मचारी मौजूद रहे। कॉफ़ेड टीम का प्रतिनिधित्व प्रबंध निदेशक, श्री ऋषिकेश कश्यप के साथ-साथ श्री रामदास संधे, श्री छोटे साहनी और अन्य अधिकारियों ने किया।
यह प्रौद्योगिकी हस्तांतरण जलीय कृषि तथा मत्स्य पालन क्षेत्रों में आगे की प्रगति और बेहतर आजीविका का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे वैज्ञानिक समुदाय और बिहार के स्थानीय मत्स्य पालक दोनों को लाभ होगा।
(स्रोत: भाकृअनुप-केन्द्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान, मुंबई)
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