हिमालय क्षेत्र में पर्वतीय कृषि कार्यशाला का उद्घाटन

हिमालय क्षेत्र में पर्वतीय कृषि कार्यशाला का उद्घाटन

पहाड़ी क्षेत्रों की कृषि प्रणाली के लिए आधुनिक तकनीक आवश्यक : श्री रावत

देहरादून, 2 अप्रैल 2011

cswrt-mountain-workshop-1_1.jpg

केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री श्री हरीश रावत ने 'हिमालय क्षेत्रों में पर्वतीय कृषि-वर्तमान स्थिति, कठिनाइयां और क्षमता' विषय पर केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण तथा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून और हेस्को द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का आज उद्घाटन किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि प्रणालियों, कृषि वानिकी और मात्स्यिकी में आधुनिक प्रौ़द्योगिकियों के अपनाए जाने पर विशेष बल दिया। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि समूचे हिमालयी क्षेत्रों में लघु जल भंडारों \ जलाशयों में वर्षा जल को जमा कर इस्तेमाल करने की प्रचुर संभावनाएं हैं। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इस भंडारित जल का प्रयोग प्रभावी तौर पर ड्रिप और स्प्रिंक्लर सिंचाई प्रणालियों के जरिए किया जा सकता है।

श्री रावत ने आगे अपने उद्बोधन में आधुनिक तकनीक पर आधारित खेती प्रणाली, कृषि वानिकी और मत्स्य पालन की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि किसानों के बीच आधुनिक प्रौद्योगिकियां के प्रसार के लिए विस्तार तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए। उन्होंने महिला किसानों पर अधिक ध्यान देने की बात भी कही। उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्र की कृषि में महिलाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है इसलिए इनपर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन बातों के साथ ही श्री रावत ने पहाड़ी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से भी लोगों को आगाह किया।

cswrt-mountain-workshop-2_1.jpg cswrt-mountain-workshop-3_1.jpg

श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कृषि मंत्री, उत्तराखंड ने जल संरक्षण की गुंजाइश, अधिक उपज देने वाली किस्मों आदि के विशेष उल्लेख के साथ पहाड़ी कृषि पर जोर दिया।

इस विशिष्ट अवसर पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डॉ. एस. अय्यप्पन ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों की कमजोर मृदा उर्वरा क्षमता सबसे अहम चुनौती है समन्वित पोषण प्रबंधन एवं संतुलित उर्वरक के प्रयोग से इसमें काफी सुधार किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि पर्वतीय कृषकों द्वारा फिलहाल जैविक खेती को अपनाना जोखिम भरा कदम हो सकता है और इसका नुकसान स्थानीय कृषकों को उठाना पड़ सकता है।

डॉ. ए. के. सिंह, उपमहानिदेशक (एनआरएम), भा.कृ.अनु.प. ने अपने भाषण में यह टिप्पणी की कि मृदा अपरदन और मृदा अम्लीयता के कारण पूरे हिमालयी प्रक्षेत्र में पौध पोषण तत्वों का बड़े पैमाने पर क्षरण हो रहा है और तत्काल इस नुकसान पर नियंत्रण की आवश्यकता है।

DG-field-visit-dehradun-04-04-2011-1_1.jpg DG-field-visit-dehradun-04-04-2011-2_1.jpg

DG-field-visit-dehradun-04-04-2011-5_1.jpg DG-field-visit-dehradun-04-04-2011-4_1.jpg

कार्यशाला के दौरान केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण तथा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, देहरादून के निदेशक डॉ. वी. एन. शारदा ने अपने संबोधन में बताया कि इस कार्यशाला का उद्देश्य हिमालयी प्रक्षेत्र में कृषि विकास के लिए उपयुक्त रणनीतियों को तैयार करना है। इस अवसर पर डॉ. अय्यप्पन ने आजीविका सुरक्षा परियोजना के अंतर्गत उत्तर-पश्चिमी हिमालय के वर्षा आधारित क्षेत्र देहरादून जिले के विकास नगर ब्लॉक के चार गांवों के समूह का दौरा किया। उन्होंने स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी से इस क्षेत्र में शुरू की गई जल संसाधन विकास परियोजना का भी उद्घाटन किया। इस परियोजना के तहत 3.5 कि.मी. लम्बी पाइपलाइन बिछाई गई है जो कम उपज देने वाले वर्षा आश्रित क्षेत्रों में सिंचाई के लिए विकल्प है। इसकी सहायता से उत्पादन में तीन गुना की वृद्धि हुई है जिसने किसानों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिली है।डॉ. अय्यप्पन ने इस परियोजना की गतिविधियों की सराहना करते हुए इस परियोजना के प्रभावों को और भी अधिक असरदार बनाने का सुझाव दिया।

(स्रोत : एनएआईपी सब-प्रोजेक्ट मास-मीडिया मोबिलाइजेशन, डीकेएमए और सीएसडब्ल्यूसीआरटीआई, देहरादून)

×