शाकीय रूप से प्रवर्धित फसलों में गुणवत्ता रोपण सामग्री की उपलब्धता हमेशा से सीमित रही है। सर्वाधिक शाकीय प्रवर्धित फसल होने के कारण आलू की फसल में बड़ी संख्या में बीजजनित रोग होते हैं जो कि उपज में कमी के लिए उत्तरदायी होते हैं। इसलिए, यह जरूरी है कि आलू के टिकाऊ और किफायती उत्पादन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले स्वस्थ बीज का उपयोग किया जाए। गुणवत्ता आलू बीज उत्पादन के लिए पिछले पांच दशकों से भारत में ''बीज प्लॉट तकनीक'' पर आधारित पारम्परिक बीज उत्पादन प्रौद्योगिकी का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें प्रजनक बीज उत्पादन के लिए चार चक्रों में वायरस मुक्त मातृ कंदों का क्लोनल गुणनीकरण और सभी प्रमुख वायरस के लिए कंदीय सूचीकरण शामिल है। भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला द्वारा उत्पन्न प्रजनक बीज की आपूर्ति विभिन्न राज्य सरकार के संगठनों को पुन: गुणनीकरण के लिए की जाती है जिसे कड़े स्वास्थ्य मानकों के तहत तीन चक्रों यथा आधारीय बीज 1 (FS-1), आधारीय बीज 2 (FS-2) और प्रमाणित बीज (CS) में किया जाता है। हालांकि, राज्य सरकारों द्वारा प्रजनक बीज गुणनीकरण की वर्तमान स्थिति वांछित बीज गुणनीकरण श्रृंखला के अनुसार नहीं है और भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला द्वारा आपूर्ति किए गए प्रजनक बीज का गुणनीकरण प्राय: केवल आधारीय बीज – 1 (FS-1) अवस्था तक ही किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, देश में प्रमाणित बीज की काफी कमी बनी हुई है। देश में गुणवत्ता बीज आलू की भारी मांग को पूरा करने का केवल एक ही तरीका है और वह है प्रगत वायरस खोज तकनीकों के साथ जुड़कर हाईटेक बीज उत्पादन प्रणाली को शामिल करना।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए, भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला ने ऊतक संवर्धन और सूक्ष्म प्रवर्धन प्रौद्योगिकियों पर आधारित अनेक हाईटेक बीज उत्पादन प्रणालियों का मानकीकरण किया है। बीज उत्पादन की इन प्रणालियों को अपनाने से प्रजनक बीज की गुणवत्ता में सुधार आएगा, बीज गुणनीकरण दर बढ़ेगी और कम से कम 2 वर्ष तक बीज फसल के खेत प्रकटन में कमी आएगी। इस प्रौद्योगिकी को किसानों और अन्य हितधारकों तक पहुंचाने से पहले भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला के बीज उत्पादन फार्म पर इनका व्यापक परीक्षण किया गया था। संस्थान द्वारा विकसित हाईटेक बीज उत्पादन प्रणालियों को अपनाने से देशभर में 20 से भी अधिक ऊतक संवर्धन उत्पादन इकाइयों के खुलने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अनेक सरकारी/निजी बीज उत्पादन करने वाले संगठन प्रतिवर्ष भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला से प्रमुख अधिसूचित और जारी की गई आलू किस्मों के वायरस मुक्त स्व: पात्रे मातृ संवर्धन खरीदते हैं ताकि उनके हाईटेक बीज उत्पादन कार्यक्रमों में उनका पुन: गुणनीकरण किया जा सके।
संस्थान द्वारा मानकीकृत की गई नवीनतम हाईटेक बीज उत्पादन प्रणाली मृदारहित, ऐरोपॉनिक तकनीक की अवधारणा पर आधारित है। बीज उत्पादन की ऐरोपॉनिक प्रणाली में संस्थान द्वारा 'बीज प्लॉट तकनीक' की शुरूआत करने के लगभग 50 वर्ष बाद आलू बीज सेक्टर में एक बार पुन: क्रान्ति लाने की क्षमता है। ऐरोपॉनिक प्रणाली को वर्ष 2011 में सटीक रूप से उपयुक्त किया गया और अभी उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हरियाणा जैसे विभिन्न राज्यों से 14 फर्मों को इसका व्यावसायीकरण किया गया है। प्रत्येक फर्म को ऐरोपॉनिक प्रणाली के माध्यम से 10 लाख लघुकंद उत्पन्न करने का लाइसेंस दिया गया है। यहां तक कि यदि प्रत्येक फर्म अपनी क्षमता से आधे स्तर तक भी कार्य कर रही है, तब भी इन फर्मों द्वारा वर्तमान में लगभग 6.5 मिलियन लघुकंद उत्पन्न किए जा रहे हैं।
भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला द्वारा आलू की 25 लोकप्रिय किस्मों का ~ 3,187 मीट्रिक टन केन्द्रक एवं प्रजनक बीज उत्पादन किया जाता है जिसमें से 70 प्रतिशत का उत्पादन पारम्परिक प्रणाली से और 30 प्रतिशत का उत्पादन हाईटेक प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। फार्म भूमि की सीमा के कारण भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला के फार्म पर प्रजनक बीज उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करने का सीमित स्कोप है इसलिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों/कृषि विज्ञान केन्द्रों/निजी किसानों की मदद से इसकी संभावनाओं को तलाशा जा रहा है ताकि बीज उत्पादन के नए क्षेत्रों की पहचान की जा सके, समझौता ज्ञापन के तहत प्रजनक बीज का एफएस-1, एफएस-2 तथा प्रमाणित बीज में गुणनीकरण किया जा सके और उद्यमियों/निजी कम्पनियों की मदद से हाईटेक प्रणालियों द्वारा बीज उत्पादन किया जा सके।
(स्रोत : भाकृअनुप – केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (ICAR-CPRI), शिमला )
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