पिंजरा संवर्धन की बढ़ती अनुकूलनीयता और लाभप्रदता के विविधीकरण की तत्काल आवश्यकता के कारण भाकृअनुप-सिफरी ने व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्वदेशी मछली की कई प्रजातियों के व्यवहार्यता का अध्ययन किया है और जलाशयों में स्थापित भाकृअनुप-सिफरी मॉडल पिंजरों में अपनी उत्पादन प्रौद्योगिकी विकसित की है।
उच्च मूल्य के बटर कैटफ़िश, ओमपोक बिमाकुलैटस जिसे आमतौर पर पाबड़ा के रूप में जाना जाता है और माइनर कार्प लेबियो बाटा जिसे स्थानीय तौर पर बाटा के नाम से जाना जाता है के सफल प्रदर्शन और उपज को मैथन जलाशय, झारखंड के पिंजरों में बाजार के आकार में सफलतापूर्वक संवर्धित किया गया था। ओमपोक बिमाकुलैटस (8.05±1.56) के अविकसित मछली के बच्चे को अलग-अलग घनत्व (15 से 35 Nos. m-3) के पिंजरों (4mx4mx2m) में संवर्धित किया गया था। संवर्धित अवधि के सात महीनों में 80% से अधिक जीवित रहने के साथ 50-62 ग्राम का औसत आकार हासिल किया गया था। कुल 150 किलोग्राम मछलियों की उपज प्राप्त की गई।
लेबियो बाटा (6.18±1.32 ग्राम) को अलग-अलग घनत्व (50 से 100 Nos. m-3) के पिंजरों (5mx5mx3m) में संवर्धित किया गया था। 6 महीने की संवर्धित अवधि के बाद 85% से अधिक जीवित रहने के साथ 45-52 ग्राम का औसत वजन प्राप्त किया गया और कुल 430 किलोग्राम मछली उपजाया गया।
इसी तरह उच्च मूल्य, मध्यम कार्प, पंटियस सराना एक शाकाहारी मछली जिसे आमतौर पर पुटी के नाम से जाना जाता है, को ओडिशा के गंजाम जिले के सलिया बांध में चार पिंजरों (6m x 4m x4m) में रखा गया था। उन्नत मछली के बच्चे (25±3.6 ग्राम) को 10 Nos. m-3 की दर से भंडारित किया गया था। संवर्धित अवधि के 3 महीने के बाद 150 ग्राम का औसत वजन और 90% से अधिक जीवित रहने की दर हासिल की गई थी। कुल 460 किलोग्राम मछलियों को उपजाया गया था। मछलियों की प्राकृतिक सफाई के कारण पिंजरे बायोफाउलिंग जीवों से रहित थे। पंगेसियस जैसी अन्य मछली प्रजातियों के साथ सराना का समावेश बायोफाउलिंग जीवों को नियंत्रित करने के अलावा उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकता है। उच्च बाजार की मांग के कारण पी. सराना पूर्वी भारतीय जलाशयों में पिंजरे के संवर्धन के विविधीकरण के लिए एक उम्मीदवार मछली प्रजाति हो सकती है।
उच्च मूल्य की प्रजातियों के साथ पिंजरा संवर्धन के विविधीकरण से न केवल इस प्रथा को अपनाने में वृद्धि बल्कि इससे लाभप्रदता भी बढ़ेगी। साथ ही, यह भारत के जलाशयों और आर्द्र भूमि में संलग्न प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसानों की आय को दोगुना करने का मार्ग प्रशस्त होगा।
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